"EVM का डेटा न मिटाएं, न दोबारा लोड करें – सुप्रीम कोर्ट की कड़ी चेतावनी!"

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा है कि EVM में जली हुई मेमोरी और सिंबल लोडिंग यूनिट का सत्यापन कैसे हो रहा है. कोर्ट ने साफ कहा कि डेटा को डिलीट या री-लोड न किया जाए. साथ ही, सत्यापन प्रक्रिया और 40,000 रुपये की भारी-भरकम फीस पर भी सवाल उठाए गए हैं. आखिर चुनाव आयोग इस पर क्या सफाई देगा? पूरा मामला जानने के लिए खबर पढ़ें!

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Edited By: Aprajita

New Delhi: चुनाव में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) को सख्त हिदायत दी है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की जली हुई मेमोरी और सिंबल लोडिंग यूनिट (SLU) की सत्यापन प्रक्रिया के दौरान कोई भी डेटा डिलीट या रीलोड न किया जाए. कोर्ट ने चुनाव आयोग से 15 दिनों के अंदर जवाब दाखिल करने को कहा है.

क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में यह मांग की गई थी कि चुनाव आयोग ईवीएम की बर्न मेमोरी, माइक्रो-कंट्रोलर और सिंबल लोडिंग यूनिट की जांच और सत्यापन करे. याचिकाकर्ताओं ने संदेह जताया कि बिना सत्यापन के चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठ सकते हैं. इस पर मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की विशेष पीठ ने चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा.

कोर्ट ने क्यों लगाई फटकार?

कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि जब सत्यापन की ही बात हो रही है, तो डेटा डिलीट या रीलोड करने की क्या जरूरत है? मुख्य न्यायाधीश ने साफ शब्दों में कहा, "डेटा मिटाइए मत, दोबारा लोड मत कीजिए, बस सत्यापन कीजिए." उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कोर्ट का इरादा केवल यह सुनिश्चित करना था कि सत्यापन प्रक्रिया निष्पक्ष हो और इसमें किसी तरह की गड़बड़ी न हो.

सत्यापन पर भारी फीस पर भी उठे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम सत्यापन के लिए चुनाव आयोग द्वारा तय की गई 40,000 रुपये की फीस पर भी चिंता जताई. कोर्ट ने कहा कि यह राशि बहुत अधिक है और इसे कम किया जाना चाहिए ताकि उम्मीदवारों को सत्यापन के लिए अनावश्यक वित्तीय बोझ न उठाना पड़े.

चुनाव आयोग ने क्या कहा?

चुनाव आयोग के वकील ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वे सत्यापन प्रक्रिया पर स्पष्टीकरण देने के लिए एक संक्षिप्त हलफनामा दाखिल करेंगे और यह भी सुनिश्चित करेंगे कि सत्यापन के दौरान डेटा में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.

पहले भी हो चुकी है ईवीएम विवाद पर सुनवाई

यह पहली बार नहीं है जब ईवीएम की सत्यता पर सवाल उठे हैं. पिछले साल 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर पर वापस लौटने की मांग को खारिज करते हुए कहा था कि ईवीएम से चुनाव अधिक सुरक्षित हुए हैं और इससे बूथ कैप्चरिंग जैसी समस्याएं खत्म हुई हैं. हालांकि, कोर्ट ने चुनाव परिणामों में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले असंतुष्ट उम्मीदवारों को 5% ईवीएम का सत्यापन कराने की अनुमति दी थी.

ईवीएम सत्यापन पर एडीआर का पक्ष

एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने भी सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा कि चुनाव आयोग की मौजूदा सत्यापन प्रक्रिया अपर्याप्त है और इसे कोर्ट के 2024 के फैसले के अनुसार संशोधित किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि ईवीएम की बर्न मेमोरी और माइक्रोकंट्रोलर की पूरी तरह से जांच होनी चाहिए ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी से बचा जा सके.

आगे क्या होगा?

अब इस मामले में चुनाव आयोग को 15 दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करना होगा और 3 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में यह मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा. इस मामले पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और ईवीएम की विश्वसनीयता से जुड़ा अहम मुद्दा है.

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11 February 2025, 09:35 PM IST

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