केंद्र ने दी मंजूरी, 1 अप्रैल से बढ़ जाएंगी डायबिटीज, बुखार, एलर्जी की दवाओं की कीमतें
अगले महीने से दवाइयों के दाम बढ़ने जा रहे हैं. इनमें से कई का उपयोग मधुमेह, बुखार और एलर्जी जैसी सामान्य बीमारियों में किया जाता है. जबकि कुछ दवाओं का उपयोग दर्द निवारक के रूप में किया जाता है. इन दवाओं की कीमतों में वृद्धि का कारण कच्चे माल की बढ़ती लागत को बताया जा रहा है.

नई दिल्ली. 1 अप्रैल 2025 से नया वित्त वर्ष शुरू हो रहा है. इसके साथ ही कई क्षेत्रों में कई नए नियम लागू हो जाएंगे. इन नियमों के लागू होने से आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ेगा।. नए वित्तीय वर्ष से मौसमी बुखार और एलर्जी जैसी कई बीमारियों की दवाओं के दाम बढ़ सकते हैं. हाल ही में सरकार ने कई सामान्य बीमारियों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं की कीमतों में वृद्धि को मंजूरी दी है. अगले महीने से दवाइयों के दाम बढ़ने जा रहे हैं. इनमें से कई का उपयोग मधुमेह, बुखार और एलर्जी जैसी सामान्य बीमारियों में किया जाता है. जबकि कुछ दवाओं का उपयोग दर्द निवारक के रूप में किया जाता है. इन दवाओं की कीमतों में वृद्धि का कारण कच्चे माल की बढ़ती लागत को बताया जा रहा है. इस कारण कंपनियां लगातार मूल्य वृद्धि की मांग कर रही थीं. हालाँकि, इन दवाओं की कीमतों में वृद्धि सीमित होगी.
लागत में वृद्धि का मुख्य कारण
दरअसल, सरकार ने आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल दवाओं की कीमतों में 1.74 फीसदी तक की बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी है. इनमें पैरासिटामोल, एजिथ्रोमाइसिन, एंटी-एलर्जी, एंटी-एनीमिया, तथा विटामिन और खनिज दवाएं शामिल हैं. उनकी दरों में वृद्धि थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर की गई है. इस बार थोक मूल्य सूचकांक में 1.74 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अब दवाओं की कीमतें भी उसी के अनुसार बढ़ाई जा रही हैं. फार्मा कंपनियों का कहना है कि हम लंबे समय से कीमत बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. कच्चे माल यानी दवाइयां बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों की कीमतें पिछले कुछ समय से बढ़ रही हैं, जिससे लागत भी बढ़ गई है.
यह वृद्धि मुद्रास्फीति आधारित मूल्य संशोधन के कारण...
राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण से जुड़े लोगों का कहना है कि दवाओं की कीमतों में यह वृद्धि मुद्रास्फीति आधारित मूल्य संशोधन के कारण की जा रही है. हर साल सरकार आवश्यक दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए संशोधन करती है. इस बार थोक मूल्य सूचकांक में वृद्धि के कारण दवा कंपनियों को कीमतें बढ़ाने की अनुमति दी गई है.