अयोध्यानामा : राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई, पहली बार कैसे पता चली यह बात?
Ayodhyanama : ईस्ट इंडिया कंपनी का एजेंट विलियम फिंच इस धरती का पहला व्यक्ति है जिसने 1611 में अयोध्या में राम जन्म स्थान का अवशेष पाया था. विलियम फिंच ऐसा व्यक्ति था जिसने हिंदुस्तान हीं नही पूरे एशिया का नक्शा अपने बौद्धिक कौशल का उपयोग कर बदल दिया था.
हिंदुस्तान में ईस्ट इंडिया कंपनी के आने से पहले बाबरी मस्जिद-राम मंदिर का कहीं जिक्र नहीं था विवाद तो दूर की बात है. हिंदुस्तान में पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी ने ही बताया कि हिंदुओं तुम्हारे राम का मंदिर तोड़कर मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद बना ली है. ईस्ट इंडिया कंपनी का एजेंट विलियम फिंच इस धरती का पहला व्यक्ति है जिसने 1611 में अयोध्या में राम जन्म स्थान का अवशेष पाया था. विलियम फिंच ऐसा व्यक्ति था जिसने हिंदुस्तान हीं नही पूरे एशिया का नक्शा अपने बौद्धिक कौशल का उपयोग कर बदल दिया था. दुनिया के महान से महान राजा, दुर्दांत हमलावरों और बड़ी से बड़ी सेना रखने वाले आक्रांताओं, चतुर सुल्तान अपने जीवन में जो काम नहीं कर पाये उसे विलियम फिंच ने कर दिखाया. अयोध्या विवाद जानने से पहले विलियम फिंच के बारे में भी हम आपको बताते हैं इसके बाद अयोध्या विवाद की कहानी भी बताएंगे
विलियम फिंच क जहांगीर तक कैसे पहुंचा
साल 1607 में ईस्ट इंडिया व्यापार करने के लिए भारत आई थी. उस समय दिल्ली दरबार में फिंच और इसके कैप्टन हॉकिंस की एंट्री नहीं हो रही थी तब इसने मुगल शहंशाह जहांगीर के सूरत आने का इंतजार किया. सूरत में जहांगीर से मिलने के लिए रिश्वत तक दी, लेकिन वह मिल नहीं पाया. सूरत के व्यापार पर पुर्तगालियों का कब्जा था और फिंच- हॉकिंस की तमाम कामयाबी को पुर्तगालियों के नाराजगी की वजह से मुगल दरबार खारिज कर देता था.
इसके बाद फिंच ने रिश्वत देकर मुगल दरबार में जहांगीर के करीबी व्यापारी को ईस्ट इंडिया कंपनी का गिफ्ट देने के लिए राजी किया. वह गिफ्ट था जहांगीर के लिए कमरबंद और मुमताज के लिए ग्लव्स. फिंच ने उस व्यापारी को यह रिश्वत दी कि जब जहांगीर का कारवां यहां से गुजरेगा तो भीड़ का हिस्सा बनकर उनकी एक झलक पाना चाहता है. जब जहांगीर का कारवां गुजरा तो फिंच ऐसे मुस्कुराया जैसे उसने हिंदुस्तान फतह कर लिया है और यकीन मानिए उस दिन उसने हिंदुस्तान को फतह कर लिया था. जहांगीर कमरबंद पहने हुए था और मुमताज ग्लव्स पहनी हुई थीं. उसके बाद तो जहांगीर उसका ऐसा मुरीद हुआ कि 1610 में उसने फिंच को अपना प्रमुख सलाहकार बनाने का न्योता दे दिया. मगर फिंच किसी और चीज के लिए आया था. उसने इंकार कर दिया. ये विलियम फिंच हीं था जिसने जहांगीर इस इजाजत लेकर ईस्ट इंडिया की पहली फैक्ट्री हिंदुस्तान में डाली थी.
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मुद्दा क्या है?
अब मंदिर- मस्जिद विवाद की ओर लौटते हैं. फिंच ने ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेंट के नाते सूर, आगरा दिल्ली के अलावा लाहौर की यात्रा की. साल 1611 में फिंच ने अपनी यात्रा के लिए अयोध्या और सुल्तानपुर का चयन किया. यह एक विचित्र संयोग था क्योंकि उस वक्त अयोध्या कोई पावर सेंटर नहीं था और ना ही बड़ा धार्मिक स्थान था. फिंच ने पहली बार दुनिया को बताया कि मैं अयोध्या में राम जन्म स्थान के तोड़े गए अवशेषों पर बैठे ब्राह्मणों से मिला. मुगल शासन के खिलाफ जाकर उसने वहां पर बनी बाबरी मस्जिद का जिक्र नहीं किया क्योंकि वह व्यापारी था. मगर उसने राम मंदिर के अवशेषों का जिक्र इसलिए किया क्योंकि वह जानता था कि हिंदुस्तान पर अगर राज करना है तो बिना हिंदू-मुसलमान विवाद के यह संभव नहीं है. इसके बाद 1613 में बीमारी के चलते फिंच की बगदाद में मृत्यु हो गई. इसकेो बाद ईस्ट इंडिया कंपनी बगदाद से उसकी डायरी मंगवा कर उसका भरपूर उपयोग किया.
