Chandrayan 3: ख्वाब से हकीकत तक का सफर..., जानिए चंद्रयान 1 से 3 तक की पूरी दास्तां 

ISRO का पूर्व नियोजित ड्रीम प्रोजेक्ट मिशन चंद्रयान 14 जुलाई को दोपहर के 02:35 बजे चंद्रमा के लिए रवाना कर दिया जाएगा.

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Chandrayan 3: चंद्रयान 3 का काउंटडाउन शुरू हो चुका है.  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की तरफ से इस बात की सूचना दी गई है कि लान्च के 25 घंटे पहले का काउंटडाउन शुरु हो चुका है. बता दें कि ISRO का पूर्व नियोजित ड्रीम प्रोजेक्ट मिशन चंद्रयान 14 जुलाई को दोपहर के 02:35 बजे चंद्रमा के लिए रवाना कर दिया जाएगा. 

याद है चंद्रयान 2 की अपूर्ण सफलता  

ISRO का यह मिशन कई मायनों में बहुत खास है. वर्ष 2019 की वो तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी थी जिसमें ISRO जैसी बड़ी संस्था के तत्कालीन CEO डॉ. के सीवान प्रधानमंत्री मोदी के कंधों पर सर रखकर रोए थे. वह समय था, जब भारत ने अपने ड्रीम मिशन चंद्रयान 2 में पूर्ण सफलता नहीं पाई थी. 

दरअसल, 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान 2 को भारत की धरती से लॉन्च किया गया था. लॉंन्चिंग के लगभग एक महीने के अंदर यानी 20 अगस्त 2019 को सुबह 09:02 बजे यान चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया था. पूरा देश इस जश्न को एक साथ मना रहा था. ये मिशन सिर्फ वैज्ञानिक दायरे तक ही सीमित नहीं था बल्कि धरती से चंद्रमा को निहारते हुए हर एक भारतीय के सपनों का मिशन था. 

पूर्ण सफल नहीं हो पाया पिछला मिशन... 

चंद्रयान 2 में ऑरबिटर के साथ विक्रम लैंडर को भी भेजा गया था. जो चांद की सतह पर उतर कर वहां पानी के होने का प्रमाण जुटाने वाला था. 2 सितंबर, 2019 को चंद्रमा से भारत के लिए एक खबर मिलती है कि 100 किमी चंद्र की ध्रुवीय कक्षा में परिक्रमा करने के बाद विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर उतारने के लिए ऑर्बिटर से अलग कर दिया गया है. इस मिशन को सिर्फ भारत ही नहीं अपितु पूरी दुनिया आंख गड़ा कर देख रही थी. भारत के पीएम नरेंद्र मोदी भी ISRO के केंद्र में मौजूद थे. तभी अचनानक से खबर आती है कि चांद की सतह पर उतारा जाने वाला विक्रम लैंडर ऑर्बिटर से अपना संपर्क खो बैठता है. 

हम तब भी असफल नहीं थे

कड़ी मशक्कत के बाद भी लैंडर से दोबारा संपर्क स्थापित नहीं हो सका. अगर ये मिशन पूरी तरह से सफल हो जाता तो अंतरिक्ष में लैंड करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश होता. हालांकि उस समय भी भारत के इस मिशन ने 95 फीसदी तक सफलता पाई थी. 

चंद्रयान 2 पर रूका नहीं भारत

चंद्रयान 2 में पूर्ण सफलता न पाने के बाद भी भारत रुका नहीं. इस दौरान ISRO के CEO बदल गए. डॉ. के सीवान की जगह एस. सोमनाथ ने दायित्व संभाला लेकिन जोश और जजबा सब कुछ वही. मात्र 4 साल में ही ISRO एक बार फिर से तैयार हो गया चंद्रमा में जीवन की तलाश करने के लिए. मिशन चंद्रयान 3 लॉन्च के लिए तैयार है और इसमें उन सभी पहलुओं को दुरुस्त कर लिया गया है जिसकी वजह से पिछल मिशन में कुछ अड़चने पड़ी थीं. 

चंद्रयान 2 में मिली अधूरी सफलता से निराश होकर ISRO रुका नहीं बल्कि अपनी गलतियों से सीखते हुए आगे बढ़ता गया. ISRO अपने नए मिशन चंद्रयान 3 के माध्यम से लैंडर को चंद्रमा की सतह पर उतारकर अपने प्रयोगों से यह जानने का प्रयास करेगा कि चंद्रमा में जीवन की कितनी संभावना है. 

चंद्रयान 3 है सबसे खास 

इस मिशन की सबसे खास बात ये है कि चंद्रयान चंद्रमा के उस दक्षिणी हिस्से में लैंडर के उतारने वाला है जहां आज तक किसी देश ने जाने कि हिम्मत नहीं की है. बता दें कि यह चंद्रमा का ऐसा क्षेत्र है जहां सूरज की रोशनी पहुंच पाती. इस स्थान पर उतरकर लैंडर का काम होगा कि वह चंद्रमा की सतह पर तापमान का अंदाजा लगाए, चंद्रमा में आने वाले भूकंप को समझे, प्लाज्मा घनत्व और इसकी विविधताओं की जांच करे. इसी के साथ ही वहां पानी की मौजूदगी और हर एक चीज के बारे में जानकारी एकत्रित कर धरती पर भेजना लैंटर का लक्ष्य होगा. 
 
इस मिशन का सबसे पहला उद्देश्य होगा कि चंद्रमा की सतह पर सेफ और सॉफ्ट लैंडिंग हो. रोवर चंद्रमा की ऑर्बिट पर सही से घूमे और ISRO जिन प्रयोगों के लिए इसे भेज रहा है वे सफल हो सकें. 
                              
सबसे पहले जिसने चंद्रमा पर जाने का सपना दिखाया 
बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं कि भारत ने चंद्रमा में जाने का ख्वाब कैसे देखा और इसमें किसका योगदान है. मीडिया को दिए हुए एक इंटरव्यू में चंद्रयान 1 के डायरेक्टर श्रीनिवास हेगड़े ने कहा था कि चंद्रमा पर जाने का सपना डॉ. के कस्तूरीरंगन ने देखा था जो कि 1994 से 2003 तक इसरो के अध्यक्ष थे. श्रीनिवास ने बताया था कि कस्तूरीरंगन चाहते थे कि ISRO भारत की महाशक्ति बनने की महत्वाकाक्षां में एक छोटी सी भूमिका निभाए. उनके ही इस विचार और प्रयास से चंद्रयान मिशन एक आकार ले सका और चंद्रयान 1 को लॉन्च किया गया था. 

चंद्रयान 1 थी बड़ी उपलब्धि 

22 अक्टूबर, 2008 को चंद्रयान 1 को लॉन्च किया गया था. यह भारत का पहला मिशन था. इस मिशन में भारत, अमेरिका, जर्मनी, स्वीडन, ब्रिटेन और बुल्गारिया में बनाए गए कुल 11 वैज्ञानिक उपकरण प्रयोग में लाए गए थे. इस मिशन ने चंद्रमा की 3,400 परिक्रमाएं की थी. 29 अगस्त 2009 को यह मिशन ISRO से संपर्क टूटने के बाद समाप्त हो गया था. 
 

First Updated : Tuesday, 22 August 2023