देश में एक साथ लोकसभा, विधानसभा चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को क्या करना होगा

One Nation One Election: लॉ कमीशन और कोविंद कमिटी को दिए गए अपने मेमोरेंडम में इलेक्शन कमीशन ने बड़ी संख्या में अतिरिक्त ईवीएम और वीवीपैट की आवश्यकता पर जोर दिया है. साथ ही समय और धन की भी जरूरत बताई है. हाल के दिनों में, चुनाव आयोग छोटे-मोटे अतिरिक्त चुनाव संबंधी बोझ उठाने से भी कतराने लगा है.

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One Nation One Election: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक राष्ट्र, एक चुनाव यानी वन नेशन, वन इलेक्शन पर हाई लेवल कमिटी की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ-साथ शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों यानी लोकल बॉडीज के चुनाव एक साथ कराने की रूपरेखा तैयार की गई है.

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमिटी की ओर से पेश किए गए रोडमैप के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने के लिए मौजूदा कानूनों में 18 संशोधनों की आवश्यकता होगी, जिसमें संविधान में 15 संशोधन शामिल हैं. जबकि संसद में अपनी कम संख्या के साथ भाजपा एक व्यापक राजनीतिक समझौता बनाने की तैयारी कर रही है. 

एक राष्ट्र, एक चुनाव पर भारत निर्वाचन आयोग का रुख क्या है?

1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे, जिसके बाद चुनाव चक्र में गड़बड़ी होने लगी क्योंकि कई विधानसभाएं अपने कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही भंग हो गईं. वर्तमान में, आंध्र प्रदेश , अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ-साथ होते हैं.

इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया ने पिछले कई सालों से कहा है कि वह इलेक्शन सर्किल को फिर से एक साथ लाने के विचार का समर्थन करता है, लेकिन इसके लिए संविधान में संशोधन और एक साथ चुनाव कराने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता होगी. हालांकि, 2022 में, तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुशील चंद्रा ने कहा कि ईसीआई एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है.

संसदीय स्थायी समितियों और विधि आयोगों ने अतीत में एक साथ चुनाव कराने पर चर्चा की है. 2015 में कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति को दिए गए अपने प्रस्तुतिकरण में, ईसीआई ने इस विचार को लागू करने में कई कठिनाइयों को लिस्टेड किया.

समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि उनके ओर से उठाया गया मुख्य मुद्दा यह है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीनों की बड़े पैमाने पर खरीद की आवश्यकता होगी. एक साथ चुनाव कराने के लिए, आयोग को उम्मीद है कि ईवीएम और वीवीपीएटी की खरीद के लिए कुल 9,284.15 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. मशीनों को हर 15 साल में बदलने की भी आवश्यकता होगी, जिसके लिए फिर से खर्च करना होगा. इसके अलावा, इन मशीनों को संग्रहीत करने से वेयरहाउसिंग लागत बढ़ जाएगी.

चुनाव आयोग ने कोविंद समिति को क्या बताया?

सितंबर 2023 में सरकार की ओर से नियुक्त कोविंद समिति ने 12 जनवरी और 20 फरवरी को चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उसके सुझाव मांगे थे. समिति ने आयोग के साथ बैठक की भी मांग की, लेकिन यह बैठक नहीं हो सकी. समिति को भेजे गए अपने जवाब में, भारत के चुनाव आयोग ने वही जवाब भेजा जो उसने भारत के लॉ कमीशन को दिया था, जिसने मार्च 2023 में इस मुद्दे की जांच की थी. कोविंद समिति ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई रिपोर्ट पर चुनाव आयोग के जवाब को अटैच किया.

अपने जवाब में चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम और वीवीपैट खरीदने के लिए कम से कम 8,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए ज़रूरी होंगे. चुनाव आयोग ने स्थानीय निकाय चुनावों की ज़रूरत पर विचार नहीं किया, क्योंकि उन्हें राज्य चुनाव आयोगों की ओर से प्रशासित किया जाता है.

ईसीआई के मार्च 2023 के आकलन के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मतदान केंद्रों की संख्या 2019 में 10.38 लाख से 15% बढ़कर 11.93 लाख होने की उम्मीद है, जिससे मतदान कर्मियों और ईवीएम की संख्या में भी वृद्धि होगी.

