Explainer : पाकिस्तान को ईरान ने सबसे पहले दी थी देश के रूप में मान्यता, अब दोनों देश कैसे बने दुश्मन?
ईरान और पाकिस्तान के बीच एक तरह का युद्ध शुरू हो चुका है. दोनों देशों के बीच तनाव है. झगड़े की जड़ आतंकवादी संगठन जैश अल अदल है. यह ईरान का दुश्मन है. हाल ही में ईरान ने उसपर कार्रवाई भी की है, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने भी पलटवार किया है.
पश्चिम एशिया में इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध के चलते तनाव है. वहीं पाकिस्तान ने ईरान पर हवाई हमला कर दिया है, जिससे स्थिति और भी बिगड़ सकती है. मंगलवार को ईरान ने पाकिस्तान की सीमा के भीतर कथित सुन्नी आतंकी कैंपों पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए थे. ईरान ने दावा किया था कि ये आतंकी समूह उसके यहां सक्रिय हैं और पाकिस्तान से संचालित हैं. 5 साल पहले भारत ने इसी आरोप में पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी. इसी तरह अब ईरान ने किया है. ईरान के हमले के बाद पाकिस्तान पर कमजोर देश का ठप्पा लगने का खतरा था. लिहाजा पाकिस्तान ने यह दिखाने के लिए कि वह कमजोर देश नहीं हैं, और उसने ईरान के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी. अब दोनों देशों के बीच बार-पलटवार से तनाव बढ़ता जा रहा है. ईरान के हमले के बाद पाकिस्तान ने धमकी दी है. पाक विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमला अच्छे पड़ोसी की निशानी नहीं है. इसके गंभीर परिणाम होंगे. पाकिस्तान और ईरान के बीच युद्ध जैसे हालात कैसे बन गए हैं. आइए इसके बारे में जानते हैं.
झगड़े की जड़ जैश अल अदल
पाकिस्तान और ईरान के बीच संबंधों को जानने के लिए हमें कई साल पीछे जाना होगा. पाकिस्तान और ईरान दोनों पड़ोसी देश हैं. पाक की सीमा ईरान से लगती है. ईरान और पाकिस्तान दोनों ही इस्लामिक देश हैं. पाकिस्तान सुन्नी बहुल देश है, जबकि ईरान शिया मुस्लिमों का देश है. पाकिस्तान और ईरान 904 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं. ये इलाका मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद का केंद्र बना हुआ है. बलूचिस्तान ऐसा इलाका है जो दोनों देशों में फैला हुआ है. सांप्रदायिक मतभेदों और बलूची अलगाववादियों की गतिविधियों ने स्थिति को बदतर बना दिया है.
क्या है ईरान का आरोप
ईरान का आरोप है कि जैश अल अदल के ठिकाने बलूचिस्तान में हैं और यह यहीं से ऑपरेट होता है. ईरान में इसके हमले का लंबा इतिहास रहा है. अमेरिकी खुफिया निदेशक (डीएनआई) के अनुसार, जैश अल अदल 2013 से ईरान में नागरिकों और सरकारी अधिकारियों पर घात लगाकर हमला किया. अक्टूबर 2013 में इस संगठन ने ईरान के 14 सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी थी. 2019 में इसने ईरान के अर्धसैनिक समूह, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स पर आत्मघाती हमला किया, जिसमें 27
जवान मारे गए. उसी साल 14 ईरानी सुरक्षाकर्मियों का भी अपहरण कर लिया गया. दोनों देशों के बीच सुन्नी-शिया सांप्रदायिक विभाजन कड़वे रिश्तों के केंद्र में हैं. ये बात तो हाल के दिनों की हो गई है. जैश अल अदल और शिया-सुनी के कारण दोनों देशों के रिश्ते आज भले ही तनाव के दौर से गुजर रहे हैं लेकिन इसकी शुरुआत इतनी खराब भी नहीं थी.
पाक को ईरान ने दी देश की मान्यता
पाकिस्तान को मान्यता देने वाला ईरान पहला मुस्लिम देश था. 19 फरवरी 1950 को ईरान और पाकिस्तान के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे. पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने 1949 में ईरान की राजधानी तेहरान का दौरा किया था, जबकि ईरान के शाह 1950 में पाकिस्तान गए थे. पाकिस्तान जाने वाले वह पहले राष्ट्रध्यक्ष थे. इसी तरह पाकिस्तान और ईरान 1955 में अमेरिका के नेतृत्व वाले बगदाद समझौते का हिस्सा बन गए. 1965 और 1971 में भारत से जंग के दौरान पाकिस्तान को ईरान ने पूर्ण राजनीतिक और राजनयिक समर्थन दिया था. ईरान ने 1963 में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच राजनयिक संबंध बहाल करने में मदद की.
दोनों देशों के बीच कैसे पड़ी दोस्ती में दरार!
ईरान और पाकिस्तान की दोस्ती बढ़ती जा रही थी, तभी 1979 की इस्लामिक क्रांति ने दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट ला दी. दोनों देशों ने अफगानिस्तान में सोवियत सैन्य हस्तक्षेप की निंदा की. ईरान ने गैर पश्तून वर्ग का समर्थन किया, जबकि पाकिस्तान ने मुजाहिदीन, मुख्य रूप से पश्तून का सपोर्ट किया. 1989 में अफगानिस्तान से सोवियत संघ की वापसी के बाद भी दोनों देशों के संबंधों में मधुरता नहीं आई. काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने मजार शरीफ में कई ईरानी राजनयिकों और शियाओं की हत्या कर दी. इससे तालिबान और ईरान के बीच संबंध टूट गए और पाकिस्तान और ईरान के रिश्ते भी खराब हो गए. आज ईरान के द्वारा आतंकी संगठनों के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक करने पर दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया है.