Explainer : आखिर कौन हैं सिख धर्म के 10 गुरु, जिन्हें हमेशा किया जाता है याद

Explainer : सिखों के चौथे गुरु यानी गोविंद सिंह जी की जयंती पर आज देश-दुनिया में सिख समुदाय के लोग प्रभात फेरी निकालते हैं. गुरुद्वारों में शबद कीर्तन का आयोजन और गुरबानी का पाठ किया जाता है. सिखों के इतिहास के सबसे महान योद्धा माने जाने वाले गुरु गोविंद सिंह की वीरता की कहानियां आज भी लोगों को खूब याद आती हैं.

Shweta Bharti
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हाइलाइट

  • गुरु नानक देव जी को सिख धर्म के गुरु माना जाता है.
  • 17 जनवरी 1666 ई. में गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ था,

Explainer: गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंत की रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था. सिखों के लिए 5चीजें- बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोविंद सिंह ने ही दिया था. इन चीजों को पांच ककार कहा जाता है जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है, गुरु गोविंद सिंह को ज्ञान सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है.

गुरु गोविंद सिंह ने संस्कृत, फारसी पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी साथ ही उन्होंने धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी, गुरुगोविंद सिंह एक लेखक भी थे. इसके साथ ही उन्हें सिख धर्म के गुरु भी माना जाता है. आइए जानें कौन–कौन हैं सिख धर्म के गुरु जो आज भी किए जाते हैं याद?

गुरु नानक देव जी 

गुरु नानक देव जी को सिख धर्म के गुरु माना जाता है. सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था. नानक जी के पिता का नाम कल्यानचंद्र या मेहता कालू जी और माता का नाम तृप्ता था. नानक जी के जन्म के बाद तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा. वर्तमान में यह जगह पाकिस्तान में है, उनका विवाह नानक सुलक्खनी के साथ हुआ था. इनके दो पुत्र श्रीचंद्र और लक्ष्मीचंद्र थे उन्होंने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान में है, इसी स्थान पर सन 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था.

दूसरे नंबर पर आते हैं गुरु अंगद देव जी 

गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे, गुरु नानक देव ने अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था. उनका जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था. इनके पिता का नाम फेरू जी थी, जो पेशे से व्यापारी थे, उनकी माता का नाम रामो जी था. गुरु अंगद देव जी को लहिणा जी के नाम से भी जाना जाता है. अंगद देव जी पंजाबी लिपि गुरुमुखी के जन्मदाता हैं.

तीसरे नंबर पर आते हैं गुरु अमर दास जी 

गुरु अंगद देव के बाद गुरु अमर दास सिख धर्म के तीसरे गुरु माने जाते हैं. उन्होंने जाति प्रथा, ऊंच-नीच कन्या-हत्या, सती प्रथा जैसी कुरीतियों को समाप्त करने में अहम योगदान किया. उनका जन्म 23 मई, 1479 को अमृतसर के एक गांव में हुआ.

उनके पिता का नाम तेजभान एंव माता का नाम लखमी था. उन्होंने 61 साल की उम्र में गुरु अंगद देव जी को अपना गुरु बनाया और लगातार 11 वर्षों तक उनकी सेवा की उनकी सेवा की उनकी सेवा और समर्पण को देखते हुए गुरु अंगद देव जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी गुरु अमर दास का 1 सितंबर, 1574 में निधन हो गया.

चौंथे नंबर पर आते हैं गुरु गोविंद सिंह जी 

17 जनवरी 1666 ई. में गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ था, गुरु गोविंद सिंह जी सिख धर्म के गुरु माने जाते हैं. वह गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र थे, उनको 9 वर्ष की उम्र में गुरुगद्दी मिली थी. गुरु गोविंद सिंह के जन्म के समय देश पर मुगलों का शासन था.

गुरु गोविंद सिंह ने धर्म, संस्कृति व राष्ट्र की आन-बान और शान के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था. उनके बड़े पुत्र बाबा अजीत सिंह और एक अन्य पुत्र बाबा जुझार सिंह ने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थी. जबकि छोटे बेटों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था. जिसके हाद गुरु गोविंद को गुरु समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरु मान लिया.