औरंगजेब की पोती ने किताब में राम मंदिर का किया जिक्र
1707 में औरंगजेब की मौत हो गई, जिसके बाद यह मुद्दा सुलगने लगा. फिंच की इस खोज के करीब 100 साल बाद औरगंजेब की पोती और मुगल बादशाह बहादुर शाह प्रथम (जून1708 से फरवरी 1712) की बेटी ने 'साहिफा-ए-चिली नासाइ बहादुर शाही'' ने अपनी किताब में और अंगजेब के मथुरा, काशी और अयोध्या में मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाने का जिक्र किया. ये किसी भी मुसलमान लेखक की तरफ से पहला कुबूलनामा माना गया है. लेखिका ने लिखा कि हिंदुओं का कहना है कि अयोध्या में सीता की रसोई और हनुमान चबूतरा तोड़कर मस्जिद है. हालांकि 'साहिफा-ए-चिली नासाइ बहादुर शाही' की पांडुलिपी को लेकर इतिहासविदों में विवाद है. इस बीच मुगल शासक कमजोर होते चले गए और ईस्ट इंडिया कंपनी मजबूत होती चली गई. व्यपारियों के साथ-साथ ईसाई धर्मगुरु भी भारत में आने लगे थे. भारत में अपने 38 साल के बिताए जीवन काल में फिर 1767 में ईसाईधर्म गुरू जोसेफ टेफेनथेलर भी अयोध्या आए और लिखा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनी है. हालांकि इन्होंने इसके लिए औरंगजेब को जिम्मेदार ठहराया है.
सर्वेयर फ्रांसिस बुचनन-हैमिल्टन के साक्ष्य अमर हो गए
विलियम फिंच की अयोध्या यात्रा के करीब 200 साल बाद एक बार फिर ईस्ट ईंडिया कंपनी के सर्वेयर फ्रांसिस बुचनन-हैमिल्टन भारत आया. बुचनन ने 1813-14 में अयोध्या की यात्रा की और दुनिया को पहली बार बताया कि 1528 में बाबरी मस्जिद को बाबर के निर्देश पर सूफी संत मूसा आशिकान के संरक्षण में मीर बाकी ने बनवाया था. इसके दिए गए साक्ष्य दुनिया के लिए राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद की अमर चित्र कथा बन गई. आश्चर्यजनक रूप से अंग्रेजों ने तब इस रिपोर्ट को पब्लिश नहीं किया मगर ब्रिटिश लाइब्रेरी में रखी हुई है.
मंटोगमेरी मार्टिन ने बाद में इसके कुछ हिस्से जारी किए हैं. इसमें बुचनन ने लिखा है कि हिंदू अयोध्या के टूटे मंदिरों के लिए औरंगजेब को दोषी मानते हैं मगर मस्जिद पर उकेरे गए दस्तावेजों के अनुसार इसे बाबर ने बनवाया था. बुचनन ने कहा कि उसके एक मौलवी दोस्त ने वहां पत्थरों-दीवारों पर लिखे गए परसियन शब्दों के बारे में बताया. पहली जगह लिखी हुई थी कि इसे मीर बाकी ने 935 एएच यानी 1528 या फिर 923 एचए यानी मुगल काल से पहले बनवाया.
मुस्लिम लेखकों ने हिंदुओं के जख्मों पर छिड़का नमक
19वीं और 20 वीं सदी में अब्दुल करीम और उनके बेटे गफ्फार जैसे लेखकों ने मूसा आशिकान का वंशज बनकर इन कहानियों को परसियन और उर्दू भाषा में और बढ़ा चढाकर लिखा जिसने हिंदुओं के जख्म पर नमक का काम किया. 1838 में ईस्ट ईंडिया के सर्वेयर मार्टिन ने इस कहानी और आगे ले जाने का काम किया. मार्टिन ने कहा कि बाबरी मस्जिद के खंभे हिंदू मंदिर से लिए गए हैं. जिस तरह के काले पत्थरों का इस्तेमाल बाबरी मस्जिद बनाने के लिए किया गया है वैसा ही पत्थर मूसा आशिकान के बगल में बनी कब्र के लिए किया गया है. हालांकि अयोध्या रिविजटेड के लेखक पूर्व आईएएस अधिकारी किशोर कुणाल ने इस कहानी को बकवास बताया है. मगर उस दिन से लेकर आजतक अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद की यही कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है.
देश में तेजी से फैली अंग्रेजों की कहानी
भारत में अंग्रेजों के द्वारा बनाई गई राम की खोज की कहानी तेजी से देश भर में फैलती गई. पहली बार 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की तैयारी हिंदू-मुस्लिम एक साथ मिलकर कर रहे थे. ऐसे में अंग्रेजों को दंगे के लिए इससे अच्छा मौका कोई नहीं समझ आया. 1850 में कुछ सिख युवकों ने तब पहली बार बाबरी मस्जिद में घुसने की कोशिश की थी. आखिरकार 1853 में अयोध्या ने अपना पहला दंगा देख ही लिया. तब विलियम फिंच ने सूरत के बाद स्वर्ग में मुस्कुराया होगा. निर्मोही अखाड़े की बाबरी मस्जिद को कब्जे में लेने की कोशिशों के बाद दो साल तक दंगे होते रहे. बिल्लियों की तरह हिंदू-मुसलमान लड़ते रहे. इसके बाद मामला धीरे- धीरे मुगल दरबारों से होते हुए कोर्ट-कचहरी तक पहुंच गया. करीब 136 साल मुकदमा चलने के बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे मामले पर फैसला सुनाया.