ऐसे ही थोड़ी लग जाएगा ST/SC एक्ट! सुप्रीम कोई ने बताया कब होगा लागू

Supreme Court On ST/SC Act: देश में कई बार देखा जाता है कि निजी झगड़े और किसी भी सामान्य सी बात पर लोग SC/ST एक्ट के तरह मामला दर्ज करा देते हैं. इससे आरोपी के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती है. भले ही मामला बाद में गलत साबित हो जाए. क्योंकि, इस कानून में काफी कड़े प्रावधान हैं. ऐसे में एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्लियर किया है कि कानून का दायरा क्या होगा और इस एक्ट के तहत कार्रवाई कब और कैसे होगी.

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Supreme Court On ST/SC Act: अगर एक बार किसी के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज हो गया है तो समझों को लंबा समय जेल, थाना, कोर्ट और पेशी में कटना तय है. इस कानून में इतने कड़े प्रावधान है कि SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज होने पर पहले गिरफ्तारी होती है फिर जांच आगे बढ़ती है. इसमें जमानत मिलना भी कठिन होता है. भले ही बाद में मामला गलत साबित हो जाए. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम समाचार पोर्टल से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए SC/ST एक्ट पर नियमों को क्लियर किया है. इससे संभव है कि कई लोगों को इस आधार पर राहत मिले.

शुक्रवार को जस्टिस जेबी परदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने ऑनलाइन मलयालम समाचार चैनल के एडिटर से जुड़े मामले में सुनवाई की और आरोपी को जमानत दे दी. जिसे हाईकोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया था. इसी के साथ कोर्ट ने बताया कि एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कब और कैसे मामला बन सकता है.

क्या था मामला?

एक ऑनलाइन मलयालम समाचार चैनल के संपादक शाजन सकारिया हैं. उन्होंने एक समाचार वीडियो पब्लिश किया था. जो केरल के विधायक पीवी श्रीनिजिन के खिलाफ था. इसमें उन्होंने विधायक को 'माफिया डॉन' कहा था. इसके बाद श्रीनिजिन ने मामला दर्ज कराया था. मामला कोर्ट पहुंचा और सकारिया ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका लगाई. लेकिन, ट्रायल कोर्ट ने गिरफ्तारी से पहले जमानत से इनकार कर दिया. इसके बाद हाई कोर्ट ने भी जमानत से मना कर दिया.

'हर मामला जाति आधारित अपमान नहीं'

इस फैसले के खिलाफ संपादक शाजन सकारिया ने अपने वकील सिद्धार्थ लूथरा और गौरव अग्रवाल के जरिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और अग्रिम जमानत की मांग की. शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई हुई तो कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी. कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य किया गया हर अपमान या धमकी जाति आधारित अपमान की भावना नहीं है.

कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने 1989 के कानून की व्याख्या की और यूट्यूब चैनल मरूनादान मलयाली के संपादक और प्रकाशक शाजन सकारिया को जमानत देते हुए कहा कि अपीलकर्ता का वीडियो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना को बढ़ावा देने जैसा नहीं लगता. इसका पूरे समुदाय से कोई लेना देना नहीं है. संपादक के निशाने पर केवल शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) ही था.

कानून को समझना जरूरी

पीठ ने कहा कि मामले के व्यापक संदर्भ में समझा जरूरी है. 'माफिया डॉन' बोलकर किसी व्यक्ति की निंदा करना आईपीसी की धारा 500 के तहत मानहानि का अपराध हो सकता है. ये ST/SC एक्ट का मामला नहीं है. कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता केवल इस आधार मामला नहीं चलवा सकता कि वो अनुसूचित जाति का सदस्य है. क्योंकि, इस वीडियो में उसे जाति के कारण या उसके आधार पर टारगेट नहीं किया गया है.

First Updated : Saturday, 24 August 2024