EVM-VVPAT Case: सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 8 अप्रैल को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से जुड़े मामले को लेकर सुनवाई की गई है. वहीं ईवीएम मशीन के साथ वीवीपैट का इस्तेमाल करके वोटों से जुड़े याचिकाओं पर अदालत सुनवाई कर रहा था. जिसमें पता चला कि हियरिंग के दरमियान यूनाइटेड किंगडम यानी यूरोप इसके बावजूद अमेरिका में ईवीएम की मदद से वोट नहीं डाले जाते है. मगर सवाल ये उठता है कि विदेशों के ईवीएम में और भारत के अंदर इस्तेमाल किए जाने वाले वोटिंग मशीनों में क्या अंतर है?
भारतीय ईवीएम के गुण
आपको बता दें कि चुनाव आयोग के वकील की तरफ से बताया गया कि यूरोप और अमेरिका में हटाई गई ईवीएम और भारतीय ईवीएम में बहुत अंतर है. दरअसल विदेशी मशीनों का संबंध नेटवर्क से होता था. साथ ही उनके प्रभावित होने की आशंका जताई जाती थी. मगर भारत की ईवीएम स्टैंडअलोन मशीन होती है. जिसका संबंध किसी नेटवर्क से नहीं होता है. विदेशों में ईवीएम को बनाने के लिए निजी कंपनी काम करती थी. वहीं भारत में इसका निर्माण पब्लिक सेक्टर कंपनी करती है. विदेशों वाले ईवीएम में वोट की पुष्टि का कोई रास्ता नहीं था. मगर भारत में वीवीपैट के लिए इसकी पुष्टि कर ली जाती है.
VVPAT का मेन मकसद
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दरमियान न्यायाधीशों की तरफ से बताया गया कि वीवीपैट की पारदर्शिता को लेकर जिस प्रकार से बहस की जा रही है. मगर इसमें शुरू से किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया है. जो जैसा था वैसा ही है. हमेशा की तरह मशीन में वोट डालने पर बल्ब जलता है. जिससे वोट पड़ा की नहीं इसकी पुष्टि हो जाती है. इसके लिए मशीन 7 सेकेंड का वक्त भी लेता है. इसलिए इसका मकसद इसी व्यवस्था को लाने की थी.
सुप्रीम कोर्ट के जजों का बयान
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना ने प्रशांत भूषण को बताया कि "आप इस तरह हर चीज पर अविश्वास नहीं जता सकते हैं. आपकी बातों को हमने विस्तार से सुना है. साथ ही चुनाव आयोग के प्रयासों को भी समझा है. आपको भी इस बात की प्रशंसा करनी चाहिए. इतना ही नहीं उन्होंने आगे कहा कि ईवीएम-वीवीपैट मिलान पांच फीसदी होगा, 40 होगा, 50 होगा या इससे अधिक. परन्तु चुनाव आयोग को हर बात पर अपनी सफाई देने की जरूरत नहीं है. इसके लिए वह लोग काम कर रहे हैं. First Updated : Thursday, 18 April 2024