अयोध्यानामा : आज कहानी राम मंदिर आंदोलन के गुमनाम नायकों की जिनके बारे में आप बहुत कम जानते हैं

Ayodhyanama : अयोध्या के राम मंदिर में 22 जनवरी को राम लला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होनी है. इसको लेकर अयोध्या इन दिनों में चर्चा में है. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था. राम मंदिर का राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन सही मायने में 1983 से शुरू हुआ था.

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Ram Mandir : अयोध्या के राम मंदिर में 22 जनवरी को राम लला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होनी है. इसको लेकर अयोध्या इन दिनों में चर्चा में है. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था. राम मंदिर का राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन सही मायने में 1983 से शुरू हुआ था. इस आंदोलन में ऐसे बहुत सारे लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. आज के इस लेख में हम राम मंदिर आंदोलन के ऐसे ही गुमनाम नायकों के बारे में बात करेंगे जिनके बारे में आपको बहुत कम पता है.

मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले.

मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले

मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले को मोरोपंत पिंगले के नाम से जाना जाता है. नागपुर के मॉरिस कॉलेज से स्नातक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रचारक थे. पिंगले एक 'अदृश्य' रणनीतिकार थे, जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में कई तरह की यात्राएं और देशव्यापी अभियान चलाने का काम किया. इनके प्रयासों के तहत पूरे देश से 3 लाख से ज्यादा ईंटें अयोध्या भेजी गईं, उनकी रणनीति तैयार करने में पिंगले की अहम भूमिका थी. वह 1983 में 'एकात्मता यात्रा' के रणनीतिकार भी थे, जिसके बाद 1984 में राम-जानकी रथ यात्रा हुई. पिंगले ने 1975-77 के दौरान आपातकाल विरोधी आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी. 1946 से 1967 तक उन्होंने महाराष्ट्र में RSS के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया. पिंगले ने हमेशा पर्दे के पीछे काम करना पसंद किया और 1980 के दशक में मंदिर आंदोलन के निर्माण के लिए वह एक प्रमुख रणनीतिकार थे.

कोठारी बंधु

राम कुमार कोठारी और शरद कुमार कोठारी सगे भाई थे, जो कोलकाता के रहने वाले थे. अक्टूबर 1990 में कार सेवा के लिए कोलकाता से अयोध्या आए थे. वो 1980 के दशक में स्थापित RSS प्रेरित संगठन बजरंग दल से जुड़े थे. उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 को कार सेवकों के पहले बैच के सदस्यों के रूप में अयोध्या में कार सेवा में भाग लिया. दो दिन बाद, 2 नवंबर को, जब वे कार सेवा कर रहे थे, तो पुलिस ने उन दोनों को बहुत करीब से गोली मार दी. इसमें दोनों भाइयों की मौत हो गई. तब राम 23 साल के थे और शरद सिर्फ 20 साल के थे. कोठारी बंधुओं की हत्या से देश भर के हिंदुओं में आक्रोश फैल गया और उन्हें राम जन्मभूमि आंदोलन के बलिदानी नायकों के रूप में माना गया.

देवरहा बाबा

 

देवरहा बाबा

देवरहा बाबा एक बेहद आध्यात्मिक सन्यासी थे जो जिनके पास देश- के बड़े- बड़े नेता और हस्तियां आती थीं. हालांकि देवरहा बाबा के जन्मस्थान और जन्म तिथि के बारे में जानकारी आज भी एक रहस्य है. वह उत्तर प्रदेश में देवरिया के पास सरयू नदी के तट पर विराजमान रहते थे। उनके अनुयायियों में भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता शामिल थे. उन्होंने जनवरी 1984 में प्रयागराज के कुंभ में 'धर्म संसद' की अध्यक्षता की. 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखने के लिए सभी संप्रदायों से ऊपर उठकर हिंदू धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया था. ऐसा कहा जाता है कि जब राजीव गांधी शिलान्यास के संबंध में उनसे सलाह और आशीर्वाद लेने गए, तो देवरहा बाबा ने उनसे कहा, "बच्चा, हो जाने दो."

