मौसम विभाग के अनुसार ये घटनाएं कृषि उत्पादन पर काफी गंभीर असर डाल रही हैं. अल-नीनो की घटनाएं उपमहाद्वीप में बढ़ते तापमान, अत्यधिक गर्मी और अधिक अनियमित वर्षा पैटर्न को प्रेरित करने से जुड़ी हुईं है.
ऐतिहासिक रूप से अल-नीनो की कम आधी घटनाएं गर्मियों के मानसून के मौसम के दौरान सूख से सीधे तौर पर जुड़ी हैं. दक्षिण भारत के चेन्नई में साल 2015 में एक असाधारण वर्षा की घटना हुई थी. उस समय इस क्षेत्र में एक सदी से भी अधिक समय में सबसे भारी बारिश एक दिन में देखी गई थी.
1. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद सक्रिय रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीली और बीमारियों का सामना करने वाले फसल किस्मों का विकास कर रही है.
2. बताया जा रहा है कि सिंचाई के बुनियादी ढांचे में कुछ सुधार करने के बावजूद लगभग 50 प्रतिशत कृषि अभी भी वर्षा पर निर्भर है.
3. इसके साथ ही कुशल सिंचाई और जल प्रबंधन प्रथाएं भारतीय कृषि की जल आवश्यकताओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.
4. चुनौतियों से निपटने के लिए स्वदेशी समुदायों का ज्ञान होना महत्वपूर्ण हैं. भारत में किसानों ने बीजों की कई जलवायु-लचीली किस्मों को संरक्षित किया है. जो सूखे, बाढ़ का सामना कर सकते हैं.
5. इस तरह के बीजों का किसान उपयोग करके तेजी के साथ नए बदलाव कर सकते हैं.
6. इसके अलावा कृषिवानिका और वानिका पहलों से स्वस्थ पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिल सकती है.
7. अनुकूलन रणनीतियों में पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्रों को भी शामिल करना जरूरी होगा.
अल-नीनो सबसे अधिक भारत के मानसून को प्रभावित कर रहा है. क्योंकि महासागर ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगभग 93 प्रतिशत अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित कर रहे हैं. इसीलिए अल-नीनो मजबूत हो रहे हैं . अधिकांश जलवायु मॉडल का अनुमान है कि अल-नीनो से संबंधित वर्षा में उतार-चढ़ाव अगले कुछ दिनों तक ऐसे ही देखे जायेंगे. First Updated : Friday, 14 July 2023