नहीं रहे पीएम मोदी के आर्थिक सलाहकार, 69 वर्ष की आयु में बिबेक देबरॉय का निधन
Bibek Debroy Passes Away: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष और भारत के शीर्ष अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय का 69 वर्ष की आयु में शुक्रवार सुबह निधन हो गया. उन्हें एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था. देबरॉय के निधन से भारतीय आर्थिक और बौद्धिक जगत को बड़ी क्षति हुई है.
Bibek Debroy passes away: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्यक्ष और भारत के शीर्ष अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय का 69 वर्ष की आयु में शुक्रवार सुबह निधन हो गया. उन्हें एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था. देबरॉय के निधन से भारतीय आर्थिक और बौद्धिक जगत को बड़ी क्षति हुई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि देबरॉय एक महान विद्वान थे. जिन्होंने अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति और राजनीति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दिया. मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि देबरॉय ने अपने कार्यों के माध्यम से भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी.
बिबेक देबरॉय का शैक्षिक और पेशेवर सफर
बिबेक देबरॉय की शिक्षा रामकृष्ण मिशन स्कूल, नरेन्द्रपुर से शुरू हुई. उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता; दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से उच्च शिक्षा प्राप्त की. अपने करियर के दौरान उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स, भारतीय विदेश व्यापार संस्थान, और वित्त मंत्रालय की यूएनडीपी परियोजना में भी काम किया. 2015 से 2019 तक वे नीति आयोग के सदस्य रहे.
आर्थिक नीति और संस्कृत ग्रंथों में देबरॉय का योगदान
बिबेक देबरॉय को भारतीय आर्थिक नीतियों में उनके योगदान के लिए याद किया जाएगा।. उन्होंने मैक्रोइकॉनॉमिक्स, सार्वजनिक वित्त, और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में गहरा अध्ययन किया और भारतीय रेलवे में सुधार पर भी विशेष ध्यान दिया. इसके अलावा, वे महाभारत और भगवद्गीता जैसे शास्त्रीय संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद के लिए भी प्रसिद्ध थे. उनके कार्यों ने प्राचीन भारतीय ज्ञान को आधुनिक पाठकों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
बिबेक देबरॉय: एक बहुमुखी विद्वान
बिबेक देबरॉय ने न केवल आर्थिक नीति में बल्कि भारत के प्राचीन ग्रंथों को सरल भाषा में अनुवादित कर नई पीढ़ी तक पहुंचाने में भी योगदान दिया. उनके निधन से भारतीय बौद्धिक क्षेत्र में एक बड़ी कमी महसूस की जा रही है.