Delhi Elections 2025: राहुल गांधी ने चुनावी अभियान के लिए सीलमपुर को ही क्यों चुना?, जानें क्या है कांग्रेस का कनेक्शन

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सीलमपुर में चुनावी रैली के जरिए कांग्रेस के अभियान का आगाज करने जा रहे हैं. दिल्ली में खोई सियासी जमीन तलाश रही कांग्रेस की पहली चुनावी रैली के लिए राहुल गांधी ने सीलमपुर को ही क्यों चुना?

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

दिल्ली के दंगल में आज कांग्रेस चुनावी शुरूआत करने जा रही है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सीलमपुर में एक रैली के जरिए प्रचार अभियान का आगाज करेंगे. राहुल की यह जनसभा इसलिए भी अहम मानी जा रही है कि कांग्रेस के तेवर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ तल्ख होंगे या फिर पार्टी के हमलों का केंद्र बीजेपी होगी. इससे यह रुख भी साफ हो जाएगा.  कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने दिल्ली चुनाव की पहली रैली के लिए सीलमपुर को ही क्यों चुना? आईए जानते हैं....

कांग्रेस का गढ़ रहा है सीलमपुर

साल 1998 से 2013 तक लगातार 15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस पार्टी AAP की मजबूती के बाद से ही हाशिए पर है. 2015 और 2020 के चुनावों में तो कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला. ऐसे में अब पार्टी की रणनीति दिल्ली में खोई सियासी जमीन वापस पाने के लिए पुराने गढ़ यानी पुराने समीकरण पर लौटने की है. सीलमपुर भी कांग्रेस का गढ़ रहा है. यहां मुस्लिम और दलित के साथ अगड़ों का कॉम्बिनेशन पार्टी की ताकत रहा. सीलमपुर में रैली से चुनाव अभियान का आगाज भी इसी रणनीति का हिस्सा है. 

सीलमपुर में मुस्लिम आबादी अधिक

सीलमपुर विधानसभा सीट दिल्ली की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली सीटा है. यहां करीब 55 से 60 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. जो परिणाम तय करने में अहम भूमिका अदा करते हैं. कभी कांग्रेस के साथ रहा मुस्लिम समुदाय अब आम आदमी पार्टी की ओर चला गया. इससे कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा और पिछले दो चुनावों में यहां से AAP का ही प्रत्याशी जीत रहा है. 

हाल के दिनों में सीलमपुर में बड़े राजनीतिक बदलाव हुए हैं. कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे चौधरी मतीन अहमद पिछले दिनों AAP में शामिल हो गए थे. आम आदमी पार्टी ने चौधरी मतीन के बेटे जुबैर अहमद को चुनाव मैदान में भी उतार दिया है. सत्ताधारी दल के साथ सिटिंग विधायक अब्दुल रहमान ने टिकट कटने के बाद कांग्रेस के हाथ थाम लिया. राहुल गांधी का सीलमपुर से चुनाव प्रचार शुरू करना मुस्लिम वोटर्स के बीच पार्टी की सियासी जमीन फिर से मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

पुराने समीकरण पर लौटने का संकेत

सीलमपुर में राहुल गांधी की पहली चुनावी रैली को 'जय भीम, जय संविधान' नाम दिया गया है. यह कांग्रेस के दलित-मुस्लिम के पुराने समीकरण की ओर लौटने का भी संकेत माना जा रहा है. इस नाम के सहारे डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की विरासत के सहारे दलितों को फिर से अपने पाले में लाने की कोशिश है तो साथ ही संविधान के सहारे ऐसे वर्गों और मतदाताओं को लामबंद करने की, जो संविधान को लेकर चिंतित हैं.

राहुल गांधी अपने संबोधनों में बीजेपी को संविधान के मुद्दे पर घेरते रहे हैं, आंबेडकर के अपमान का आरोप लगाते रहे हैं. दिल्ली में 20 फीसदी से अधिक दलित आबादी है जो गोकुलपुरी, सीमापुरी, तिमारपुर, बुराड़ी, कृष्णा नगर और लक्ष्मी नगर जैसी विधानसभा सीटों के नतीजे तय करने में निर्णायक भूमिका निभाती है. राहुल गांधी की सीलमपुर रैली दलित-मुस्लिम वोटबैंक को एकजुट अपने पाले में वापस लाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है.

रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है सीलमपुर

सीलमपुर न सिर्फ विधानसभा, लोकसभा चुनावों के लिहाज से भी रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण है. यह इलाका तीन महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों के बीच पुल की तरह काम करता है. ये तीन लोकसभा सीटें हैं- नॉर्थ ईस्ट दिल्ली, ईस्ट दिल्ली और चांदनी चौक. राहुल गांधी का फोकस राज्यों से अधिक राष्ट्रीय राजनीति पर रहा है. ऐसे में राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से भी यह विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है.

विधानसभा के लिहाज से देखें तो सीलमपुर के साथ ही आसपास की सीटों पर भी दलित-मुस्लिम वोटर विनिंग कॉम्बिनेशन बनाते हैं. दिल्ली में दलित और मुस्लिम आबादी करीब-करीब 30 फीसदी पहुंचती है और इन वर्गों का वोटिंग पैटर्न भी कुछ ऐसा रहा है कि जिस तरफ जाते हैं, लगभग एकमुश्त जाते हैं. ऐसे में अगर पार्टी इन वर्गों को अपने पाले में ला पाती है तो दिल्ली की सियासत में खोई जमीन तलाश रही कांग्रेस के लिए यह संजीवनी की तरह होगा.

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13 January 2025, 03:55 PM IST

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