सिसोदिया को इन शर्तों पर मिली जमानत, पढ़ें कोर्टरूम में क्या-क्या हुआ

Manish Sisodia gets bail: आबकारी नीति के मामले में पिछले 17 महीनों से जेल में बंद दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सर्वोच्च अदालत ने उन्हें आबकारी मामले में जमानत दे दी है. बता दें कि तीन दिन पहले ही SC ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सिसौदिया को ईडी और सीबीआई मामलों में 10-10 लाख रुपये का मुचलका भरना होगा और अब वह जेल से बाहर रहेंगे.

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Manish Sisodia gets bail: दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मनीष सिसौदिया को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी है. सिसौदिया को पिछले साल फरवरी में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह लगातार जेल में हैं. शीर्ष अदालत ने 10 लाख रुपये के मुचलके पर सिसौदिया को जमानत दे दी. सिसौदिया को ईडी और सीबीआई मामलों में 10-10 लाख रुपये का मुचलका भरना होगा और अब वह जेल से बाहर रहेंगे. तो आइए जानते हैं कि सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ. 

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री को सीबीआई और ईडी द्वारा दर्ज मामलों में जमानत दे दी. अदालत ने आदेश दिया कि अपील स्वीकार की जाती है. दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश रद्द किया जाता है. उन्हें ईडी और सीबीआई दोनों मामलों में जमानत दी जाती है. सिसोदिया को जमानत बांड के रूप में 2 लाख रुपए जमा करने होंगे. साथ ही उन्हें अपना पासपोर्ट भी जमा करना होगा और जमानत की शर्तों के रूप में पुलिस स्टेशन में उपस्थित होना होगा, कोर्ट ने निर्देश दिया गया है. 

इन शर्तों पर मिली जमानत

न्यायालय ने यह देखते हुए याचिका स्वीकार कर ली कि मुकदमे में लंबे समय तक देरी से सिसोदिया के शीघ्र सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन हुआ है और शीघ्र सुनवाई का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता का एक पहलू है. पीठ ने कहा कि सिसोदिया को त्वरित सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है. त्वरित सुनवाई का अधिकार एक पवित्र अधिकार है. हाल ही में जावेद गुलाम नबी शेख मामले में हमने इस पहलू पर विचार किया और हमने पाया कि जब अदालत, राज्य या एजेंसी त्वरित सुनवाई के अधिकार की रक्षा नहीं कर सकती है, तो यह कहकर जमानत का विरोध नहीं किया जा सकता है कि अपराध गंभीर है. अनुच्छेद 21 अपराध की प्रकृति के बावजूद लागू होता है.

सभी दस्तावेज हुए जब्त

इसमें कहा गया कि समय के भीतर मुकदमा पूरा होने की कोई संभावना नहीं है और मुकदमा पूरा करने के उद्देश्य से उसे सलाखों के पीछे रखना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा. इसके साथ ही अदालत ने जमानत मंजूर करते हुए कहा कि सिसोदिया की समाज में गहरी जड़ें हैं और वह भाग नहीं सकते या मुकदमे का सामना नहीं कर सकते. साक्ष्यों से छेड़छाड़ के संबंध में मामला काफी हद तक दस्तावेजों पर निर्भर करता है और इसलिए सभी दस्तावेज जब्त कर लिए गए हैं तथा छेड़छाड़ की कोई संभावना नहीं है.

ईडी की दलील को किया खारिज

न्यायालय ने ईडी की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि मुकदमे में देरी सिसोदिया द्वारा स्वयं निचली अदालत में दायर विभिन्न आवेदनों के कारण हुई. शीर्ष अदालत ने कहा कि ईडी के सहायक निदेशक की अनुपालन रिपोर्ट के अवलोकन से पता चलता है कि अप्रमाणित डेटा की क्लोन की एक प्रति तैयार करने में 70 से 80 दिन लगेंगे. हालांकि कई आरोपियों द्वारा विभिन्न आवेदन दायर किए गए थे, लेकिन उन्होंने सीबीआई मामले में केवल 13 आवेदन और ईडी मामले में 14 आवेदन दायर किए. सभी आवेदनों को ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया.

सिसोदिया के आवेदनों के कारण मुकदमे में देरी

हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने पाया था कि सिसोदिया के आवेदनों के कारण मुकदमे में देरी हुई थी. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि निचली अदालत का उक्त निष्कर्ष गलत था. शीर्ष अदालत ने कहा कि जब हमने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से ऐसा कोई आवेदन दिखाने को कहा जिसे ट्रायल कोर्ट ने तुच्छ बताया हो, तो वह नहीं दिखाया गया. इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट का यह अवलोकन कि सिसोदिया ने सुनवाई में देरी की है, गलत है और इसे खारिज कर दिया गया है.


First Updated : Friday, 09 August 2024