अयोध्यानामा : राम मंदिर विवाद की कैसे हुई थी शुरुआत? 22-23 दिसंबर 1949 की रात अयोध्या में क्या हुआ था
Ayodhyanama : अयोध्या कांड की शुरुआत 1949 में हुई थी. 22-23 दिसंबर 1949 की रात अयोध्या में विवादित मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्तियां रख दी गईं और दूसरे दिन सुबह यह बात फैला दी गई कि विवादित बाबरी के अंदर राम लला प्रकट हुए हैं. इसके बाद लाखों लोग राम भक्त अयोध्या पहुंच गए. देखते ही देखते अयोध्या समेत पूरे उत्तर प्रदेश में तनाव फैल गया.
"दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदुओं के पवित्र स्थान को गिरा कर वहां पर मस्जिद बना दी गई लेकिन अब बहुत मुश्किल है इस शिकायत का कोई हल निकल पाना क्योंकि इस घटना के 356 साल गुजर चुके हैं. इसलिए अब जो किया जा सकता है वही सही है और सभी पक्ष स्टेटस यानी यथास्थिति बनाए रखें. यानी मस्जिद में नमाज होती रहे और बाबरी मस्जिद से लगे चबूतरे पर राम लला की पूजा होती रहे."
कर्नल एफ ई ए शेमियर, जिला जज फैजाबाद ने साल 1886 में इस टिप्पणी के महंत रघुवर दास के उस मुकदमे को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने मस्जिद के बगल में चबूतरे में मंदिर बनाने की अनुमति मांगी थी और यह दावा किया था कि राम जन्मभूमि तोड़कर मस्जिद बनाई गई है. जिला जज ने स्वयं उस क्षेत्र का निरीक्षण किया और जांच में पाया कि राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया. जिला जज की यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण थी. हालांकि अयोध्या के उग्र होने की शुरुआत 1949 में हुई थी. 22-23 दिसंबर 1949 की रात अयोध्या में विवादित मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्तियां रख दी गईं. दूसरे दिन सुबह यह बात फैला दी गई कि विवादित बाबरी के अंदर राम लला प्रकट हुए हैं. इसके बाद मौके पर लाखों राम भक्त पहुंच गए. खैर इसकी चर्चा हम आगे करेंगे. पहले क्रम से कहानी के बारे में समझते हैं.
राम चबूतरे पर मूर्तियां कब स्थापित की गईं
अयोध्या में बाबरी ढांचे से जुड़े राम चबूतरे पर मूर्तियां कब स्थापित की गईं और वहां अनवरत कीर्तन कब से चल रहा था. इस बात को जानने की उत्सुकता हमेशा लोगों मं बनी रही है. चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान या फिर कोई तीसरा पक्ष. जांच पड़ताल के बाद पता चला कि तमाम विवादों और टकराव के बीच अकबर के समय में मस्जिद के बगल में एक चबूतरे का निर्माण हुआ और वह राम चबूतरा कहलाया.
संत और बैरागी उस भूमि पर अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं थे. तमाम संतों की बातों पर गौर करें तो पता चलता है की गुप्तार घाट से मूर्तियों को हाथी में रख कर अयोध्या के रामकोट स्थित बाबरी मस्जिद से सटे इस परिसर में बनाए गए राम चबूतरे में स्थापित किया गया था. दिनभर वहां पर पूजा अर्चना होती थी और सुरक्षा को देखते हुए वहां पर बैरागी और साथ में श्रद्धालु डटे रहते थे. उस चबूतरे के बाहर हारमोनियम की धुन के साथ सीता राम सीता राम का कीर्तन भी चलता रहता था.
बाबरी मस्जिद बनने के बाद हमेशा आग सुलगती रही
बाबरी मस्जिद निर्माण के बाद यह मामला कभी शांत नहीं हुआ और आग किसी न किसी तरह हमेशा सुलगती रही. 1885 में निर्मोही अखाड़े के महंत बाबा रघुवर दास ने इस मामले पर पहली बार कानूनी लड़ाई लड़ी. यही नहीं उन्होंने बाबरी मस्जिद से सटाकर एक भव्य मंदिर बनाने के लिए निर्माण शुरू कराया लेकिन अदालती आदेश के बाद उसे रोकना पड़ा.
राम मंदिर गिराने के बाद पहला दंगा कब हुआ था?
