Diwali Special: दिवाली पर पटाखे चलाना भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. जब भी हम दीवाली के त्योहार की बात करते हैं, तो पटाखों की आवाजें और रंग-बिरंगी रोशनी का ख्याल मन में आता है. भारत में तमिलनाडु का शिवकाशी शहर पटाखों की राजधानी के रूप में जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवकाशी में पटाखों का कारोबार कैसे शुरू हुआ और आज यह कारोबार किस तरह बदल रहा है? अगर नहीं तो चलिए जानते हैं.
शिवकाशी का सफर इस बात का प्रमाण है कि कैसे सूखे और बेरोजगारी से जूझते एक छोटे से कस्बे ने अपनी पहचान बनाई और आज दुनियाभर में भारत का सीना गर्व से चौड़ा कर रहा है.
तमिलनाडु के छोटे से शहर शिवकाशी को आज "पटाखों की राजधानी" के रूप में जाना जाता है. यहां बनने वाले पटाखे भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों तक भेजे जाते हैं. दीपावली हो या शादी का सीजन, जब पटाखों की चर्चा होती है तो शिवकाशी का नाम सबसे पहले आता है. लेकिन शिवकाशी हमेशा से ऐसा नहीं था. एक समय पर यह जगह सूखे और बेरोजगारी से जूझ रही थी. इसी कठिन दौर ने शिवकाशी को पटाखों की दुनिया में पहचान दिलाई.
19वीं सदी में शिवकाशी में भीषण सूखा पड़ा, जिससे यहां के लोग बेरोजगार हो गए. ऐसे में रोजगार की तलाश में नाडर समुदाय के दो भाई, शानमुगा नाडर और पी. अय्या नाडर, कलकत्ता (अब कोलकाता) गए. वहां उन्होंने माचिस की फैक्टरी में काम करते हुए माचिस और पटाखों का निर्माण सीख लिया. अपने नए हुनर के साथ जब वे वापस लौटे, तो उन्होंने शिवकाशी में पटाखों का निर्माण शुरू किया. शिवकाशी का सूखा मौसम उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ, क्योंकि बारूद नमी में खराब हो जाता है. धीरे-धीरे अन्य लोग भी इस काम में शामिल होने लगे, और इस तरह शिवकाशी पटाखों की राजधानी बन गया.
आज शिवकाशी में करीब 8000 छोटे-बड़े पटाखा कारखाने हैं, जो भारत के 90 प्रतिशत पटाखों का उत्पादन करते हैं. इसके चलते इसे "मिनी जापान" भी कहा जाता है. हालांकि, समय के साथ इसमें कुछ चुनौतियां भी आई हैं. हाल के वर्षों में विभिन्न प्रतिबंधों और पर्यावरणीय चिंताओं के कारण पटाखों की मांग में 40-60 प्रतिशत तक की गिरावट आई है.
शिवकाशी का नाता भारतीय सेना से भी है. यहां सेना के लिए विशेष माचिस बनाई जाती है, जो बारिश, बर्फ और तूफान में भी काम करती है. यहां अभ्यास के लिए बम और विशेष प्रकार के गोले भी बनाए जाते हैं, जो सेना के काम आते हैं.
हालांकि, बढ़ते पर्यावरणीय जागरूकता के कारण अब ग्रीन पटाखों पर जोर दिया जा रहा है. शिवकाशी के कई पटाखा उद्योग अभी इस दिशा में बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं, और कुछ हद तक नुकसान भी झेल रहे हैं. फिर भी, इस उद्योग से जुड़े करीब 6.5 लाख से ज्यादा परिवारों का जीवन इसी पर निर्भर है. First Updated : Wednesday, 30 October 2024