Assembly Election 2023: चुनावी रुझानों में कांग्रेस की हार का संकेत, राहुल गांधी की इन तीन ग़लतियों के कारण मिला बीजेपी को फ़ायदा
Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जारी विधानसभा चुनाव की मतगणना के रुझानों में कांग्रेस बुरी तरह हार रही है. अगर आख़िरी नतीजा ऐसा ही रहता है तो साल 1980 के बाद कांग्रेस के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब हिंदी पट्टी के किसी भी राज्य में उसकी खुद की सरकार नहीं होगी.
Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जारी विधानसभा चुनाव की मतगणना के रुझानों में कांग्रेस बुरी तरह हार रही है. अगर आख़िरी नतीजा ऐसा ही रहता है तो साल 1980 के बाद कांग्रेस के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब हिंदी पट्टी के किसी भी राज्य में उसकी खुद की सरकार नहीं होगी. पार्टी की इस हार पर कांग्रेस के पर बड़े नेताओं ने मुँह बंद कर ली.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की प्रदर्शन को लेकर काफ़ी चर्चा हो रही है. क्योंकि पार्टी की इंटर्नल रिपोर्ट में इन राज्यों में जीत का दावा किया गया था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि इस बार मध्य प्रदेश में हम 135 सीटें जीतेंगे. वहीं, तेलंगाना के मतदान के बाद कई एजेंसियों के सर्वे में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति मज़बूत बताई जा रही थी. आइए समझने की कोशिश करते हैं कांग्रेस की वो तीन गलतियां, जो बनी कांग्रेस की हार की वजह.
1. चुनावी कैंपेन की रणनीति में चुक
कांग्रेस पार्टी का हाईकमान चुनाव से पहले गुटबाजी पर कंट्रोल नहीं कर पाई. छत्तीसगढ़ में चुनाव से कुछ महीने पहले पार्टी ने उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के कद को आगे बढ़ाने में लगी रही, जिससे सीएम भूपेश बघेल गुट की छवि बैकफुट पर आ गया. चुनाव से कुछ दिन पहले पार्टी ने मुख्यमंत्री चेहरा घोषित नहीं करने का फैसला किया, जिसके बाद पार्टी को पूरी कैंपेन के लिए रणनीति बदलनी पड़ी. छत्तीसगढ़ में चुनाव से पहले कांग्रेस 'भूपेश है तो भरोसा है' का कैंपेन चला रही थी, जिसको खूब लोग सराह भी रहे थे.
लेकिन पार्टी हाईकमान के फैसले के बाद इस नारे को बदल दिया गया. पार्टी 'कांग्रेस है तो भरोसा है' के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरी. कम समय होने की वजह से यह नारा लोगों को प्रभावित नहीं कर पाया. राजस्थान में भी कांग्रेस आंतरिक तौर पर गुटबाजी खत्म नहीं कर पाई. अशोक गहलोत समर्थक नेताओं के कई सीटों पर सचिन पायलट चुनाव प्रचार नहीं करने गए. इनमें दानिश अबरार की सवाई माधोपुर और चेतन डूडी की डिंडवाना सीट प्रमुख है. राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की कोई भी संयुक्त रैली कांग्रेस अलग से नहीं करवा पाई.
2. टिकट बंटवारे में लेटलतीफी
चुनावी राज्य मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी चुनाव से 3 महीने पहले उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करने में काफी समय ली और चुनाव के बेहद नजदीक सीटों का ऐलान किया गया. मध्य प्रदेश में तो टिकट बंटवारे को लेकर दिग्विजय और कमलनाथ आमने-सामने हो गए. राजस्थान में आखिरी चरण के टिकट बंटवारे के वक्त कांग्रेस चुनाव समिति की बैठक से राहुल गांधी गायब हो गए.
3. कांग्रेस का मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं दिखा सक्रिय
चुनावी राज्यों में मॉनिटरिंग के लिए कांग्रेस ने वरिष्ठ प्रयवेक्षक नियुक्त किए थे, लेकिन पूरे चुनाव के दौरान वे सभी गायब रहे. राजस्थान में अशोक गहलोत तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ ही सर्वे-सर्वा थे. दोनों राज्यों में हाईकमान ने जो प्रभारी नियुक्त किए थे, वो गहलोत और कमलनाथ से काफी कमजोर थे. राजस्थान में सुखजिंदर रंधावा को पार्टी ने प्रभारी बनाया था. रंधावा अशोक गहलोत से काफी जूनियर हैं. मध्य प्रदेश की कमान भी पार्टी ने सुरजेवाला के हाथों में दी थी, जो कमलनाथ से काफी जूनियर हैं.