बैरागी अभिराम दास

बिहार के दरभंगा में जन्मे बैरागी अभिराम दास रामानंदी संप्रदाय के एक तपस्वी थे और उनका नाम 22-23 दिसंबर 1949 की मध्यरात्रि को भगवान राम के जन्मस्थान पर बने विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति उभरने के बाद सामने आया. उस समय प्रशासन की तरफ से दर्ज की गई FIR में उन्हें मुख्य आरोपी बनाया गया था. उन्हें अयोध्या में 'योद्धा साधु' के नाम से जाना जाता था. हिंदू महासभा के सदस्य, दास मजबूत कद काठी के थे और कुश्ती की कला में पारंगत थे. 

महंत अवैद्यनाथ.

 

महंत अवैद्यनाथ

महंत अवैद्यनाथ राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए 1980 के दशक के मध्य में स्थापित राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के पहले अध्यक्ष थे. वह एक और प्रमुख संगठन - राम जन्मभूमि न्यास समिति के भी अध्यक्ष थे, जिसने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.1969 में वह गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर बने. वह हिंदू महासभा के सदस्य भी थे. वह पांच बार विधायक रहे और चार बार गोरखपुर से लोकसभा सांसद रहे. उन्हें बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भी आरोपी बनाया गया था.

 

श्रीश चंद्र दीक्षित और विष्णु हरि डालमिया.

 

श्रीश चंद्र दीक्षित

दीक्षित 1980 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी नेता थे. वह 1982 से 1984 तक उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक (DGP) रहे. अपने रिटायरमेंट के बाद, वह विश्व हिंदू परिषद (VHP) में इसके उपाध्यक्ष के रूप में शामिल हुए. उन्होंने अयोध्या में कार सेवकों के आंदोलन की रणनीति बनाने और विश्व हिंदू परिषद की तरफ से चलाए जा रहे अलग-अलग जमीनी अभियानों के लिए रणनीति तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1990 में अयोध्या में कारसेवा के दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. वह 1991 में BJP के टिकट पर वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से संसद सदस्य के रूप में चुने गए.


विष्णु हरि डालमिया

विष्णु हरि डालमिया एक प्रसिद्ध उद्योगपति परिवार के वंशज हैं. डालमिया 1992 से 2005 तक विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष थे. डालमिया राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे. 1985 में जब श्री राम जन्मभूमि न्यास की स्थापना हुई, तो उन्हें इसका कोषाध्यक्ष बनाया गया. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. 

दाऊदयाल खन्ना

राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के महासचिव के रूप में दाऊ दयाल खन्ना ने आंदोलन की जमीन तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वह अपने शुरुआती वर्षों में कांग्रेस नेता थे और 1960 के दशक में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री का पद संभाला. यह वही व्यक्ति थे, जिन्होंने 1983 में एक सार्वजनिक सभा में अयोध्या, मथुरा और काशी (वाराणसी) में मंदिरों के पुनर्निर्माण का मुद्दा उठाया था. उनकी पहल राम जन्मभूमि आंदोलन को फिर से शुरू करने में महत्वपूर्ण उत्प्रेरक साबित हुई. सितंबर 1984 में, उन्होंने बिहार के सीतामढ़ी से इस आंदोलन की पहली 'यात्राओं' में से एक का नेतृत्व किया.

स्वामी वामदेव

मृदुभाषी तपस्वी स्वामी वामदेव गौरक्षा के लिए से प्रतिबद्ध थे. स्वामी वामदेव ने 1984 में जयपुर में एक अखिल भारतीय स्तर की बैठक के माध्यम से अलग-अलग हिंदू पंथों और आध्यात्मिक गुरुओं को एक मंच पर लाने का काम किया. आंदोलन की भावी रूपरेखा तैयार करने के लिए 400 से ज्यादा हिंदू धार्मिक नेताओं ने 15 दिनों तक मंथन किया. स्वामी वामदेव ने 1990 में अयोध्या में कार सेवकों का आगे बढ़कर नेतृत्व किया, जब मुलायम सिंह यादव की सरकार के आदेश पर पुलिस गोलीबारी में कई कारसेवक मारे गए थे. वृद्ध होने के वाबजूद वह 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय अयोध्या में मौजूद रहे. First Updated : Friday, 29 December 2023