क्या है सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A जिसके तहत बाग्लादेश से आए लोगों को मिलेगी नागरिकता

Supreme Court: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाता हुए कहा कि सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A की वैधता को बरकार रखा है. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच का यह 4-1 के मत से आया है. सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच में शामिल जस्टिस पारदीवाला ने इस फैसले पर असहमति जताई है.

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Supreme Court on Citizenship Act 6A: सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा. 17 अक्टूबर को 4-1 से, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता की पुष्टि की, जिसने अवैध प्रवासियों को नागरिकता का लाभ दिया. ज्यादातर बांग्लादेश से, जो 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच असम में दाखिल हुए थे.

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का एक राजनीतिक समाधान था. जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा ने अपने बहुमत के फैसले में कहा कि संसद के पास प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है. इसके अलावा जस्टिस पारदीवाला ने धारा 6ए को असंवैधानिक ठहराने के लिए असहमतिपूर्ण फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा, “किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की मौजूदगी का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन नहीं है.”

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि असम समझौता बांग्लादेश के निर्माण के बाद अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान था और धारा 6ए विधायी समाधान था. बहुमत के फैसले में यह भी कहा गया कि 25 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तिथि तर्कसंगत थी, क्योंकि यह वह तारीख थी जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम समाप्त हुआ था. बेंच ने कहा, "इसलिए, इसे सामान्य रूप से अवैध प्रवासियों के लिए माफी योजना के समान नहीं माना जा सकता है."

बांग्लादेश से प्रवासियों के प्रवेश के खिलाफ छह साल तक चले आंदोलन के बाद तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 1985 में कानून में धारा 6ए को जोड़ा गया था. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा था कि जनवरी 1966 और मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले 17,861 प्रवासियों को नागरिकता दी गई थी.

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि असम की स्थानीय आबादी में अप्रवासियों का प्रतिशत बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करने वाले अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है और इसलिए असम को अलग करना "तर्कसंगत" था. न्यायालय ने कहा, "असम में 40 लाख प्रवासियों का प्रभाव पश्चिम बंगाल में 57 लाख प्रवासियों की तुलना में ज्यादा है, क्योंकि असम में भूमि क्षेत्र पश्चिम बंगाल की तुलना में बहुत कम है."

क्या है सिटीजनशिफ धारा-6

भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 में धारा 6A असम राज्य से संबंधित है और असम समझौते के कार्यान्वयन के संदर्भ में नागरिकता प्राप्त करने के प्रावधानों से जुड़ी है. असम समझौता 1985 में भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हुआ था, जिसका मुख्य उद्देश्य असम में अवैध प्रवास की समस्या का समाधान करना था.

धारा 6A के तहत आने वाले प्रावधान:
1 जनवरी, 1966 से पहले प्रवास: वे लोग जो 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में आए थे, उन्हें भारतीय नागरिक माना जाएगा.
1 जनवरी, 1966 और 24 मार्च, 1971 के बीच प्रवास: जो लोग इस अवधि के दौरान असम में आए, उन्हें 10 साल के लिए अस्थायी रूप से नागरिक माना जाएगा. इसके बाद, उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी यदि उन्होंने खुद को विदेशी ट्रिब्यूनल के सामने पंजीकृत कराया है और 10 साल तक भारत में रह चुके हैं.
24 मार्च, 1971 के बाद प्रवास: जो लोग 24 मार्च, 1971 के बाद भारत में आए, उन्हें भारतीय नागरिकता नहीं मिलेगी और उन्हें असम से बाहर निकाला जाएगा. First Updated : Thursday, 17 October 2024