Baba Saheb Ambedkar: डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक माना जाता है. वे जीवन भर निचले तबके के लोगों, महिलाओं और मजदूरों को समानता का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष करते रहे. छुआछूत और जात-पात की कुरीतियों के खिलाफ उनकी आवाज हमेशा उठती रही. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उन्होंने हिंदू धर्म क्यों छोड़ा और बौद्ध धर्म अपनाया? आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी.
जाति प्रथा से आहत बाबा साहब
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि इंसान के विकास के लिए स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का होना बेहद जरूरी है. वे हमेशा कहते थे कि ऐसा धर्म होना चाहिए, जो इंसान को ये तीन बातें सिखाए. लेकिन हिंदू धर्म में जन्म लेने के बावजूद, उन्होंने बचपन से ही जाति, असमानता और छुआछूत का सामना किया था. उन्हें लगता था कि हिंदू धर्म में महिलाओं, दलितों और श्रमिकों के साथ भेदभाव होता है. वे ये भी मानते थे कि हिंदू धर्म में कर्म का सिद्धांत केवल दलितों के शोषण के लिए इस्तेमाल होता है.
सामाजिक और कानूनी संघर्ष
बाबा साहब ने हिंदू धर्म में प्रचलित कुरीतियों और वर्ण व्यवस्था को खत्म करने के लिए कई सामाजिक संघर्ष किए. वे कानूनी लड़ाई भी लड़े. लेकिन जब उन्हें लगा कि इन प्रयासों का कोई असर नहीं हो रहा है, तो उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें सम्मानजनक जीवन और समानता का अधिकार चाहिए, तो उन्हें खुद की मदद करनी होगी.
धर्म परिवर्तन की घोषणा
13 अक्टूबर 1935 को, बाबा साहब ने सबको चौंका दिया. उन्होंने ऐलान किया कि वे हिंदू धर्म छोड़ने वाले हैं. उनका मानना था कि जाति प्रथा के कारण हिंदू धर्म में करुणा, समानता और स्वतंत्रता का अभाव है. फिर 14 अक्टूबर 1956 को, उन्होंने नागपुर में अपने 3.65 लाख समर्थकों के साथ हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया. उस समय उन्होंने कहा, 'मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं.'
बौद्ध धर्म का चयन: कारण और उद्देश्य
बाबा साहब ने बौद्ध धर्म इसलिए अपनाया क्योंकि वे मानते थे कि यह धर्म प्रज्ञा, करुणा और समता का संदेश देता है. उनके लिए प्रज्ञा का मतलब था अंधविश्वास के खिलाफ समझदारी, करुणा का मतलब था पीड़ितों के प्रति संवेदना और समता का मतलब था जाति, धर्म, लिंग और ऊंच-नीच से ऊपर उठकर इंसानियत का विकास. धर्म परिवर्तन के बाद उन्होंने कहा कि यह केवल धर्म परिवर्तन नहीं था, बल्कि धर्म से उत्पन्न दासता से मुक्ति थी.
बाबा साहब का संघर्ष
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन और उनका संघर्ष यह बताता है कि उन्होंने समाज में व्याप्त असमानताओं के खिलाफ कितनी बड़ी लड़ाई लड़ी. 14 अप्रैल 1891 को जन्मे बाबा साहब ने 06 दिसंबर 1956 को इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनका संदेश आज भी लोगों को प्रेरित करता है. उनके इस फैसले ने न केवल उन्हें बल्कि लाखों लोगों को एक नई दिशा दिखाई, जो आज भी समाज में समानता और न्याय की लड़ाई में महत्वपूर्ण है. First Updated : Sunday, 13 October 2024