Explainer : ग्रेगोरियल कैलेंडर क्या होता है? आखिर भारत और दुनिया ने इसको क्यों अपनाया

दुनिया में कैलेंडर का इतिहास बहुत पुराना है. समय-समय पर दुनिया के शक्तिशाली शासकों ने अपने अनुसार कैलेंडर चलवाए और इसको दुनिया के दूसरे देशों में फैलाने का प्रयास भी किया. ग्रेगोरियन कैलेंडर कई बार संशोधित हुआ है. इससे संबंधित पहले कैलेंडर की शुरुआत रोमन साम्राज्य में हुई थी.

Pankaj Soni
Edited By: Pankaj Soni

अगले दो दिनों में नया साल आ जाएगा. दिन और रातें वहीं रहेंगे, लेकिन कैलेंडर बदल जाएगा. भारत में वैसे तो कई तरह के कैलेंडर हैं, जिनको अलग-अलग स्थानों पर माना जाता है. लेकिन ग्रेगोरियल कैलेंडर ऐसा कैलेंडर है, जिसको भारत के सभी राज्यों समेत दुनिया के सभी देशों में अपनाया जाता है. ऐसे में मन में एक सवाल आता है कि जिस कैलेंडर के मुताबिक हम हर साल 1 जनवरी को नया साल मनाते हैं, वह कहां से आया है. क्या इसका भारत से भी कोई कनेक्शन है? आखिर भारत में इसे क्यों अपनाया जाता है और इसमें ऐसा क्या खास है जिसके कारण पूरी दुनिया इसे मानती है. दुनिया भर में प्रचलित कैलेंडर को ग्रेगोरियन कैलेंडर कहा जाता है. इसे अचानक ही दुनिया ने नहीं अपनाया. इसका अपना इतिहास है. आइए जानते हैं कि यह क्या है और दुनिया ने इसे कैसे अपनाया.

ग्रेगोरियन कैलेंडर कई बार संशोधित हुआ

दुनिया में कैलेंडर का इतिहास बहुत पुराना है. समय-समय पर दुनिया के शक्तिशाली शासकों ने अपने अनुसार कैलेंडर चलवाए और इसको दुनिया के दूसरे देशों में फैलाने का प्रयास भी किया. ग्रेगोरियन कैलेंडर कई बार संशोधित हुआ है. इससे संबंधित पहले कैलेंडर की शुरुआत रोमन साम्राज्य में हुई थी. तब रोमन कैलेंडर बहुत जटिल था. रोम के शासक जूलियस सीजर ने इसमें बदलाव कर जूलियन कैलेंडर चलाया था. जूलियन कैलेंडर यूरोप में कई सदियों तक चला. जूलियन कैलेंडर में एक साल 365.25 दिन का था. वास्तव में एक साल 365.24219 दिन होने से इसमें हर एक 128 साल में एक दिन का फर्क होने लगा. 15 शताब्दियों के बाद यह अंतर 11 दिन का हो गया. इस बीच इसके महीनों में भी बदलाव होते रहे पर साल के दिन उतने ही रहे.

ग्रैगोरियन कैलेंडर का नाम कैसे पड़ा? 

1582 में रोम के पोप ग्रेगोरी 13वें ने इस कैलेंडर में कई तरह के सुधार किए और जूलियन कैलेंडर की चार अक्टूबर 1582 की तारीख 11 दिन बढ़ा कर 15 अक्टूबर 1582 कर दी. तब से इसी कैलेंडर को ग्रैगोरियन कैलेंडर का नाम मिल गया. 16वीं सदी के बाद से यूरोप से लोग दुनिया भर में जाने लगे वहां पर उपनिवेशन बनाने लगे. उन्होंने अफ्रीका, एशिया, उत्तर एवं दक्षिण अमिरेका में ग्रेगोरियन कैलेंडर को चला दिया. 18वीं और 19वीं सदी के आते आते यूरोपीय शक्ति खासतौर से ईसाई धर्म के शासकों का पूरी दुनिया पर वर्चस्व हो गया, जिसकी वजह से ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनिया के अधिकांश देशों में अलग-अलग समय पर अपनाया जा चुका था. 20वीं सदी में दुनिया के देशों का आपस में व्यापार बढ़ता गया और इसके लिए उन्हें ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाना सुविधाजनकल लगने लगा.

भारत में यह कैलेंडर कब लागू हुआ?

भारत में ब्रिटेन ने यह कैलेंडर 1752 में लागू किया, तब से सभी सरकारी कामकाज ग्रेगोरियन कैलेंडर में ही हो रहे हैं. वहीं आजादी के समय भी कैलेंडर को जारी रखने या उसकी जगह हिंदू कैलेंडर को अपनाए जाने पर गहन मंथन हुआ. लेकिन अंततः भारत सरकार ने ग्रेगोरियन के साथ-हिंदू विक्रम संवत को भी अपना लिया, पर सरकारी कामकाज ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार ही होते हैं.

ग्रेगोरियन कैलेंडर की अजीब बात यह है कि इस कैलेंडर में हर महीने में दिन बराबर नहीं है. इसमें 30 दिन वाले चार महीने, 31 दिन वाले छह महीने और फरवरी के महीने में 28 दिन होते हैं. हर तीन साल बाद चौथे साल एक पूरा दिन जोड़ा जाता है जो फरवरी में होता है. इसे लीप वर्ष कहते हैं. इस साल फरवरी का महीना 28 की जगह 29 दिन की होता है.

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30 December 2023, 11:27 AM IST

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