केंद्र की मोदी सरकार 3.0 और किसानों का बढ़ता विरोध: क्या अंतर

Farmers Protest: खनौरी बार्डर पर किसानों ने एक बड़ी महापंचायत का आयोजन किया. इसमें भूख हड़ताल पर बैठे किसान नेत जगजीत सिंह डल्लेवाल ने ऐतिहासिक संबोधन किया. इस दौरान उन्होंने मोदी सरकार 3.0 और किसानों के बढ़ते विरोध के बीच के अंतर पर प्रकाश डाला.

Dimple Yadav
Edited By: Dimple Yadav

Farmers Protest: हरियाणा-पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर शनिवार को किसानों की महापंचायत हुई, जहां 40 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को स्ट्रेचर से मंच पर लाया गया. उन्होंने किसानों को संबोधित किया और एमएसपी कानून समेत 12 अहम मांगों पर बात की. किसानों का प्रदर्शन लंबे समय से चल रहा है. मोदी सरकार ने पहले किसान आंदोलन को लेकर अपनी नीति बदली थी, जबकि 2020-21 में सरकार ने किसानों से बातचीत की थी.

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में, जब किसान तीन कृषि कानूनों (अब रद्द किए गए) के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे, तो सरकार ने उनके साथ कई दौर की वार्ता की थी. 14 अक्टूबर 2020 से लेकर 22 जनवरी 2021 तक तीन केंद्रीय मंत्रियों ने 11 दौर की बातचीत की. एक मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी किसान नेताओं से मिलने दिल्ली आए थे.

किसानों से बातचीत की कोशिश

पिछले साल फरवरी में भी किसानों से बातचीत की कोशिश की गई थी, लेकिन वह वार्ता सफल नहीं हो पाई थी. इसके बाद से ही गतिरोध जारी है, लेकिन केंद्र सरकार अब MSP को कानूनी दर्जा देने और अन्य मांगों को लेकर किसानों से बातचीत करने से कतराती दिख रही है. पहले सरकार सक्रिय रूप से किसान यूनियनों के साथ बैठकों में शामिल होती थी, लेकिन अब इस मुद्दे से दूरी बनाए रखी है.

कृषि भवन में किसानों के साथ हुई बैठक

केंद्र का मानना है कि 14 अक्टूबर 2020 को कृषि भवन में किसानों के साथ हुई बैठक और विवाद ने मामला और भड़काया था. इसके बाद 26 नवंबर 2020 से दिल्ली के लिए किसान आंदोलन और तीव्र हो गया. 22 जनवरी 2021 तक और 10 दौर की वार्ताओं के बावजूद किसान अपनी मांगों पर अड़े रहे. फिर, 12 जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर रोक लगाई और इन पर विचार करने के लिए एक समिति बनाई. अंत में, 19 नवंबर 2021 को पीएम मोदी ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा की.

बदले रुख के पीछे हो सकते हैं ये 3 कारण

हालांकि, अब मोदी सरकार प्रदर्शनकारी किसानों से दूरी बनाए हुए है. इसका एक कारण यह हो सकता है कि वर्तमान आंदोलन पंजाब-हरियाणा सीमा तक ही सीमित है, जो 2020-21 के आंदोलन की तुलना में बहुत छोटा है. दूसरी वजह यह हो सकती है कि कुछ प्रमुख किसान संगठन इस बार आंदोलन में शामिल नहीं हुए हैं. और तीसरी वजह यह है कि इस बार किसानों की मांगें पहले की तुलना में अलग और कई प्रकार की हैं.

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04 January 2025, 10:13 PM IST

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