पांचवें  नंबर पर गुरु अर्जन देव

सिखों के पांचवें गुरु का नाम गुरु अर्जन देव है इनका जन्म 25 अप्रैल, 1563 में हुआ था. वह सिख धर्म के चौथे गुरु राम दास देव जी के पुत्र थे. ये 1581 ई. में गद्दी पर बैठे. सिख गुरुओं ने अपना बलिदान देकर मानवता की रक्षा करने की जो परंपरा स्थापित की उनमें सिखों के छठे गुरु अर्जुन देव का बलिदान महान माना जाता है.

छठे नंबर पर गुरु हरगोबिन्द सिंह

गुरु हरगोबिन्द सिंह सिखों के छठे गुरु थे. यह सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव के पुत्र थे. गुरु हरगोबिन्द सिंह ने ही सिखों को अस्त्र -शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया व सिख पंथ को योद्धा चरित्र प्रदान किया. वे स्वयं एक क्रांतिकारी योद्धा थे. इनसे पहले सिख पंथ निष्क्रिय था. सिख धर्म के पांचवें गुरु अर्जन को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने गद्दी संभाली. उन्होंने एक छोटी -सी सेना इकट्ठी कर ली थी. इससे नाराज होकर जहांगीर ने उनको 12 साल तक कैद में रखा. रिहा होने के बाद उन्होंने शाहजहां के खिलाफ़ बगावत कर दी और 1628 ई. में अमृतसर के निकट संग्राम में शाही फौज को हरा दिया. सन् 1644 ई . में कीरतपुर , पंजाब में उनकी मृत्यु हो गई.

सातवें नंबर पर गुरु हरराय

गुरु हरराय का सिख के सातवें गुरु थे. उनका जन्म 16 जनवरी, 1630 ई. में पंजाब में हुआ था. गुरु हरराय जी सिख धर्म के छठे गुरु के पुत्र बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे. इनका विवाह किशन कौर जी के साथ हुआ था. उनके दो पुत्र गुरु रामराय जी और हरकिशन साहिब जी थे. गुरु हरराय ने मुगल शासक औरंगजेब के भाई दारा शिकोह की विद्रोह में मदद की थी. गुरु हरराय की मृत्यु सन 1661 ईं. में हुई थी.

 आंठवें नंबर पर गुरु हरकिशन साहिब

सिखों के आठवें गुरु हुए. उनका जन्म 17 जुलाई, 1656 को किरतपुर साहेब में हुआ था. उन्हें बहुत छोटी उम्र में गद्दी प्राप्त हुई थी. इसका मुगल बादशाह औरंगजेब ने विरोध किया. इस मामले का फैसला करने के लिए औरंगजेब ने गुरु हरकिशन को दिल्ली बुलाया लेकिन वहां हैजे की महामारी फैली हुई थी. कई लोगों को स्वासअथ लाभ कराने के बाद उन्हें स्वंय चेचक निकल आई. 9 अप्रैल 1664 को मरते समय उनके मुंह से बाबा बकाले शब्द निकले, जिसका अर्थ था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव में ढूंढा जाए. लोगों को निर्देश दिए कि उसकी मृत्यु पर कोई रोयेगा नहीं.

 नौवें नंबर पर आते हैं गुरु रामदास

 गुरु अमरदास  के बाद गद्दी पर गुरु रामदास बैठे. वह सिख धर्म के नौवें गुरु थे। इन्होंने गुरु पद 1574 ई . में प्राप्त किया था। इस पद पर ये 1581 ई . तक बने रहेये सिखों के तीसरे गुरु अमरदास के दामाद थे. इनका जन्म लाहौर में हुआ था. जब गुरु रामदास बाल्यावस्था में थे, तभी उनकी माता का देहांत हो गया था. लगभग सात वर्ष की आयु में उनके पिता का भी निधन हो गया. उसके बाद वह अपनी नानी के साथ रहने लगे थे. गुरु रामदास की सहनशीलता, नम्रता व आज्ञाकारिता के भाव देखकर गुरु अमरदास जी ने अपनी छोटी बेटी की शादी इनसे कर दी. गुरु तेग

 दसवें नबंर पर हैं गुरु तेग बहादुर

बहादुर सिंह का जन्म 18 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था. गुरु तेग बहादुर सिंह ने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया और सही अर्थों में हिंद की चादर कहलाए. उस समय मुगल शासक जबरन लोगों का धर्म परिवर्तन करवा रहे थे. इससे परेशान होकर कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर के पास आएं. जिसके बाद वह औंरगजेब के दरबार में गए औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिए, पर गुरु तेग बहादुर जी नहीं माने तो उन पर जुल्म किए गए. 24 नवंबर 1675 को धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया.

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17 January 2024, 10:06 AM IST

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