Emergency: जब भी हम आजाद भारत के इतिहास के पन्ने टटोलते हैं तो उसमें एक अध्याय ऐसा मिलता है जो अपने गहरे निशान छोड़कर गया है. इमरजेंसी, जिन्होंने इमरजेंसी के दौर को अपनी आंखों से देखा है वो आज भी लरज़ उठते हैं. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अचानक 25 जून की रात इमरजेंसी का ऐलान कर दिया. लोगों को हिरासत में लेने शुरू कर दिया, आम आदमी अधिकारों को वापस ले लिया. साथ ही कई अखबार के दफ्तरों की लाइट भी काट दी. जैसे-तैसे सुबह हुई और 26 जून की सुबह 8 बजे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इमरजेंसी का आधिकारिक तौर पर ऐलान करती हैं. इसके बाद देशभर में क्रूर शासन का आगाज हो जाता है. इस सीरीज में हम आपको इमरजेंसी से जुड़ा एक किस्सा हर दिन सुनाएंगे.
आज पहले एपिसोड में हम आपको यह बताएंगे कि आखिर इमरजेंसी लगने की शुरुआत कहां से हुई? तो चलिए शुरू करते हैं. इंदिरा गांधी का नाम ज़हन में आते ही एक मजबूत इरादों वाली महिला की छवि बन जाती है. इसीलिए इन्हें आयरन लेडी भी कहा जाता है. लेकिन इस अयरन लेडी को 1972 के चुनाव में एक आम नेता के सामने झुकना पड़ गया. इस नेता का नाम है राजनारायण सिंह.
राजनारायण ने 1971 लोकसभा चुनाव में रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ ताल ठोकी थी. जिसमें इंदिरा गांधी को जीत मिल गई थी लेकिन नतीजे आने के 4 बरस बाद राजनारायण ने अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में धांधली की है. उन्होंने सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करने जैसे आरोप लगाए थे. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के ज़रिए दाखिल किए मुकदमें ने इंदिरा गांधी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी, हैरानी इस बात की भी होती है कि कोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाता है और चुनाव रद्द कर देता है. साथ ही उनपर 6 वर्षों के लिए चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी जाती है.
कोर्ट के इस फैसले के बाद राजनरायण के 'संपूर्ण क्रांति' आंदोलन ने पूरे देश की तस्वीर ही बदल दी. जिसके बाद इंदिरा गांधी से इस्तीफा मांगा जाने लगा. हालांकि इंदिरा गांधी कुछ और ही सोच रही थी. हालात को अपने खिलाफ होता देख इंदिरा गांधी ने 25 जून की रात अचानक इमरजेंसी लगा दी. 26 जून 1975 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर एक संदेश में इमरजेंसी लगाने का ऐलान किया. इस ऐलान से कुछ घंटे पहले 25 और 26 जून की रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी के आदेश पर दस्तखत किये थे. इस बीच विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया और आम लोगों पर खूब जुल्म हुआ.
इसके बावजूद इंदिरा गांधी के खिलाफ विरोध कम नहीं हुआ और 18 जनवरी 1977 को इंदिरा ने अचानक लोकसभा चुनाव का ऐलान करती हैं. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव मार्च में होंगे. मार्च में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों ने काफी हैरान कर दिया था, क्योंकि इंदिरा और उनके बेटे संजय गांधी दोनों को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इन चुनावों में कांग्रेस सिर्फ 153 सीटों पर सिमट गई और देश में जनता पार्टी की सरकार बन गई. 24 मार्च को मरारजी देसाई ने देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.