Explainer : संसद में विजिटर्स पास क्या होता है? यहां सुरक्षा की कितनी परतें होती हैं
What is a Visitor's Pass : आम नागरिक संसद की कार्यवाही देखने के लिए कैसे जा सकते हैं? संसद की दर्शक दीर्घा तक पहुंचने के लिए क्या जरूरी प्रक्रिया होती है? कैसे पास बनते हैं और अंदर सुरक्षा कैसी होती है इसके बारे में आज हम आपको बताएंगे.
What is a Visitor's Pass : लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में बुधवार को सुरक्षा में बड़ी चूक देखने के लिए मिली. शून्यकाल के दौरान दो युवक पब्लिक गैलरी से लोकसभा कक्ष में कूद गए. इसके बाद संसद में अफरा- तफरी मच गई. एक युवक ने संसद के अंदर पीला धुआं छोड़ा और नारेबाजी की. उसी समय संसद परिसर में एक पुरुष और एक महिला ने 'तानाशाही नहीं चलेगी' के नारा लगाए और पिंक धुआं उड़ाया. हालांकि पुलिस ने चारों लोगों को हिरासत में ले लिया है. इस पूरे घटनाक्रम को सुरक्षा में बड़ी चूक माना जा रहा है. क्योंकि संसद भवन में कई स्तरों का सुरक्षा इंतजाम होते हैं. यह घटना संसद पर आतंकी हमले की 22वीं बरसी पर हुई है.
अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि संसद के अंगर स्मोग बम जैसी चीज युवक कैसे लेकर गया और सुरक्षा में कहां चूक हुई. ऐसे में आज हम जानेंगे कि संसद की दर्शक दीर्घा तक पहुंचने के लिए क्या जरूरी प्रक्रिया होती है? कैसे पास बनते हैं और अंदर सुरक्षा जांच कैसी रहती है?
विजिटर पास के लिए क्या कहती है हैंडबुक?
देश का कोई भी नागरिक संसद और संसद की कार्यवाही को देख सकता है. संसद की कार्यवाही देखने के लिए अंदर दर्शक दीर्घा बनाई गई है. वहां बैठकर कोई भी नागरिक सदन की कार्यवाही देख सकता है. यहां तक पहुंचने के लिए एक पास बनवाना होता है. इसी पास से जरिए ही अंदर एंट्री मिलती है. यह पास एक टाइम स्लॉट के लिए करीब 40-50 मिनट के लिए बनाया जाता है.
सांसद बनवाते हैं विजिटर्स पास
लोकसभा हैंडबुक के अनुसार, संसद भवन में घूमने का पास संसद सचिवालय की ओर से बनवाए जाते हैं. विजिटर पास के लिए केवल सांसद ही आग्रह कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें एक घोषणा पत्र देना होगा कि वे गेस्ट को व्यक्तिगत तौर पर जानते हैं और उनकी पूरी जिम्मेदारी लेते हैं. सांसद के कहने पर कई लोगों के समूह के लिए भी ग्रुप विजिटर पास बनवाया जा सकता है. जब पास जारी किया जाता है तो उस व्यक्ति की इंटेलिजेंस जांच होती है. सदस्यों को विजिटर कार्ड के लिए आवेदन पत्र पर एक प्रमाण पत्र देना होता है. संसद सदस्यों को ध्यान रखना पड़ता है कि कार्ड धारकों की वजह से गैलरी में होने वाली किसी भी अप्रिय घटना के लिए वे खुद जिम्मेदार होंगे.
सांसदों को गेस्ट के लिए एक आवेदन पत्र में विजिटर का पूरा नाम, उम्र, पिता या पति का नाम, राष्ट्रीयता, व्यवसाय, अन्य बातों के अलावा पासपोर्ट नंबर (सिर्फ विदेशियों के लिए) जैसे विवरण देने होते हैं. पति के व्यवसाय का विवरण (सिर्फ गृहिणियों के मामले में), पूर्ण स्थायी पता और राज्य और दिल्ली में जहां रुके या ठहरे हैं, वो पता या जानकारी देना भी जरूरी होता है. विजिटर कार्ड के लिए आवेदन पत्र में यह कहना जरूरी होता है- 'उपरोक्त नामित विजिटर मेरा रिश्तेदार/व्यक्तिगत मित्र हैं. मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं और मैं उसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हूं. सेंट्रलाइज्ड पास इश्यू सेल में लोकसभा सदस्यों के आवेदन-आग्रह पर विजिट से एक दिन पहले पब्लिक गैलरी के लिए आगंतुक कार्ड जारी किए जाते हैं. उपलब्ध सीटों के आधार पर कुछ ही घंटे के लिए पास दिया जाता है. आगंतुकों के कार्ड के लिए जो आवेदन दिया जाता है, उसमें एक सदस्य अपने चार से ज्यादा मेहमानों का नाम नहीं दे सकता है.
कैसे होती है संसद की सुरक्षा?
संसद की सुरक्षा कई एजेंसीज मिलकर करती हैं. लोकसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव (सुरक्षा) संसद की पूरी सुरक्षा के प्रमुख होते हैं. संसद की सुरक्षा में लगी सारी एजेंसियां, इनको ही रिपोर्ट करती हैं.