CAPF की 4719 कंपनियों की होगी जरूरत

चुनाव आयोग के अनुमान के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) की कुल 4,719 कंपनियों की आवश्यकता होगी, जो 2019 के चुनाव के लिए तैनात की गई 3,146 कंपनियों से 50% अधिक है. चुनाव आयोग ने कहा कि अगर सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ ही कराए जाएं तो ये संख्याएँ बढ़ जाएंगी.

(मार्च में लोकसभा चुनावों की घोषणा के समय, चुनाव आयोग ने कहा था कि देश भर में 10.48 लाख मतदान केंद्रों पर वोट डाले जाएंगे, और 1 करोड़ से अधिक मतदान और सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया जाएगा. इसने कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी.)

लॉ कमीशन और कोविंद पैनल को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में, चुनाव आयोग ने अनुमान लगाया है कि 2029 में एक साथ चुनाव कराने के लिए कुल 53.76 लाख बैलेट यूनिट, 38.67 लाख ईवीएम कंट्रोल यूनिट और 41.65 लाख वीवीपैट की आवश्यकता होगी.

इसका मतलब ये होगा कि 26.55 लाख बैलेट यूनिट, 17.78 लाख कंट्रोल यूनिट और 17.79 लाख वीवीपैट को मौजूदा इन्वेंट्री में जोड़ने की आवश्यकता होगी, जिसकी अनुमानित लागत 7,951.37 करोड़ रुपये होगी. चुनाव आयोग ने कहा कि इस राशि में परिवहन, भंडारण, प्रथम-स्तरीय जांच और अन्य संबंधित लागतें शामिल नहीं हैं.

चुनाव आयोग ने विधि आयोग और कोविंद समिति को यह भी बताया कि ईवीएम और वीवीपैट बनाने वाली दो सरकारी कम्पनियों, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) को एक साथ चुनाव कराने के लिए आवश्यक अतिरिक्त इकाइयों के निर्माण के लिए समय की आवश्यकता होगी.

एक ही समय में कई चुनाव कराने का व्यावहारिक अनुभव क्या रहा है?

सुरक्षा, मौसम की स्थिति, त्यौहारों और अन्य कारकों की वजह से चुनाव आयोग को एक साथ चुनाव कराने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. इस साल की शुरुआत में, इसने सभी उम्मीदवारों के लिए अतिरिक्त सुरक्षा आवश्यकताओं के कारण जम्मू और कश्मीर विधानसभा के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ नहीं कराने का फैसला किया था.

सीईसी राजीव कुमार ने चुनावों की घोषणा करते हुए कहा कि सुरक्षा बलों की 400-500 अतिरिक्त कंपनियों की आवश्यकता होगी, जिन्हें देश में चल रहे लोकसभा चुनावों के कारण जुटाना संभव नहीं होगा. कुमार ने कहा कि पूरी प्रशासनिक मशीनरी ने एक स्वर में कहा कि वे इसे एक साथ नहीं कर सकते.

सीईसी की इस स्वीकारोक्ति का पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने मज़ाक उड़ाया. उन्होंने एक्स पर लिखा कि एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए इतना कुछ. चुनाव आयोग जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव आम चुनाव के साथ कराने में असमर्थ है, जबकि वे स्वीकार करते हैं कि चुनाव होने वाले हैं.

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव अभी चल रहे हैं, लोकसभा चुनाव संपन्न होने के तीन महीने से ज़्यादा समय बाद. हरियाणा में 5 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे, लेकिन चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र में चुनाव बाद में कराने का फ़ैसला किया है, जो पहले हरियाणा के साथ ही हुआ करता था.

महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों को अलग-अलग कराने के निर्णय के बारे में पूछे जाने पर, मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की आवश्यकता का मतलब है कि चुनाव आयोग एक ही समय में दो से अधिक चुनाव नहीं करा सकता है. इसके अलावा, चुनाव कार्यक्रम तैयार करते समय गणेश उत्सव, नवरात्रि और दिवाली तथा पितृ पक्ष जैसे त्योहारों को भी ध्यान में रखना होगा. महाराष्ट्र में चुनाव अब नवंबर में होने की उम्मीद है। जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में मतगणना 8 अक्टूबर को होगी.

First Updated : Friday, 20 September 2024