Research: टायरों से निकलने वाला जहरीला उत्सर्जन ले सकता है आपकी जान, जानिए कैसे हवा को बनाता है ज़हरीला?
Air pollution in Delhi-NCR: दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के कारण हवा अब भी जहरीली है और लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. रविवार, 19 नवंबर को दिल्ली में हवा की गुणवत्ता 'बहुत खराब' श्रेणी में रही.
Air pollution in Delhi-NCR: दिल्ली-एनसीआर में फैक्ट्रियों, वाहनों के धुएं, पराली जलाने, भवन निर्माण और अपशिष्ट पदार्थों को जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है. लोग इन विषयों पर चर्चा कर रहे हैं, लेकिन वायु प्रदूषण का एक और बड़ा कारक है, जिस पर लोग चर्चा नहीं करते हैं या इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है. वायु प्रदूषण में बड़ी भूमिका निभाने वाला सबसे बड़ा कारक 'वाहन के टायर' हैं. हम समझते हैं कि वाहन के टायर किस प्रकार वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं और यह कितना खतरनाक है.
गाड़ियों के टायर
दिल्ली में प्रदूषण के स्तर के बारे में बात करते हुए, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदा नंद त्रिपाठी (जो राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की संचालन समिति के सदस्य भी हैं) ने मीडिया एजेंसी को बताया कि वाहन प्रदूषण के दो घटक हैं. पहला है टेलपाइप से निकलने वाला रसायन और दूसरा है टायर ब्रेक और घर्षण. त्रिपाठी ने कहा कि वाहनों के टायर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वायु को प्रदूषित करते हैं.
वाहन चलते समय त्वरण और ब्रेक लगाने के दौरान टायर हवा में बहुत महीन रबर यौगिक कण छोड़ते हैं. इनमें भारी धातु (सीसा, तांबा, कैडमियम, निकल) और कुछ कार्सिनोजेन जैसे तत्व शामिल हैं. ये कण 2.5 माइक्रोन से कम व्यास के होते हैं, जिन्हें सूक्ष्म कण या PM2.5 भी कहा जाता है. ये कण इतने खतरनाक होते हैं कि ये इंसान के फेफड़ों के अंदर तक बस जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है.
टायरों से अप्रत्यक्ष प्रदूषण
जब आप गलत टायर प्रेशर (आमतौर पर कम फुलाए हुए टायर) के साथ वाहन चलाते हैं, तो इससे सड़क के साथ टायर की सतह का घर्षण बढ़ जाता है और वाहन को उसी गति से चलने में अधिक समय लगता है. इससे वाहन में ईंधन की खपत बढ़ जाती है. इस तरह टेलपाइप उत्सर्जन (वाहन चलाने के दौरान उत्पन्न होने वाले रसायन) का उत्सर्जन अधिक होता है.
इंपीरियल कॉलेज लंदन ने अपने शोध में पाया कि हर साल वैश्विक स्तर पर 6 मिलियन टन टायर घिसे हुए कण पैदा होते हैं. रिपोर्ट में पाया गया कि अकेले लंदन में, 2.6 मिलियन वाहन सालाना लगभग 9,000 टन कण उत्सर्जित करते हैं.
टायर प्रदूषण केवल सड़क तक ही सीमित है
वाहन के टायरों से होने वाला वायु प्रदूषण ज्यादातर राजमार्गों पर होता है और राजमार्गों तक ही सीमित है. इससे राजमार्गों पर रहने वाले और काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. यूके स्थित स्वतंत्र उत्सर्जन परीक्षण कंपनी, एमिशन एनालिटिक्स ने पाया कि टायर की टूट-फूट आधुनिक कारों की तुलना में लगभग 2,000 गुना अधिक कण प्रदूषण पैदा करती है.
और कहाँ टायर प्रदूषण फैलाते हैं?
भारत में हमने देखा है कि सर्दी के मौसम में लोग सड़क किनारे टायर जलाते हैं. यह संभवतः टायरों से होने वाले प्रदूषण का सबसे गंभीर रूप है.
क्या टायर केवल वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं?
सड़क पर जमा टायर के कण बारिश के साथ भूजल में बह जाते हैं और खेतों में जम जाते हैं. इसके बाद प्रदूषण के कण हमारी खाद्य श्रृंखला के माध्यम से वापस शरीर में आ जाते हैं. टायरों से निकलने वाले कण तूफानी नालों में बहते हैं, इसके साथ ही ये नदियों और समुद्र में प्रवेश करते हैं. जो समुद्री जीवन को नष्ट कर देते हैं. मछलियाँ उन्हें खाती हैं और मनुष्य मछली खाते हैं. ऐसे में प्रदूषण के कण मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं.
क्या कंपनियाँ पर्यावरण-अनुकूल टायर बना रही हैं?
इस दिशा में काम किया जा रहा है. एक प्रमुख टायर कंपनी ने पेट्रोलियम उत्पादों के बजाय पौधों से प्राप्त सामग्री का उपयोग करके सिंथेटिक रबर बनाया है. अन्य कंपनियाँ भी बायोमास (पौधे से प्राप्त सामग्री या कृषि अपशिष्ट) से बने सिंथेटिक रबर के उत्पादन का प्रयोग कर रही हैं. सिंथेटिक रबर प्राकृतिक रबर का एक विकल्प है, और उपोष्णकटिबंधीय देशों से विकासशील और विकसित बाजारों में प्राकृतिक रबर के आयात के पर्यावरणीय प्रभाव और रसद व्यय को कम कर सकता है.
भारत में कितने टायर बनते हैं?
ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) के मुताबिक, वित्त वर्ष 2011 में भारत में 169 मिलियन टायरों का उत्पादन हुआ था. 2023 में भारत में वाहनों की बिक्री कई गुना बढ़ गई है और इसलिए टायरों का उत्पादन भी कई गुना बढ़ जाएगा.