संसद की सुरक्षा में कौन-कौन सी एजेंसी शामिल होती हैं
1. पार्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस
2. पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG)
3. सुरक्षा एजेंसियां
4. दिल्ली पुलिस
1. पहला घेरा- दिल्ली पुलिस
संसद की सुरक्षा के सबसे बाहरी घेरे में दिल्ली पुलिस तैनात होती है. पहली एंट्री में लोगों पर दिल्ली पुलिस की निगरानी रहती है. यहां किसी भी तरह की घटना पर दिल्ली पुलिस की ही कार्रवाई होती है. दिल्ली पुलिस यहां VVIP को सुरक्षा मुहैया कराने से लेकर उन्हें एस्कॉर्ट करने का काम कराती हैं.
2. दूसरा घेरा- सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एनएसजी, अन्य
संसद परिसर के आसपास ढेर सारी एजेंसियों के हथियारबंद जवान भी तैनात होते हैं। इनमें सीआरपीएफ, आईटीबीपी और एनएसजी के कमांडो प्रमुख होते हैं. इसके अलावा दिल्ली पुलिस की एक आतंकरोधी स्वाट (SWAT) टीम भी तैनात होती. इसमें दिल्ली पुलिस के कमांडो होते हैं, जिनके पास अचानक आए किसी भी खतरे से निपटने के लिए खास हथियार और वाहन होते हैं. इनकी ड्रेस एनएसजी के ब्लैक कैट कमांडोज की तरह दिखती है, लेकिन इनकी वर्दी का रंग नीला होता है.
3. पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG)
संसद के बाहर अगला घेरा केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) के पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG) ग्रुप होता है. यह फोर्स डेढ़ हजार से ज्यादा जवान और अधिकारियों से मिलकर बनी है, जिसका मुख्य काम संसद और देश की रक्षा है. इस सुरक्षा घेरे को बनाने का काम 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के हमले के बाद ही हुआ था. पीडीजी के पास आतंकरोधी ऑपरेशन के लिए पास से लड़ने वाले हथियार और वाहन होते हैं. इसमें एक समर्पित संचार टीम और मेडिकल टीम शामिल होती हैं.
4. पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस (PSS)
संसद में बाहरी सुरक्षा घेरों के बाद संसद के अंदर की सुरक्षा की बारी आती है. लोकसभा और राज्यसभा में सांसदों की सुरक्षा के लिए यही सुरक्षा सेवा तैनात रहती है. दोनों सदनों के लिए अलग-अलग सुरक्षा मुहैया कराई जाती है. यही सेवा संसद में सांसदों के अलावा विजिटर्स पास से आए लोगों, मीडिया से आए लोगों और बाकी लोगों की सुरक्षा से जुड़ी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होती है. इसके अलावा लोकसभा के स्पीकर, राज्यसभा के सभापति और सांसदों को भी संसद के अंदर यही सिक्योरिटी सर्विस सुरक्षा देती है. दोनों सदनों में तैनात मार्शल भी इसी सर्विस को रिपोर्ट करते हैं.
गैलरी-दर्शक दीर्घा तक कैसे पहुंचते हैं विजिटर...
सदन के अंदर एक दर्शक दीर्घा बनी है. ये लोकसभा की बालकनी में है. यहां ऊपर की तरफ आम लोग बैठते हैं. अंदर जाने से पहले कई स्तर पर सुरक्षा जांच होती हैं. डोरफ्रेम मेटल डिटेक्टर (DFMD) से गुजरने से लेकर बॉडी लैंग्वेज तक पढ़ी जाती है.
संसद के कैंपस में किसी भी मोबाइल या लैपटॉप ले जाने की अनुमति नहीं होती है. यहां तक कि आपसे सिक्के भी जमा करा लिए जाते हैं. अपने सामान को सुरक्षा गेट पर जमा कराना होता है, इसके लिए आपको एक टोकन दिया जाता है.
- सबसे पहले संसद के गेट पर चेक किया जाता है. वहां सबसे पहले फोन और अन्य गैजेट्स जमा किए जाते हैं. उसके बाद अंदर एंट्री मिलती है. अंदर दो लेयर की चेकिंग होती है.
- सदन में आपकी पूरी जानकारी पहले से पहुंच जाती है. वहां हाउस में एंट्री से पहले एक बार फिर चेकिंग होती है.
- मशीन के अलावा मैन्युअल स्तर पर भी जांच होती है. पूरी बॉडी को चेक किया जाता है. अगर आप जूते-मोजे या अन्य जगह कोई सामान छिपाकर लाते हैं तो वो सबसे पहले डोरफ्रेम मेटल डिटेक्टर मशीन ही पकड़ लेती है.
- फेशियल रीडिंग के उपकरण भी लगे होते हैं. सुरक्षा में लगे जवानों को यह ट्रेनिंग भी दी जाती है कि वो हावभाव को कैसे समझें और किसी संभावित घटना से पहले ही अलर्ट हो जाएं.
- दर्शक दीर्घा में भी बेंच के दोनों सिरों पर सादे कपड़ों में सुरक्षाकर्मी बैठते हैं. वे हर हरकत पर पैनी नजर रखते हैं. अगर कोई दर्शक अचानक से नारेबाजी करने की कोशिश करता है तो ये सुरक्षाकर्मी रोकते हैं और उठाकर बाहर ले जाते हैं.