New Delhi: महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई, जिसमें यौन उत्पीड़न के दोषियों के लिए रासायनिक बधियाकरण जैसे कठोर उपायों की मांग की गई. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए इसे 'कठोर और बर्बर' करार दिया, लेकिन महिला सुरक्षा के अन्य पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की बात कही.
यह याचिका उस समय आई जब देश में यौन अपराधों की घटनाओं ने एक बार फिर समाज को झकझोर कर रख दिया. निर्भया कांड की 12वीं बरसी और कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के बाद, यौन शोषण के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई गई. याचिका दायर करने वाली सुप्रीम कोर्ट महिला वकील एसोसिएशन ने कहा कि यौन अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है और कई घटनाओं की तो रिपोर्ट तक नहीं की जाती. वरिष्ठ वकील महालक्ष्मी पावनी ने बताया, 'आरजी कर अस्पताल की घटना के बाद 95 और घटनाएं हुईं, लेकिन उन्हें उजागर नहीं किया गया.'
याचिका में सुझाव दिया गया कि यौन अपराधों के दोषियों को रासायनिक बधियाकरण जैसी सजा दी जानी चाहिए, जैसा कि कुछ अन्य देशों में होता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह एक 'कठोर और असंवेदनशील' कदम है. इसके बजाय, अदालत ने इस पर ध्यान केंद्रित किया कि सार्वजनिक परिवहन और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, 'सार्वजनिक परिवहन पर सामाजिक व्यवहार सिखाना और लागू करना ज़रूरी है.'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन अपराधों के खिलाफ कानून पहले से ही काफी सख्त हैं, लेकिन उनका प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है. अदालत ने यह भी कहा कि दंडात्मक कानूनों के अमल में कहां कमी रह रही है, इसे देखने की ज़रूरत है. अदालत ने महिला सुरक्षा को लेकर सरकार से जवाब मांगा और कहा, 'हम उन महिलाओं के लिए आपकी चिंता की सराहना करते हैं जो हर दिन संघर्षों का सामना करती हैं.'
इस बीच, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी महिलाओं पर बढ़ते अपराधों को लेकर कड़ी नाराजगी जताई. उन्होंने कहा, 'कोलकाता की घटना ने मुझे निराश और भयभीत कर दिया. यह और भी भयावह है कि यह घटना अकेली नहीं है.' राष्ट्रपति ने निर्भया कांड को याद करते हुए कहा कि पिछले 12 सालों में ऐसे कई मामलों को भुला दिया गया है. उन्होंने इसे 'घृणित सामूहिक स्मृतिलोप' करार दिया और कहा कि यह समाज के लिए शर्म की बात है.
सुप्रीम कोर्ट ने महिला सुरक्षा पर सख्त कदम उठाने का इशारा दिया है और कहा है कि सिर्फ कानून बनाना काफी नहीं, बल्कि उनका सही तरीके से पालन होना चाहिए. इस मुद्दे पर सरकार को जनवरी तक जवाब देने के लिए कहा गया है. अब देखना यह होगा कि यौन अपराधों को रोकने के लिए सरकार और अदालत मिलकर क्या कदम उठाते हैं और क्या ये कदम समाज में बदलाव ला पाते हैं. First Updated : Monday, 16 December 2024