Delhi Ordinance: राघव चड्ढा ने दिल्ली से जुड़े अध्यादेश के विरोध में जगदीप धनखड़ को लिखा पत्र, कहीं ये तीन महत्वपूर्ण बात
Raghav Chadha: आप सांसद राघव चड्ढा ने रविवार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को दिल्ली से जुड़े अध्यादेश का विरोध करते हुए एक पत्र लिखा है. उन्हें आशा है कि इस पेश करने की अनुमति नहीं देंगे.
Parliament Monsoon session 2023: राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने रविवार को सभापति जगदीप धनखड़ को दिल्ली से जुड़े अध्यादेश का विरोध करते हुए एक पत्र लिखा है. उन्होंने अपने पत्र में तीन महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख भी किया. राघव चड्ढा ने पत्र को पोस्ट करते हुए ट्वीट भी किया. उन्होंने कहा, 'दिल्ली अध्यादेश के स्थान पर विधेयक लाने का विरोध करते हुए राज्यसभा के माननीय सभापति को मेरा पत्र.'
आप सांसद ने आगे कहा, 'जैसा कि पत्र में रेखांकित किया गया है, दिल्ली अध्यादेश को बदलने के लिए राज्यसभा में विधेयक को पेश करना तीन महत्वपूर्ण कारणों से अस्वीकार्य है. मुझे आशा है कि माननीय सभापति विधेयक को पेश करने की अनुमति नहीं देंगे और सरकार को इसे वापस लेने का निर्देश देंगे.'
My letter to the Hon'ble Chairman of Rajya Sabha opposing the very introduction of the Bill replacing the Delhi Ordinance.
— Raghav Chadha (@raghav_chadha) July 23, 2023
The introduction of the Bill in Rajya Sabha to replace the Delhi Ordinance is IMPERMISSIBLE for three important reasons, as highlighted in the letter.
I… pic.twitter.com/tW10WWPTgG
राघव चड्ढा ने सभापति को लिखे पत्र में कहा कि केंद्र सरकार ने 19 मई, 2023 को राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश को बदलने के लिए विधेयक पेश करने की घोषणा की थी. उन्होंने कहा कि 11 मई 2023 को, सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से माना कि संवैधानिक आवश्यकता के रूप में दिल्ली की एनसीटी सरकार में सेवारत अधिकारी सरकार की निर्वाचित शाखा यानी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में निर्वाचित मंत्रिपरिषद के प्रति जवाबदेह हैं. जवाबदेही की इस कड़ी को सरकार के लोकतांत्रिक और लोकप्रिय रूप से जवाबदेह मॉडल के लिए महत्वपूर्ण माना गया था.
आप सांसद ने आगे कहा कि एक ही झटके में अध्यादेश ने दिल्ली की विधिवत निर्वाचित सरकार से इस नियंत्रण को फिर से छीनकर और इसे अनिर्वाचित एलजी के हाथों में सौंपकर इस मॉडल को रद्द कर दिया है. उन्होंने कहा कि विशेष रूप से अध्यादेश तीन कारणों से स्पष्ट रूप से असंवैधानिक है.
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विपरीत
राघव चड्ढा ने कहा कि ये अध्यादेश और अध्यादेश की तर्ज पर कोई भी विधेयक, अनिवार्य रूप से संविधान में संशोधन किए बिना इस माननीय न्यायालय द्वारा निर्धारित स्थिति को पूर्ववत करने का प्रयास करता है, जहां से यह स्थिति उत्पन्न होती है. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विपरीत, दिल्ली सरकार से "सेवाओं" पर नियंत्रण छीनने की मांग करके, अध्यादेश ने अपनी कानूनी वैधता खो दी है क्योंकि उस फैसले के आधार को बदले बिना अदालत के फैसले को रद्द करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आधार को नहीं बदलता है, जो कि संविधान ही है.
239AA को नष्ट करने वाला विधेयक
आप सांसद ने कहा कि अनुच्छेद 239AA(7)(a) संसद को अनुच्छेद 239AA में निहित प्रावधानों को "प्रभावी बनाने" या "पूरक" करने के लिए कानून बनाने का अधिकार देता है. अनुच्छेद 239AA की योजना के तहत, 'सेवाओं' पर नियंत्रण दिल्ली सरकार के पास है. इसलिए, अध्यादेश के अनुरूप एक विधेयक अनुच्छेद 239AA को "प्रभाव देने" या "पूरक" करने वाला विधेयक नहीं है, बल्कि अनुच्छेद 239AA को नुकसान पहुंचाने और नष्ट करने वाला विधेयक है, जो अस्वीकार्य है.
न्यायालय के फैसले इंतजार करना
राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने कहा कि अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती के अधीन है, जिसने 20 जुलाई, 2023 को अपने आदेश के माध्यम से इस प्रश्न को संविधान पीठ के पास भेज दिया है कि क्या संसद का एक अधिनियम (और सिर्फ एक अध्यादेश नहीं) अनुच्छेद 239AA की मूल आवश्यकताओं का उल्लंघन कर सकता है. चूंकि संसद द्वारा पारित किसी भी अधिनियम की संवैधानिकता सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष पहले से ही है, इसलिए विधेयक पेश करने से पहले निर्णय के परिणाम की प्रतीक्षा करना उचित होगा.