Explainer : संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में केवल 5 देशों के पास ही वीटो पावर क्यों मिला है?
अमेरिका ने कुछ दिनों पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव को वीटो कर दिया, जिसमें पिछले सप्ताह युद्ध विराम का आह्वान किया गया था. संयुक्त राष्ट्र के भीतर विशिष्ट देशों को वीटो शक्तियां क्यों दी गई हैं, और वह शक्ति 70 से अधिक वर्षों से क्यों बरकरार रखी गई है? आज हम इसके बारे में समझेंगे.
Why do five countries have veto power in UN : संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने गाजा में इजरायल-हमास संघर्ष में तत्काल युद्धविराम के लिए एक प्रस्ताव अपनाया, जिसके खिलाफ अमेरिका ने वीटो पावर लगाकर उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. अमेरिका संयुक्त राष्ट्र महासभा का स्थायी सदस्य है. 153 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, 10 ने इसके खिलाफ मतदान किया और 23 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया. संयुक्त राष्ट्र स्थाई सदस्य देशों को वीटो शक्तियां क्यों दी गई हैं और यह 70 से अधिक वर्षों से क्यों बरकरार हैं. इसके बारे में आज हम जानते हैं.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या है?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है, जिसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में हुआ था.
सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य हैं ये स्थायी सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन हैं. सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है. इन देशों की सदस्यता दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के शक्ति संतुलन को प्रदर्शित करती है. गौरतलब है कि इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो साल के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है. स्थायी और अस्थायी सदस्य बारी-बारी से एक-एक महीने के लिये परिषद के अध्यक्ष बनाए जाते हैं. अस्थायी सदस्य देशों को चुनने का उदेश्य सुरक्षा परिषद में क्षेत्रीय संतुलन कायम करना है. अस्थायी सदस्यता के लिये सदस्य देशों द्वारा चुनाव किया जाता है. इसमें पांच सदस्य एशियाई या अफ्रीकी देशों से, दो दक्षिण अमेरिकी देशों से, एक पूर्वी यूरोप से और दो पश्चिमी यूरोप या अन्य क्षेत्रों से चुने जाते हैं.
UNSC में वीटो पावर क्या होता है?
संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश महासभा का हिस्सा हैं. यह निकाय प्रासंगिक मामलों पर प्रस्ताव पारित कर सकता है. गैर-बाध्यकारी प्रस्तावों को पारित करने के लिए केवल साधारण बहुमत (आधे से अधिक सदस्यों का) की आवश्यकता होती है. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एक अधिक विशिष्ट क्लब है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, रूस और चीन शामिल हैं. मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के पास वीटो पॉवर है. वीटो पॉवर का अर्थ होता है ‘मैं अनुमति नहीं देता हूँ.’
केवल 5 देशों को ही वीटो पावर क्यों ?
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के रचनाकारों ने कल्पना की थी कि पांच देश...संयुक्त राष्ट्र की स्थापना में अपनी प्रमुख भूमिकाओं के कारण, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के रख-रखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे. "1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद, P-5 जर्मनी, इटली और जापान के खिलाफ विजेताओं में से थे. उनमें से, अमेरिका, ब्रिटेन और USSR (बाद में रूस इसकी सीट लेगा) युद्ध प्रयासों में सबसे आगे थे. जब अंतरराष्ट्रीय शांति बनाए रखने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाने की बात आई, तो वे खुद को कुछ विशेष अधिकार देने के इच्छुक थे.
इसके बाद प्रमुख मित्र शक्तियों, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और यूनाइटेड किंगडम ने अपने लिए स्थायी सीटें सुरक्षित कर लीं. उन्होंने बदले में फ्रांस और चीन को इस उम्मीद में सीटें देने की पेशकश की कि ये दोनों देश महान शक्ति का दर्जा ग्रहण करेंगे. उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट को विश्वास था कि चीन में कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनलिस्ट पार्टी के बीच चल रहे गृह युद्ध के बावजूद, कम्युनिस्ट हार जाएंगे और देश यूएसएसआर के खिलाफ सहयोग करेगा.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता क्यों ?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद वर्तमान समय में भी द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की भू-राजनीतिक संरचना को दर्शाती है. परिषद के पांच स्थायी सदस्यों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन को 7 दशक पहले केवल एक युद्ध जीतने के आधार पर किसी भी परिषद के प्रस्ताव या निर्णय पर वीटो का विशेषाधिकार प्राप्त है. पता हो कि सुरक्षा परिषद का विस्तार वर्ष 1963 में 4 गैर-स्थायी सदस्यों को इसमें शामिल करने हेतु किया गया था. तब 113 देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य थे लेकिन आज इनकी संख्या 193 तक बढ़ गई है, फिर भी आज तक इसका विस्तार नहीं किया गया है.
परिषद की वर्तमान संरचना कम-से-कम 50 वर्ष पहले की शक्ति संतुलन की व्यवस्था पर बल देती है. उदाहरण के लिये यूरोप जहाँ दुनिया की कुल आबादी का मात्र 5 प्रतिशत जनसंख्या ही निवास करती है, का परिषद में स्थायी सदस्य के तौर पर सर्वाधिक प्रतिनिधित्व है. बता दें कि अफ्रीका का कोई भी देश सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है, जबकि संयुक्त राष्ट्र का 50 प्रतिशत से अधिक कार्य अकेले अफ्रीकी देशों से संबंधित है.