अयोध्यानामा : अगर पंडित नेहरू का आदेश मान लेता यह IAS अधिकारी तो आज भी नहीं बनता राम मंदिर

Ayodhyanama : अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के संघर्ष की कहानी करीब 500 साल पुरानी है. राम मंदिर बनने के क्रम में अयोध्या के एक IAS अधिकारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी अगर वो तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के आदेश को मान लेते तो आज राम मंदिर नहीं बनता. आज हम इसी अधिकारी का कहानी सुनाने जा रहे हैं.

Pankaj Soni
Pankaj Soni

अयोध्‍या में भव्‍य राम मंदिर बनकर तैयार है, और 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा होनी है. ऐसे में 500 साल पुरानी संघर्ष की कहानी पर रामभक्‍तों की जीत होगी. राम मंदिर संघर्ष से जुड़े कई कहानी-किस्‍से हैं. इन्‍हीं में से एक कहानी अयोध्या के डीएम केके नायर की है. अगर केके नायर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के एक आदेश को मान लेते तो आज भी राम मंदिर नहीं बना होता. केके नायर का राम मंदिर संघर्ष की लड़ाई में अहम योगदान रहा है. तो आइये जानते हैं कौन थे केके नायर?..

कौन थे केके नायर?

केके नायर फैजाबाद के जिलाधिकारी (IAS) थे, जिनका पूरा नाम कडनगालाथिल करुणाकरन नायर (Kadangalathil Karunakaran Nayar) था. केरल में जन्मे के के नायर ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इंग्लैंड चले गए और मगज 21 वर्ष की आयु में ही उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा क्लीयर कर ली. इसके बाद 1 जून सन् 1949 में उन्हें अयोध्या (फैजाबाद) के उपायुक्त सह जिला मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया था. नायर के फैसले ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया. केके नायर वही व्यक्ति हैं जिन्होंने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आदेश का पालन नहीं किया. 

नेहरू के फरमान को दो बार नकारा 

अयोध्या में 22 और 23 दिसंबर 1949 की रात में भगवान राम की मूर्तियां बाबरी मस्जिद के अंदर अचानाक से रख दी गईं. इसके बाद सुबह पूरे इलाके में यह बात फैला दी गई कि बाबरी मस्जिद के अंदर राम लला प्रकट हुए हैं. इस बात को सुनकर 23 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद में राम लला के दर्शन के लिए विशाल जनसैलाब उमड़ पड़ा. दूसरे दिन जब मुसलमानों को यह बात पता चली तो उन्होंने विरोध किया. इसके बाद इलाके में तनाव फैल गया. इलाके में अतिरिक्त फोर्स तैनात करनी पड़ी.  

राम जन्मभूमि मुद्दे सरकार ने मांगी रिपोर्ट 

आज का अयोध्या तब फैजाबाद हुआ करता था और वहां के तत्कालीन उपायुक्त सह जिला मजिस्ट्रेट केके नायर हुआ करते थे. ऐसे में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से उनको पत्र मिला. पत्र में नायर से राम जन्मभूमि मुद्दे पर एक रिपोर्ट पेश करने को कहा गया था. उन्होंने रिपोर्ट पेश करने के लिए अपने सहायक को भेजा, जिनका नाम गुरुदत्त सिंह था. गुरुदत्त ने 10 अक्टूबर 1949 को राम मंदिर के निर्माण की सिफारिश कर दी. गुरुदत्त सिंह ने लिखा, हिंदू समुदाय ने इस आवेदन में एक छोटे के बजाय एक विशाल मंदिर के निर्माण का सपना देखा है. इसमें किसी तरह की परेशानी नहीं है. उन्हें अनुमति दी जा सकती है. हिंदू समुदाय उस स्थान पर एक अच्छा मंदिर बनाने के लिए उत्सुक है, जहां भगवान राम का जन्म हुआ था. जिस भूमि पर मंदिर बनाया जाना है, वह नजूल यानी सरकारी जमीन है. 

जब नायर ने नेहरू के आदेशों को नाकारा?

राम मंदिर का मुद्दा अब देश में तूल पकड़ने लगा था. दो समुदायों में तनाव बढ़ता जा रहा है था. साथ ही कांग्रेस के लिए सियासी समीकरण भी बदल रहे थे, जिनको देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंद को निर्देश दिया कि विवादित स्थान पर पूर्व वाली स्थिति बनाई जाए. मतलब कि मस्जिद के अंदर से राम लला की मूर्ति को उठाकर बाहर बने राम चबूतरे में रखवा दिया जाए. इसके लिए जितनी फोर्स लगे लगाई जाए. पंड़ित नेहरू के इस आदेश को मानने से केके नायर ने इनकार कर दिया. इसके बाद पंडित नेहरू की तरफ से उन्हें चिट्ठी भी लिखी जाती है जिसमें आदेश दिया जाता है कि पहले वाली स्थिति बनाई जाए.

केके नायर पर यह दबाव भी था कि बाबरी मस्जिद से मूर्तियों के हटा दिया जाए, लेकिन नायर ने ऐसा करना ठीक नहीं समझा. नेहरू के खत के जवाब में नायर ने लिखा कि अगर मंदिर से मूर्तियां हटाईं गईं तो इससे हालात बिगड़ जाएंगे और हिंसा भी बढ़ सकती है. नेहरू ने नायर के खत के जवाब में एक और खत लिखा और फिर वही आदेश दिया पहले वाली स्थिति बनाई जाए. नायर अपने फैसले पर अडिग रहे. उन्होंने भगवान राम की मूर्तियों को हटाने से इनकार कर दिया और अपने इस्तीफे तक की पेशकश कर दी। नायर के इस रवैये को देखते हुए सीएम गोविंद वल्लभ पंत ने जिला मजिस्ट्रेट के पद से निलंबित कर दिया.

चुनाव लड़े और पति-पत्नी दोनों सांसद बने

राम मंदिर के लिए केके नायर ने जो काम किया इसकी हवा पूरे इलाके में फैल चुकी थी. इसके चलते केके नायर फैजाबाद, बस्ती समेत आपपास के इलाकों में हिंदुत्व का चेहरा बन गए. नौकरी जाने के बाद केके नायर का अधिकांश समय बस्ती में बीतने लगा. पहली बार 1957 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पत्नी शकुन्तला नायर को चुनाव मैदान में उतारा और वह नगर सीट से निर्दलीय विधायक बन गईं. 1962 में तीसरे विधानसभा चुनाव में नायर तत्कालीन महादेवा विधानसभा क्षेत्र से लड़े लेकिन हार गए. 1952 से लेकर 1967 तक नायर दंपति बस्ती को अपनी कर्मभूमि बनाकर काम करता रहा. 1967 में चौथे लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ ने पति-पत्नी को लोकसभा चुनाव में उतारा. केके नायर बहराइच और शकुन्तला नायर कैसरगंज सीट से चुनाव मैदान में उतरीं. दोनों को बड़ी जीत हासिल हुई.

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07 January 2024, 11:25 AM IST

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