Ram Mandir Ayodhya : अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनकर तैयार है. मंदिर समेत पूरी अयोध्या नगरी को फूलों और अन्य चीजों से सजाया गया है. कल या 22 जनवरी को अयोध्या में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा होने वाली है. आज जहां पर राम मंदिर बना है वहां कभी विवादित बाबरी मस्जिद हुआ करती थी. कई दशकों की कानूनी लड़ाई और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के हिंदू पक्ष के हक में फैसला सुनाने के बाद यह संभव हो पाया है. मंदिर के लिए 1990 अहम पड़ाव था और इस पड़ाव के केंद्र में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी थे. आज हम इसी कहानी को आपसे साझा करने जा रहे हैं.
अयोध्या में राम जन्मभूमि का मामला साल 1987 के आसपास गरमाने लगा था. हिंदू पक्ष विवादित स्थल का ताला खोलने और वहां पर पूजा-पाठ करने की मांग कर रहा था. इसके लिए विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा जैसे संगठन आंदोलन कर रहे थे. इस समय इनकी केंद्र की कांग्रेस सरकार से बात भी हुई, लेकिन कोई बात बन नहीं पाई.
साल 1987 अयोध्या के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. फैजाबाद (अब अयोध्या) की एक स्थानीय अदालत ने स्थानीय प्रसाशन को विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया. तभी कांग्रेस ने इसको भुनाने का प्रयास किया. साल 1989 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र की राजीव गांधी सरकार और उत्तर प्रदेश की एनडी तिवारी सरकार ने मंदिर का शिलान्यास भी कर दिया. तब बीजेपी, संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों ने कांग्रेस पर ध्रुवीकरण का आरोप लगाते हुए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उस वक्त लालकृष्ण आडवाणी भाजपा अध्यक्ष थे. उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में कारसेवा का ऐलान किया और राम भक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वान किया. आडवाणी ने खुद 12 सितंबर 1990 को ऐलान किया कि वह सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा करेंगे.
आडवाणी का रथ तैयार करवाने की जिम्मेदारी प्रमोद महाजन को मिली थी. उन दिनों आडवाणी का रथ तैयार करने वाले मुंबई निवासी प्रकाश नलावडे उस किस्से को याद करते हैं. चेंबूर में रहने वाले नलावडे का तब साज-सज्जा का व्यवसाय था. वह कहते हैं कि यात्रा से कुछ दिन पहले भाजपा नेता प्रमोद महाजन ने मुझसे संपर्क किया था.
आर्ट डायरेक्टर शांति देव (Shanti Dev) ने रथ डिजाइन किया और मुझे इसे बनाने को कहा गया. तब मैंने रथ बनाने के लिए एल्यूमीनियम और अन्य कठोर धातुओं का उपयोग किया ताकि यह गंभीर से गंभीर परिस्थितियों का सामना कर सके. नलावडे कहते हैं कि आडवाणी के रथ में एक वातानुकूलित केबिन और बिजली बैकअप जैसी सुविधाएं थीं.
लालकृष्ण आडवाणी का रथ केवल 10 दिन में बनकर तैयार हो गया था. इस ‘रथ’ को कराब 10 हजार किलोमीटर यात्रा करनी थी. 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से आडवाणी की रथयात्रा शुरू हुई थी. इस यात्रा को देश के तमाम हिस्सों से होते हुए अयोध्या पहुंचना था और फिर 30 अक्टूबर को कारसेवा में शामिल होना था. प्रमोद महाजन, नरेंद्र मोदी जैसे नेता रथयात्रा की पूरी कमान संभाल रहे थे.
आडवाणी रथयात्रा लेकर गुजरात से निकले और बिहार पहुंचे. 23 अक्टूबर 1990 की रात वह समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके. रात में करीब 1:30 बजे वहां कुछ पुलिस वाले पहुंचे और दरवाजा खुलवाकर आडवाणी से कहा कि आपको गिरफ्तार कर लिया गया है. तब बिहार में लालू यादव की सरकार थी. पुलिस वालों की बात सुनकर आडवाणी ने कहा- ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’…और वह अफसरों के साथ आगे बढ़ गए.
बिहार में आडवाणी की गिरफ्तारी से कार सेवक उग्र हो गए. इसके बाद जो हुआ वह सबको मालूम है. 30 अक्टूबर को आडवाणी तो अयोध्या नहीं पहुंच पाए लेकिन हजारों की तादाद में कार सेवक अयोध्या पहुंच गए. जब वे विवादित बाबरी ढांचे की तरफ जाने लगे तो यूपी की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया. इस गोलीबारी में 5 कार सेवकों की मौत हो गई. 30 अक्टूबर को हुई इस गोलीबारी के बाद माहौल और तनावपूर्ण हो गया. 2 नवंबर को अशोक सिंघल, उमा भारती जैसे नेताओं की अगुवाई में कार सेवक ढांचे की तरफ बढ़े. इस बार फिर गोली चली और कई कार सेवकों की जान चली गई.
1990 के गोलीकांड ने आग में घी डालने का काम किया और राम मंदिर आंदोलन और मजबूती से आगे बढ़ने लगा. साल 1992 में केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगह सरकार बदल चुकी थी. केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी तो उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह (Kalyan Singh) मुख्यमंत्री थे. 6 दिसंबर 1992 को फिर हजारों की तादाद में कार सेवक अयोध्या में इकट्ठा हुए. इस बार उन्होंने विवादित ढांचे को ढहा दिया. First Updated : Sunday, 21 January 2024