अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे...प्रेम और रोमांस का ये कवि आज भी करोड़ों युवाओं के दिलों में जिंदा है

आधुनिक हिंदी साहित्य के मौलिक रचनाकारों रचनाकारों में धर्मवीर भारती का नाम अग्रणी है. धर्मवीर भारती एक प्रतिष्ठित साहित्यकार होने के साथ ही स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और अनुवादक भी थे.

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अगर मैंने किसी के होठ के पाटल कभी चूमे.
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे.....

'गुनाहों का गीत' कविता की ये पंक्ति आज भी युवा दिलों में प्रेम और रोमांस का संचार संचार करती है. इसके तार युवाओं के दिलों में आज भी गुंजित होते हैं. साहित्य जगत के प्रखर सूर्य, पत्रकार और अद्वितीय लेखक व कवि डॉ. धर्मवीर भारती ने जब 'गुनाहों का गीत' कविता संग्रह लिखा तो उनके आलोचकों ने भारती जी को प्रेम और रोमांस का रचनाकार घोषित कर दिया. सच भी है कि उनकी कविताओं, कहानियों और उपन्यासों में प्रेम और रोमांस का यह तत्व स्पष्ट रूप से मौजूद है, जिसमें तब और अब  की युवा पीढ़ी डूब जाती है. हालांकि प्रेम के अलावा भी भारतीय जी ने कई मुद्दों पर कविताएं और रचनाएं लिखी हैं. आज 25 दिसंबर को कवि और लेखक धर्मवीर भारती का जन्म दिवस है. आज हम उनकी प्रेम और रोमांस की कविताओं के साथ ही धर्मवीर भारती के बारे में जानेंगे.  

धर्मवीर भारतीय कौन थे?

आधुनिक हिंदी साहित्य के मौलिक रचनाकारों में धर्मवीर भारती का नाम अग्रणी है. धर्मवीर भारती एक प्रतिष्ठित साहित्यकार होने के साथ ही स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और अनुवादक भी थे. 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में उनका जन्म हुआ था. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए और पीएच. डी. की. धर्मवीर भारतीय कुछ वर्षों तक इलाहाबाद से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र ‘संगम’ का संपादन किया. धर्मवीर भारती ने गुनाहों का देवता, सूरज का सातवां घोड़ा, कनुप्रिया और अंधायुग जैसी कालजयी कृतियों से हिंदी साहित्य को गुलजार किया. ‘गुनाहों का देवता’ उपन्यास हिंदी साहित्य जगत में ‘मील का पत्थर’ माना जाता है. 

धर्मवीर भारती का फाइल फोटो.

 

धर्मवीर भारती की प्रेम और रोमांस की चासनी में डूबी कविता
 

                         (1)
अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे
महज इससे किसी का प्यार मुझको पाप कैसे हो?
महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो? 

तुम्हारा मन अगर सींचूँ 
गुलाबी तन अगर सीचूँ तरल मलयज झकोरों से
तुम्हारा चित्र खींचूँ प्यास के रंगीन डोरों से
कली-सा तन, किरन-सा मन, शिथिल सतरंगिया आँचल
उसी में खिल पड़ें यदि भूल से कुछ होठ के पाटल
किसी के होंठ पर झुक जायँ कच्चे नैन के बादल
महज इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो?
महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?

                        (2)
रख दिए तुमने नज़र में बादलों को साधकर,
आज माथे पर सरल संगीत से निर्मित अधर,
आरती के दीपकों की झिलमिलाती छांव में,
बांसुरी रखी हुई ज्यों भागवत के पृष्ठ पर.

उस दिन जब तुमने फूल बिखेरे माथे पर,
अपने तुलसी दल जैसे पावन होंठों से,
मैं सहज तुम्हारे गर्म वक्ष में शीश छुपा,
चिड़िया के सहमे बच्चे-सा हो गया मूक,
लेकिन उस दिन मेरी अलबेली वाणी में
थे बोल उठे,
गीता के मंजुल श्लोक ऋचाएं वेदों की,
प्यार घायल साँप-सा लेता लहर.

संघर्ष में बीता बचपन 

धर्मवीर भारती की प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद के डी.ए.वी हाई स्कूल से प्रारंभ हुई. वह एक मेघावी छात्र थे, लेकिन स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब होने के कारण उनको कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा. किंतु इस कठिन परिस्थिति में धर्मवीर भारती जी के मामा ने परिवार को संभाला और उनकी शिक्षा में सहयोग दिया. 

वैवाहिक जीवन कैसा रहा? 

धर्मवीर भारती जी विवाह कांता कोहली से हुआ जो कि एक प्रेम विवाह था. लेकिन कुछ ही समय बाद दोनों के बीच संबंध विच्छेद होने के कारण वह एक दूसरे से अलग हो गए. भारती जी ने दूसरी शादी पुष्पा शर्मा जी से की. इससे उनकी तीन संतान हुई जिनके नाम पारमिता, किशंकू और प्रज्ञा हैं. पुष्पा शर्मा जी भी एक लेखिका हैं. 

पुरस्कार और सम्मान 

धर्मवीर भारती जी को आधुनिक हिंदी साहित्य में विशेष योगदान के लिए कई तरह के पुरस्कार मिले. इनका विवरण इस प्रकार हैं.
-पद्मश्री – (वर्ष 1972 में भारत सरकार द्वारा सम्मानित)
-संगीत नाटक अकादमी
-भारत-भारती पुरस्कार
-महाराष्ट्र गौरव – 1994
-व्यास सम्मान
-हल्दी घाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार – 1984
-राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान – (वर्ष 1989 में बिहार सरकार द्वारा सम्मानित)
-भारत भारती सम्मान – (वर्ष 1990 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थानद्वारा सम्मानित)

मुंबई में हुआ निधन 

धर्मवीर भारती जी ने जीवन की सभी अनुभूतियों का अपने साहित्य में सफल चित्रण किया था जिससे पाठक वर्ग बहुत जुड़ा हुआ महसूस करता है. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य की साधना में ही लगा दिया. भारती जी जीवन की अपनी यात्रा में ह्रदय रोग से पीड़ित हो गए किंतु उपचार के बाद भी पूर्ण रूप से स्वस्थ न हो सके और 4 सितंबर 1997 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. First Updated : Monday, 25 December 2023