पृथ्वी पर सबसे ऊंचे माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने की कोशिश में 12 पर्वतारोहियों की मौत हो गयी है. इससे पहले 2019 में 11 लोगों की मौत की पुष्टि हुई थी. एक रिपोर्ट के अनुसार विशेषज्ञों का कहना है कि तिब्बती पठार जहां माउंट एवरेस्ट स्थित है, वहां पर तापमान 1979 के बाद से 40 सालों में 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या enviroment change माउंट एवरेस्ट के रास्ते में हो रही मौतों का कारण बन रहा है?
इस साल एवरेस्ट पर मरने वाले 12 लोग गर्मियों से पहले एवरेस्ट पर चढ़ने या उतरने के दौरान मारे गए हैं. इनमें से तीन लोगों की मौत बर्फ गिरने से हो गयी. एवरेस्ट पर चढ़ाई का मौसम खत्म हो गया है और अब तक पांच लोग लापता हैं. दूसरी तरफ नेपाल में रिकॉर्ड संख्या में चढ़ाई परमिट जारी किए जाने के बाद पर्वत पर भीड़भाड़ बढ़ी है. जो परेशानी पैदा कर रही है. लेकिन एक तरफ एवेरेस्ट कई मौतों का कारन बन रहा है तो व्ही एक तरफ ये नेपाल और एवेरेस्ट के इलाके के पास रहने वाले लोगों की आमदनी का अहम हिस्सा है. बढ़ते avalanche या snow storm के चलते ही 40 परसेंट लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी है.
साल 2022 में अमेरिकी की मैन यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में ये बताया गया कि जलवायु का इस तरह का प्रभाव एवरेस्ट पर चढ़ने के अनुभव को बदल देगा. जलवायु परिवर्तन से जिस तरह से पहाड़ की बर्फ पिघल रही है उससे आने वाले समय में बर्फ की जगह पर चट्टान दिखाई देने लगेंगी. पिघलते ग्लेशियर एवरेस्ट बेस कैंपों को भी नुकसान पहुंचाएंगे, और पीक सीजन के दौरान लगभग 1,000 पर्वतारोहियों को नुकसान का सामना करना पड़ेगा. अब इन सभी आकड़ों की माने तो हर साल कैंप की जगह बदली है,जिससे साफ़ है की एनवीरोमेंट में चेंज और उसके चलते एवेरेस्ट पर भी काफी चेंज देखने को मिला है।