Explainer : अक्ल दाढ़ क्या होती है? क्या इसका दिमाग से वाकई कोई कनेक्शन होता है
What is wisdom tooth: अक्ल की दाढ़ मोलार दातों के समूह का तीसरा दांत है जो हमारे मुंह में सबसे अंदर होता है. वैसे यह पहले और दूसरे दातों की तरह दिखाई देता है, लेकिन कई बार यह थोड़ा छोटा होता है. ये दांत सबसे आखिर में आते हैं और करीब 17 से 25 साल की उम्र में ये दांत निकलते हैं,
What is wisdom tooth: अक्ल की दाढ़ या विस्डम टीथ हमारे दांतों का ही हिस्सा हैं, लेकिन यह वयस्क होने पर निकलते हैं. कई बार ऐसै भी होता है कि ये निकलते ही नहीं या फिर दिखाई नहीं देते. विस्डम टीथ अक्सर भोजन को चबाने के काम करती है. इस दांत को लेकर कई तरह की कहावतें हैं. लोग कहते हैं कि अक्ल की दाढ़ आने के बाद ही इंसान को अक्ल आती है, लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है और वैज्ञानिक इसके विकास के समय को लेकर क्या सोचते हैं. इन दांतों का विकास बचपन में अन्य दातों के साथ क्यों नहीं होता? क्या मानव विकासक्रम में ऐसा शुरू से ही होता था या फिर समय के साथ इनके विकास का समय बदला है. ऐसे कई सावल हैं जिनकी जानकारी आम लोगों को नहीं है. यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग के विशेषज्ञों ने द कन्वर्सेशन के अपने लेख में ऐसे कई सवालों के जवाब दिए हैं.
अक्ल की दाढ़ क्या होती है?
अक्ल की दाढ़ मोलार दातों के समूह का तीसरा दांत है जो हमारे मुंह में सबसे अंदर होता है. वैसे यह पहले और दूसरे दातों की तरह दिखाई देता है, लेकिन कई बार यह थोड़ा छोटा होता है. ये दांत सबसे आखिर में आते हैं और करीब 17 से 25 साल की उम्र में ये दांत निकलते हैं, जब इंसान बड़ा और समझदार हो जाता है.
क्या इनका पूर्वजों से कोई संबंध है?
बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है कि कई लोगों में चार मोलर दांत होते हैं. इनका अपना इतिहास है और इनका संबंध हमारे पूर्वजों और उनके संबंधियों, बंदरों, गोरिल्ला और चिम्पांजियों से भी है और इन सभी में अक्ल की दाढ़ होती है. कुछ लाख साल पहले मानव के पूर्वजों का जबड़ा लंबा हुआ करता था और दांत भी बड़े हुआ करते थे. समय के साथ दातों में बदलाव आए और बदलाव का असर अक्ल की दाढ़ के दातों पर भी हुआ था.
पहले बहुत अलग हाल था
शोध में सामने आया है कि 30 से 40 साल पहले ऑस्ट्रेलियोपिथेकस अफारेन्सिस जैसे मानव के शुरुआती पूर्वजों का जबड़ा काफी बड़ा और मोटा होता था. उनके मोटे एनैमल के साथ तीन बड़े मोलर दांत होते थे. जीवाश्म दर्शाते हैं कि इनकी चबाने की क्षमता बहुत ही शक्तिशाली थी. शोध बताते हैं कि मानव पूर्वज कच्चा मांस और पेंड़- पौधों के हिस्से खाते थे जिन्हें चबाना बहुत मुश्किल होता था, जबकि आज के भोजन बहुत ही नर्म होते हैं.
खाने के तरीके में अंतर का असर
मनुष्य जैसे-जैसे सभ्य हुआ कुछ हजार सालों से नर्म पका हुआ और आसानी से चबाने वाला भोजन करनो लगा. इसके चलते दांतों को चबाने में कम ताकत लगने लगी है. इसके नतीजे में विकास प्रक्रिया में इंसान का जबड़ा छोटा होता चला गया.और स्थिति यह होती गई की वह दांत आने में और ज्यादा वक्त लगने लगा जब तक कि जबड़ा उम्र के साथ बड़ा होकर उस मोलर के तैयार ना हो जाए.
एक चौथाई इंसानों में मोलर दांत गायब
लाखों सालों में इंसाने के शरीर में धीरे-धीरे हुए इन बदलावों में तीसरे मोलर यानी अक्ल की दाढ़ वाले दांत की वह अहमियत नहीं रही जो हुआ करती थी. आज दुनिया के एक चौथाई इंसानों में एक मोलर दांत पूरी तरह से गायब है. या वे कभी बने ही नहीं, जबकि कुछ लोगों में यह कभी कभी ऊग आता है. वैज्ञानिकों को लगता है कि इसकी वजह माता पिता की जीन हो सकती हैं.