Ayodhyanama : अयोध्या के राम मंदिर में 22 जनवरी 2024 को राम लला हमेशा के लिए अपनी गद्दी पर विराजमान हो जाएंगे. मंदिर में यह प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. इस मौके की देश-दुनिया की हजारों बड़ी हस्तियां गवाह बनेंगी. प्राण-प्रतिष्ठा आज हमें जितनी आसान लग रहा है वास्तव में उतनी आसान नहीं है. इसके पीछे बहुत सारे बलिदान देने पड़े हैं. यह संघर्ष 1528 से ही शुरू हो गया था जब इस्लामी आक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया था.
इस मामवे में लंबी लड़ाई के बाद 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवाद वाली पूरी जमीन रामलला की है. इसके बाद मंदिर की नींव पड़ी. मंदिर के इस रूप तक पहुंचने के लिए न जाने कितने रामभक्तों ने खुद को बलिदान कर दिया. कितनी बार अयोध्या की गलियों को रामभक्तों के रक्त से लाल कर दिया गया. ऐसी ही एक तारीख 2 नवंबर 1990 की है.
इस दिन आईजी एसएमपी सिन्हा ने अपने पुलिस अधिकारियों को सख्त लहजे में कहा कि लखनऊ से साफ निर्देश है कि भीड़ किसी भी कीमत पर सड़कों पर नहीं जुटनी चाहिए. इसके बाद सुबह के नौ बजे का वक्त था. कार्तिक पूर्णिमा पर सरयू में स्नान कर साधु और रामभक्त कारसेवा के लिए रामजन्म भूमि की ओर बढ़ रहे थे, तभी पुलिस ने घेरा बनाकर सभी को रोक दिया. वे जहां थे, वहीं सत्याग्रह पर बैठ गए. रामधुनी में रम गए. फिर आईजी ने ऑर्डर दिया और सुरक्षा बल एक्शन में आ गए और आंसू गैस के गोले दागने लगे. लाठियां बरसाई गईं, लेकिन रामधुन की आवाज बुलंद रही. रामभक्त न उत्तेजित हुए, न डरे और न घबराए. इसके बाद अचानक से राम भक्तों पर फायरिंग शुरू कर दी गई. गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर निशाना बनाया गया.
2 नवंबर 1990 को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर जो कारसेवक बढ़ रहे थे, उनमें 22 साल के रामकुमार कोठारी और 20 साल के शरद कोठारी शामिल थे. इस जन सैलाब में दोनों भाई सबसे आगे मौजूद थे. सुरक्षा बलों ने जब फायरिंग शुरू की तो दोनों भाई पीछे हटकर एक घर में जाकर छिप गए. तभी सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकालकर सड़क पर बैठाया और उसके सिर पर गोली मार दी. छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी घर से बाहर आ गए. तभी इंस्पेक्टर ने गोली चला दी जो रामकुमार के गले को पार कर गई. मौत के दो दिन बाद दोनों भाइयों की अंत्येष्टि सरयू किनारे की गई, जिसमें भारी हुजूम उमड़ पड़ा. कोठारी बंधु अमर रहें के नारे लगे. कोठारी बंधुओं के घर में कुछ दिन बाद उनकी बहन की शादी होने वाली थी, जिसकी तैयारियों को छोड़कर दोनों भाई कारसेवा के लिए अयोध्या पहुंचे थे.
जनसत्ता में अगले दिन छपी खबर में बलिदानियों की संख्या 40 बताई गई थी. साथ ही लिखा गया था कि 60 बुरी तरह जख्मी हुए और घायलों का कोई हिसाब नहीं है. मौके पर रहे एक पत्रकार ने मृतकों की संख्या 45 बताई थी. हालांकि उस समय प्रशासन ने अपनी ओर से कोई आंकड़े जारी नहीं किए थे.
22 साल के रामकुमार और 20 साल के शरद कोठारी कोलकाता के रहने वाले थे. दोनों ही RSS से जुड़े थे और भगवान राम में दोनों की अगाध श्रद्धा थी. 20 अक्टूबर 1990 को उन्होंने अयोध्या जाने के अपने इरादे के बादे में पिता हीरालाल कोठारी को बताया था. राम और शरद ने 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से ट्रेन से बनारस पहुंच गए. यहां पता चला कि सरकार ने गाड़ियां रद्द कर दी हैं तो टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक पहुंचे. यहां से अयोध्या जाने के लिए आगे का रास्ता बंद था तो 200 किलोमीटर पैदल चलकर 30 अक्टूबर की सुबह दोनों भाई अयोध्या पहुंचे. 30 अक्टूबर को विवादित जगह पहुंचने वाले शरद पहले आदमी थे. विवादित इमारत के गुंबद पर चढ़कर उन्होंने सबसे पहले पताका फहराई थी. शरद और रामकुमार अब मंदिर आंदोलन की कहानी बन गए थे. अयोध्या में उनकी कथाएं सुनाई जा रही हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार में उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने अप्रैल 2021 में घोषणा की थी कि कारसेवा के दौरान पुलिस की गोली में मारे गए कोठारी बंधुओं के नाम पर अयोध्या में सड़क बनवाई जाएगी. कोठारी बंधुओं की हत्या 2 नवंबर 1990 को पुलिस ने की थी. पश्चिम बंगाल में कई चुनावी रैलियों के दौरान भी भाजपा नेताओं ने बंगालियों को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के लिए कोठारी बंधुओं के बलिदान की याद दिलाई थी. राज्य में भाजपा के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए कोठारी बंधुओं के परिजनों को भी आमंत्रित किया गया था. उनकी बहन पूर्णिमा कोठारी ने भाजपा के एक कार्यक्रम में हिस्सा भी लिया था. First Updated : Thursday, 28 December 2023