Explianer: श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला, जानिए क्या है पूरा विवाद

Explianer: श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. हाईकोर्ट ने विवादित परिसर के सर्वेक्षण का आदेश दिया है.

Ayushi Chauhan
Ayushi Chauhan

Explianer: मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद के विवाद पर गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित परिसर के सर्वे का आदेश दिया है. कोर्ट ने विवादित जमीन का सर्वे एडवोकेट कमिश्नर से कराने की मांग भी मंजूर कर ली है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाते हुए हिंदू पक्ष की याचिका मंजूर कर ली है. इस मामले में जस्टिस मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने दोपहर 2 बजे के करीब अपना फैसला सुनाया है. कोर्ट ने अपने फैसले में ज्ञानवापी विवाद की तर्ज पर मथुरा के विवादित परिसर का भी एडवोकेट कमिश्नर के जरिए सर्वे कराने का आदेश दिया है.

यह याचिका भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और सात अन्य ने वकील हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडे और देवकी नंदन के माध्यम से दायर की थी. जिसमें दावा किया गया है कि उस मस्जिद के नीचे भगवान कृष्ण का जन्मस्थान मौजूद है और ऐसे कई निशान हैं जो साबित करते हैं कि वह मस्जिद एक हिंदू मंदिर है.

याचिका में क्या किया गया दावा 
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन के अनुसार, याचिका में दावा किया गया है कि वहां एक कमल के आकार का स्तंभ है जो हिंदू मंदिरों की विशेषता है और हिंदू देवताओं में से एक शेषनाग की प्रतिकृति है जो भगवान शिव के जन्म की रात प्रकट हुए थे. कृष्ण की रक्षा की थी.     

पहली बार कब शुरू हुआ मुकदमा

पहला मुकदमा -15 मार्च 1832 को अताउल्लाह खतीब नामक व्यक्ति ने कलेक्टर कोर्ट में दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि 1815 में पटनीमल के नाम पर कटरा केशवदेव की जमीन की नीलामी की गई थी. इसे रद्द किया जाना चाहिए और मस्जिद की अनुमति दी जानी चाहिए. मरम्मत की जाए. तब कलेक्टर ने नीलामी को उचित ठहराया था.

दूसरा मामला- 1897 में अहमद शाह नाम के एक व्यक्ति ने मथुरा थाने में कटरा केशवदेव चौकीदार गोपीनाथ के खिलाफ मारपीट करने और मस्जिद की जमीन पर सड़क बनाने से रोकने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. 12 फरवरी 1897 को मामले को तुच्छ बताकर खारिज कर दिया गया और यह स्वीकार कर लिया गया कि ईदगाह भी पटनीमल की संपत्ति थी.

तीसरा मामला-1920 में मुस्लिम पक्ष की ओर से काजी मोहम्मद अमीर ने कटरा केशवदेव के पश्चिम में स्थित गंगा जी के मंदिर पर अधिकार का दावा किया. विवाद रद्द कर दिया गया.

चौथा मामला-1928 में पटनीमल के उत्तराधिकारी राय कृष्ण दास ने मोहम्मद अब्दुल्ला खान पर मुकदमा दायर किया. बताया गया कि मस्जिद के आसपास रखे सामान में केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा था. कोर्ट ने कहा कि राय कृष्ण दास ही जमीन के मालिक हैं. मुसलमान को वहां से कुछ नहीं मिलेगा.

पांचवां मामला- 1946 में मस्जिद की ओर से बारीताला ने पंडित गोविंद इंजील और मदन मोहन इंजील आदि पर मुकदमा दायर किया. इसमें अंतरराष्ट्रीय आदिम भूमि को अवैध घोषित कर दिया गया. लेकिन फैसला मौलिक आदि के पक्ष में आया.

छठा मामला- 27 सितंबर 1955 को श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने नगर निगम बोर्ड को पंडित गोविंद मालवीय आदि का नाम कागजात में दर्ज करने के लिए आवेदन दिया था. प्रतिवादी ने अपील की, लेकिन मामला खारिज कर दिया गया. विपक्ष ने एडीजे की अदालत में मुकदमा दायर किया, लेकिन फैसला ट्रस्ट के पक्ष में आया.

सातवां मामला- 1960 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने शौकत अली आदि के खिलाफ मुकदमा दायर किया. इसमें सेवा संघ पर अपनी जमीन न छोड़ने का आरोप लगाया गया. कोर्ट ने कहा कि जो लोग वहां से नहीं हटेंगे उनकी चल-अचल संपत्ति कोर्ट को सौंप दी जाए.

आठवां मामला- 1961 में शौकत अली और 16 अन्य लोगों ने अतिरिक्त सिविल जज की अदालत में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ पर मुकदमा दायर किया था. इसमें मुंसिफ कोर्ट केस रोकने की मांग की गई. कोर्ट ने कहा कि जो अधिकार राय कृष्ण दास को प्राप्त थे वे अब श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के पास रहेंगे.

नौवां मामला- 1965 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने विपक्षी बुद्धू और खुट्टन के खिलाफ न्यायिक मुंसिफ के समक्ष मुकदमा दायर किया. इनका निर्णय 26 फरवरी 1969 को हुआ. इस अंतिम मामले में जन्मभूमि भूमि के किरायेदार बुद्धू आदि पर जल कर न देने का आरोप लगा. फैसला श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के पक्ष में आया.

ये वाद हुए खारिज
लखनऊ निवासी वकील शैलेन्द्र सिंह ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर से शाही मस्जिद ईदगाह को हटाने की मांग की थी. उन्होंने सिविल जज सीनियर की अदालत में मुकदमा दायर किया था. इसके बाद उन्होंने समस्त सनातन समाज की ओर से जिला जज की अदालत में मुकदमा दायर करने की अनुमति मांगी थी. प्रभावी पैरवी के अभाव में दोनों मुकदमे खारिज कर दिये गये. 

शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी का क्या है कहना
अमीन का निरीक्षण आदेश असंवैधानिक है. हमें पहले इस संबंध में एक नोटिस जारी करना था.' हमारी बात सुनने के बाद कोर्ट का फैसला आया. जिला जज कोर्ट में भी बहस चल रही है, यहां भी पहले प्रतिवादी को नोटिस जारी कर उसकी बात सुनी जा रही है. हम कोर्ट से इस आदेश को शुरू करने की मांग करेंगे.' तनवीर अहमद, सचिव शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी.
 

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14 December 2023, 05:03 PM IST

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