के. कामराज या कुमारास्वामी कामराज भारतीय राजनीति में एक बड़ा नाम है. वो कांग्रेस अध्यक्ष भी थे. चेन्नई के मरीना बीच पर आज भी कामराज मूर्ति खड़ी है, जिसके दोनों ओर दो किशोर छात्र खड़े हैं. मद्रास (अब तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री के रूप में कामराज के काम की खूब तारीफ होती है. कामराज ऐसी सख्शियत हैं जिनकी प्रतिमा तमिलनाडु और चेन्नई में गांधी और नेहरू से ज्यादा देखने के लिए मिलती हैं. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के उस जमाने में कामराज को “किंगमेकर” के रूप में जाना जाता था. खैर आज हम कामराज की जिस मूर्ति के बारे में बात कर रहे हैं ये मूर्ति हमें बताती है कि राज्य में शिक्षा के लिए कामराज ने बड़े- बड़े काम किए हैं.
के. कामराज 13 अप्रैल 1954 को जब मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हर गरीब और जरूरतमंद को शिक्षा देने का संकल्प लिया और इस दिशा में उनकी सरकार ने काम किया. अनिवार्य शिक्षा की नीति बनाई गई. नए स्कूल बनवाए गए. स्कूल आने वाले छात्रों को मुफ्त में यूनिफॉर्म दी गई. पाठ्यक्रम में संशोधन किया गया. अपने इन कामों से कामराज ‘शिक्षा के जनक’ के रूप में लोकप्रिय हो गए.
1960 के दशक में तिरुनेलवेली जिले के चेरनमहादेवी शहर का दौरा करते समय, कामराज ने एक लड़के को रेलवे क्रॉसिंग पर मवेशी चराते देखा. तब कामराज ने बच्चे से पूछा कि वह स्कूल क्यों नहीं जा रहा है? कामराज के सवाल के जवाब में इस लड़के ने कहा, "अगर मैं स्कूल जाऊंगा तो क्या आप मुझे खाने के लिए खाना देंगे? मैं कभी पढ़ सकता हूं जब मेरे पास खाने के लिए होगा." लड़के की इस बात को कामराज साहब ने समझा तो पता तला कि खाने लिए संकट के चलते बच्चे स्कूल जाने की बजाए खाने के लिए भोजन जुटाने का काम करते हैं. इसके बाद कामराज के दिमाग में आइडिया आया कि अगर स्कूल में बच्चों को भोजन मिल जाए तो बच्चे ठीक से पढ़ सकेंगे. यहीं से स्कूलों में मिड -डे मील की शुरुआत का ख्याल आया.
आखिरकार कामराज ने राज्य की स्कूलों में मिड-डे मील योजना लागू कर दिया. इसके बाद सर्वे में इसके नतीजे शानदार आए. 1955 में मद्रास नगर पालिका के स्कूलों और हरिजन कल्याण स्कूलों में इस योजना के कारण छात्रों की मौजूदगी बढ़ गई थी. बच्चे सोमवार से शुक्रवार तक खूब आने लगे थे. लेकिन शनिवार को छात्रों की उपस्थिति आधी हो जाती थी, क्योंकि शनिवार के दिन स्कूल केवल आधे दिन के लिए खुलते थे और दोपहर का भोजन नहीं मिलता था.
जब कामराज ने मिड डे मील को दूसरी पंचवर्षीय योजना में शामिल कराना चाहा तो उनके लिए यह काम आसान नहीं था. सभी प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए मध्याह्न भोजन को केंद्रीय योजना आयोग बहुत व्यावहारिक नहीं मान रहा था. वहीं कामराज इसे हर हाल में लागू कराना चाहते थे. उन्होंने योजना आयोग के अधिकारियों से उसी तरह बात की कि वो इसे राज्य में लागू करने के लिए योजना को हरी झंडी दें. उपलब्ध और आवश्यक धनराशि के बीच का अंतर पांच करोड़ (50 मिलियन रुपये) था. हालांकि, कामराज मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को लागू करने के लिए एक नया कर लगाने के लिए तैयार थे. काफी समझाने के बाद एसएफवाईपी में फंडिंग के लिए मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को शामिल किया गया.
