अयोध्यानामा : बीजेपी को राम मंदिर की राजनीति ने कितना बड़ा बना दिया?
भाजपा का जन्म 1980 में हुआ. उस समय इस दल में अधिकतर नेता जनसंघ से आए थे. 1984 के आम चुनावों में बीजेपी को केवल 2 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. चुनाव से कुछ महीने पहले, विश्व हिंदू परिषद (VHP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक मुहिम छेड़ी थी.
अयोध्या के राम मंदिर में आने वाली 22 जनवरी को भगवान राम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होने वाली है. देश इसको एक उत्सव की तरह मना रहा है. वहीं बीजेपी ने इस आयोजन के लिए खास तरह की तैयारी कर रखी है. कुल मिलाकर बीजेपी यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रही है कि उनकी मेहनत के कारण अयोध्या में रां मंदिर बना है. अगले साल 2024 में होने वाले चुनावों में बीजेपी इस मुद्दे को भुनाकर वोट लेने की पूरी कोशिश करेगी. आज हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि अब तर राम मंदिर मुद्दे के कारण बीजेपी को क्या-क्या हासिल हुआ.
साल 1980 में हुआ भाजपा का जन्म
सबसे पहले बता दें कि भाजपा का जन्म 1980 में हुआ. उस समय इस दल में अधिकतर नेता जनसंघ से आए थे. 1984 के आम चुनावों में बीजेपी को केवल 2 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. चुनाव से कुछ महीने पहले, विश्व हिंदू परिषद (VHP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक मुहिम छेड़ी थी, लेकिन चुनाव पर इसका ख़ास असर नहीं हुआ. क्योंकि उस समय इंदिरा गांधी की हत्या से राजीव गांधी और कांग्रेस को मिली सहानुभूति वोट मिले थे.
कांग्रेस पर लगा मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप
एक मुस्लिम महिला शाहबानो को अदालत ने गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया, इस पर अमल रोकने के लिए राजीव गांधी सरकार ने एक नया क़ानून बना दिया जिसकी वजह से उन पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगे और सरकार दबाव में आ गई.
हिंदुओं को खुश करने के लिए कांग्रेस ने क्या किया
कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण की शिकायत करने वाले हिंदुओं को खुश करने का एक तरीका ढूंढ निकाला. एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के न्यायाधीश केएम पांडे ने हिन्दुओं को पूजा करने के लिए बाबरी मस्जिद के ताले को खोलने का आदेश दिया. यहां 1949 से रामलला की मूर्ति रखी थी लेकिन इससे पहले अंदर जाकर पूजा करने पर प्रतिबंध लगा था. आदेश अदालत ने दिया था लेकिन ताला खोलने में सरकार ने जिस तरह से तेज़ी दिखाई उससे लोगों को लगा कि शाहबानो के मामले में हुए राजनीतिक नुकसान की सरकार भरपाई कर रही है. कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप ने तब संघर्ष करती भारतीय जनता पार्टी और इसके सहयोगी हिंदुत्व परिवार के दलों को बल दिया.
कांग्रेस का हिंदुत्व के प्रति झुकाव अस्थायी
इसके बाद हिन्दुओं ने पहली बार नागरिक की तरह नहीं, बल्कि हिंदू के तौर पर सोचना शुरू कर दिया. अब 1989 का आम चुनाव आया. कांग्रेस की उस चुनाव में कोशिश रही कि हिन्दुओं को मनाया जाए. राम मंदिर के आरएसएस-वीएचपी के इस आंदोलन को नकारने के लिए कांग्रेस सरकार ने हिन्दू समाज को रामराज्य का सपना दिखाया, ख़ुद राजीव गांधी फ़ैज़ाबाद गए और अपनी चुनावी मुहिम का आग़ाज़ रामराज्य लाने का वादा करके किया. इतना ही नहीं, बाद में मंदिर की नींव रखने के लिए कराए गए शिलान्यास में इसकी अहम भूमिका रही. कांग्रेस पार्टी का हिंदुत्व के प्रति झुकाव अस्थायी साबित हुआ. राजीव गांधी ने हिंदुत्व का मुद्दा तो पकड़ा लेकिन आगे जाकर पता नहीं किस कारण इसे छोड़ दिया. इससे फ़ायदा बीजेपी ने उठाया.