राम मंदिर के गिराए जाने के बाद वहां हिंदुओं को पूजा करने दी जाए इसके लिए कई बार प्रयास किए गए. साल 1852 में इसको लेकर दंगा हुआ और बाबरी मस्जिद पर कब्जे का प्रयास हुआ, लेकिन अंग्रेजों ने वहां पर शांति व्यवस्था कायम कराई और आदेश दिया की मस्जिद के अंदर नमाज होगी और बाहर राम चबूतरे पर पूजा होगी. अयोध्या में बगल में राम चबूतरे में पूजा अर्चना करने और एक छोटा सा मंदिर बनाने की अनुमति की मांग वाजिद अली शाह से भी की गई थी और वाजिद अली शाह ने इसकी अनुमति नहीं दी.
कुछ मुसलमानों ने किया विरोध
वाजिद अली शाह के द्वारा मंदिर बनाने की अनुमति का मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने विरोध किया और उनसे शिकायत की. इसके उत्तर में वाजिद अली शाह की जुबान से आसफुद्दौला की यह लाइन निकली कि "हम इश्क के बंदे हैं मजहब से नहीं वाकिफ. काबा हुआ तो क्या बुतखाना हुआ तो क्या." लेकिन राम चबूतरे पर पूजा की अनुमति तो मिली लेकिन मंदिर बनाने की नहीं. गदर के बाद कई क्षेत्रों में इस तरह धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद उभरे थे और अंग्रेज इससे सतर्क थे इसीलिए उन परिसरों की घेरा बंदी की गई जहां पर विवाद थे.
अदालत में मुकदमा हारे, मामले ने पकड़ा तूल
अदालत की लड़ाई में महंत रघुवर दास सफल नहीं हुए और उन्हें वहां मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी गई, लेकिन यह विवाद धीरे-धीरे और तूल पकड़ता चला गया. 1912 और 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया गया और वहां पर तोड़फोड़ की गई. ढांचे को क्षति पहुंची और अंग्रेजों ने स्थिति को संभालने के लिए उस ढांचे की मरम्मत कराई और इसका काम एक मुस्लिम ठेकेदार को सौंपा. इस परिसर को लेकर कुछ तथ्य चौंकते हैं.
कागजों में मस्जिद जन्मभूमि के नाम से दर्ज थी
वास्तव में यह मस्जिद वक्फ की जमीन पर नहीं बनी थी और कागजों में यह जन्मभूमि के नाम से जानी जाती रही. साफ है कि मस्जिद तो बन गई लेकिन कागजों में जन्मभूमि मस्जिद के नाम से ही पुकारा जाता रहा और दर्ज भी रही. साल 1861 में राजस्व के रिकॉर्ड में कुछ हेराफेरी हुई और अलग से जामा मस्जिद और मस्जिद शब्द जोड़ा गया. बाद में उत्तर प्रदेश सरकार की जांच में यह हेरा फेरी साबित भी हो गई.
मुस्लिम पक्ष ने माना रामचबूतरा ही जन्म स्थान है
सुप्रीम कोर्ट में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर 30वीं सुनवाई (24 सितंबर 2019) को हुई, जिसमें मुस्लिम पक्ष ने माना कि राम चबूतरा ही प्रभु श्रीराम का जन्मस्थान है, क्योंकि हिन्दू दावेदार भी सालों से इसी पर विश्वास करते रहे हैं. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि इस मामले में 1885 में डिस्ट्रिक्ट जज का आदेश है कि हिंदू राम चबूतरे को जनस्थान मानते थे. मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि जब कोर्ट का आदेश है तो हम इससे अलग कैसे हो सकते हैं? अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 30 वें दिन बहस की शुरुआत मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन ने की.
राजीव धवन ने अयोध्या विवाद से जुड़ी कई पुरानी याचिकाओं का भी जिक्र किया. इनके जरिए उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि मस्जिद पर 1949 तक लगातार मुस्लिम पक्ष का कब्जा रहा था. राजीव धवन ने कहा, "मुतावल्ली ने अर्जी दाखिल की थी जिस पर सरकार ने आदेश दिया था. अगर मस्जिद पर मुसलमानों का कब्जा नहीं होता तो वह मुतावल्ली अर्जी क्यों लगाता? और अदालत फैसला क्यों देती? इससे साबित होता है कि मस्जिद पर मुस्लिम कब्जा था."