27 मार्च, 1955 को इस योजना के संबंध में एक घोषणा की गई. 17 जुलाई 1956 को तिरुनेलवेली जिले के एट्टायपुरम में मिड डे मील को शुरू किया गया. 01 नवंबर, 1957 से कामराज सरकार ने केंद्र सरकार के वित्त पोषण का उपयोग करके अधिक से अधिक प्राथमिक विद्यालयों को शामिल करने के लिए कार्यक्रम का विस्तार दिया.
इस योजना की शुरुआत में सरकार का योगदान सिर्फ 10 पैसे प्रति बच्चा था, स्थानीय अधिकारियों से 05 पैसे के योगदान की संभावना थी, जो ज्यादातर नहीं हो पाती थी. इसके चलते इस कार्यक्रम को लगातार चलाने के लिए स्वयंसेवक योगदान का सहारा लेना होता था. कामराज ने इसके लिए राज्य में बड़े पैमाने पर यात्रा की. सम्मेलनों, बैठकों और यहां तक कि व्यक्तिगत चर्चाओं के दौरान जनता से बात की. उन्होंने जोर दिया कि मध्याह्न भोजन योजना को जल्द से जल्द स्कूलों में लागू करने की जरूरत है. अपने समाज के बच्चों को खाना खिलाना एक व्यक्तिगत सामाजिक जिम्मेदारी भी है.
कामराज की योजना के तहत, कक्षा 01 से 08 तक के लगभग 20 लाख प्राथमिक विद्यालय के छात्रों को प्रत्येक वर्ष 200 दिनों के लिए भोजन दिया जाता था. इसमें बच्चे पके हुए चावल और सांबर के साथ छाछ या दही और अचार के साथ स्वादिष्ट भोजन पाते थे.
जुलाई 1961 में ‘कोऑपरेटिव अमेरिकन रिलीफ एवरीव्हेयर’ (CARE) सरकार के इस मिड-डे मील प्रोग्राम में जुड़ी. इसमें ये संस्था आर्थिक तौर पर मदद करने लगी. उन्होंने खाद्य आपूर्ति, जैसे दूध पाउडर, खाना पकाने का तेल, गेहूं, चावल और अन्य पोषण संबंधी सामान की आपूर्ति शुरू कर दी.
इस योजना को शुरुआत में लोकलुभावन रणनीति के रूप में देखा गया था, लेकिन जैसे-जैसे स्कूल में नामांकन और उपस्थिति बढ़ी तो मिड-डे मील योजना ने जोर पकड़ लिया. राज्य के बाद इसका प्रचार-प्रसार देश भर में हुआ. आखिरकार केंद्र सरकार ने इसे समर्थन देना शुरू कर दिया. केवल 05 वर्षों में ही ये योजना सफल हो चुकी थी. 1957 और 1963 के बीच इसका खर्च 17 गुना बढ़ गया, जिससे इसका फायदा उठाने वाले बच्चों की संख्या में भी 06 गुना बढोतरी हुई.
नामांकन बढ़ाने, प्रतिधारण और उपस्थिति तथा इसके साथ-साथ बच्चों में पौषणिक स्तर में सुधार करने के उद्देश्य से 15 अगस्त, 1995 को केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम के रूप में प्रारंभिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पौषणिक सहायता कार्यक्रम (एनपी-एनएसपीई) शुरू किया गया था. साल 2001 में एमडीएमएस पका हुआ मध्याह्न भोजन योजना बन गई जिसके तहत प्रत्येक सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक स्कूल के प्रत्येक बच्चे को न्यूनतम 200 दिनों के लिए 8-12 ग्राम प्रतिदिन प्रोटीन और ऊर्जा के न्यूनतम 300 कैलोरी अंश के साथ मध्याह्न भोजन परोसा जाना था. स्कीम का वर्ष 2002 में न केवल सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और स्थानीय निकायों के स्कूलों को कवर करने के लिए अपितु शिक्षा गारंटी स्कीम (ईजीएस) और वैकल्पिक तथा अभिनव शिक्षा (एआईई) केन्द्रों में पढ़ने वाले बच्चों तक भी विस्तार किया गया था. First Updated : Sunday, 24 December 2023