कांग्रेस की खीर बीजेपी खा गई
भारत में एक परंपरा है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग खीर बनाकर छत पर रखते हैं और इसे सुबह खाया जाता है. कांग्रेस ने शरद पूर्णिमा की खीर बनाई थी, लेकिन दुर्भाग्य से ये उसके हिस्से में नहीं आई. ये पूरी की पूरी बीजेपी खा गई. जिस काम को कांग्रेस ने शुरू करना चाहा उसे भाजपा ने उठाया,
राम मंदिर बीजेपी को 85 सीटें दिलाई
साल 1989 में बीजेपी ने अपने पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) संकल्प में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का वादा किया, उसी साल दिसंबर में हुए आम चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर के निर्माण की बात अपने चुनावी घोषणा-पत्र में पहली बार कही. नतीजा ये हुआ कि 1984 में दो सीट जीतने वाली भाजपा ने 1989 के चुनाव में 85 सीटें जीत लीं. इस चुनाव में उभरते हुए राष्ट्रवाद की शुरुआत देखने को मिली. चुनाव में मिली इतनी सीटों के बाद आडवाणी ने देश के बदलते मूड को भांप लिया था. राम जन्मभूमि के आंदोलन ने बिखरे हुए राष्ट्रवाद को धर्म से जोड़कर इसे एक हिंदू राष्ट्रवाद के राजनीतिक आंदोलन में बदल दिया. राम जन्मभूमि आंदोलन ने भारत में पहली बार हिंदू राष्ट्रवाद को एक सामूहिक विवेक में तब्दील कर दिया.
ऐसे बढ़ता गया आडवाणी का कद
मंदिर मुद्दे पर पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता के साथ लाल कृष्ण आडवाणी का कद भी बढ़ता गया. बीजेपी की बढ़त से जनता दल की सरकार घबरा गई. प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भाजपा के बढ़ते असर को कम करने के लिए 1990 में मंडल कमीशन के आरक्षण को लागू कर दिया. मंदिर बनाम मंडल की जंग में जीत भाजपा की हुई. आडवाणी ने सितंबर 1990 में रथयात्रा निकाली ताकि कारसेवक 20 अक्टूबर को राम मंदिर के निर्माण में हिस्सा ले सकें. आडवाणी की रथयात्रा ने भारतीय मतदाता को वो सब कुछ दिया जो उसके मन में था कि उसे नहीं मिला. "आडवाणी की रथयात्रा ने भाजपा को एक ऐसा प्लेटफॉर्म दिया कि भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी बन गई.
1991 में जब लोकसभा के लिए मध्यावधि चुनाव हुए तो भाजपा ने 120 सीटें हासिल कीं जो पिछले चुनाव की तुलना में 35 सीटें ज़्यादा थीं. उसी साल उत्तर प्रदेश में पार्टी पहली बार सत्ता में आई और कल्याण सिंह बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने. इसके बाद 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद के तोड़े जाने के बाद कल्याण सिंह की सरकार गिर गई तो भाजपा को भी इसका नुक़सान हुआ. ऐसा लगने लगा कि राम मंदिर के मुद्दे से अब पार्टी को जितना सियासी लाभ होना था हो चुका. इसके बाद वाजपेयी के नेतृत्व में मंदिर का मुद्दा पार्टी ने थोड़ा पीछे रखा.
इंडिया शाइनिंग नारे में हारी बीजेपी
इसके दौरान पार्टी की केंद्र में सरकार बनी जिससे पार्टी का मनोबल बढ़ा और अब उसे मंदिर मुद्दे की ज़रूरत महसूस नहीं हुई. शायद इसीलिए 2004 के चुनाव में पार्टी ने 'इंडिया शाइनिंग' का नारा दिया और विकास की बात की. पार्टी चुनाव हार गई. 2009 में पार्टी ने राम मंदिर का मुद्दा सामने रखा लेकिन पूरी ताक़त से नहीं. इसके बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने राम मंदिर की जगह विकास को पहल दी और आज भाजपा भारत की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है.
2024 में राम मंदिर का क्या होगा असर
आज 2023 में बीजेपी को जब 300 से अधिक सीटें अकेले मिली हैं और विपक्ष बंटा हुआ नजर आ रहै है तब राम मंदिर कितना अहम है.यह सवाल बड़ा है. इसका सीधा सा जवाब है कि हिंदुओं की भावना राम मंदिर निर्माण और मंदिर में राम लला को विराजमान करने की है. यह काम 22 जनवरी 2023 को होने जा रहा है. ऐसे में भगवान राम, मंदिर, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को मानने वाले लोग एक बार फिर बीजेपी को बंपर वोट दे सकते हैं. वहीं बिखरा हुआ विपक्ष मोदी सरकार की विजय रथ को कैसे रोक पाता है यह चुनाव परिणाम बताएंगे.