वर्क प्रेशर का इतना ज्यादा लोड कि एक नौकरी ने छीन ली 26 साल की जिंदगी!

पुणे में अर्न्स्ट एंड यंग की 26 वर्षीय कर्मचारी अन्ना सेबेस्टियन की मौत ने कॉर्पोरेट दुनिया में हलचल मचा दी है. क्या यह महज एक हादसा है या वर्क प्रेशर का खतरनाक चेहरा आंकड़े बताते हैं कि 78% भारतीय कर्मचारी बर्नआउट का सामना कर रहे हैं. क्या आपकी नौकरी भी आपको खतरे में डाल रही है जानें, इस गंभीर मुद्दे पर और क्या कहती हैं कंपनियां. क्या वर्क-लाइफ बैलेंस केवल एक ख्वाब है पूरी कहानी जानने के लिए पढ़ें.

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Workload: पुणे में अर्न्स्ट एंड यंग की 26 वर्षीय कर्मचारी अन्ना सेबेस्टियन की मौत ने कॉर्पोरेट दुनिया के खतरनाक पहलू को उजागर किया है. अन्ना की मां का कहना है कि कंपनी में काम शुरू करने के कुछ ही महीनों बाद उनकी बेटी की भूख-नींद खत्म हो गई थी. यह मामला केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि उस समस्या का प्रतीक है जो युवा पेशेवरों के बीच तेजी से बढ़ रही है.

आज के समय में, जब युवा काम के प्रति समर्पित हैं, कॉर्पोरेट दबाव उनके जीवन पर भारी पड़ रहा है. एक ग्लोबल थिंक टैंक, यूकेजी वर्कफोर्स इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत में लगभग 78% कर्मचारी बर्नआउट का अनुभव कर रहे हैं. यह स्थिति इतनी गंभीर है कि 64% लोग अपने वेतन में कटौती के लिए भी तैयार हैं, बस वर्कलोड कम करने के लिए.

काम का समय और बर्नआउट

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का मानना है कि भारत में औसत कार्य सप्ताह लगभग 48 घंटे है, जो अमेरिका (37 घंटे) और यूके (36 घंटे) से कहीं अधिक है. कोविड-19 के दौरान वर्क फ्रॉम होम ने काम के घंटों को और बढ़ा दिया. अब कई युवा पेशेवरों का मानना है कि उन्हें लगातार काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिससे उनकी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है.

कर्मचारियों की जुबानी

बेंगलुरु, मुंबई और पुणे के कई कर्मचारियों ने बताया कि क्लाइंट डेडलाइंस और काम का बढ़ता बोझ उनकी जिंदगी को बंधुआ बना रहा है. एक मिड-लेवल कर्मचारी ने कहा, 'मेरी शिफ्ट 9 घंटे की है, लेकिन पिछले तीन सालों में मैंने एक बार भी समय पर लैपटॉप बंद नहीं किया.' चेतना भगत, जो एक अंतरराष्ट्रीय एमएनसी में काम करती हैं, कहती हैं कि उन्हें रात-दिन ऑनलाइन मीटिंग्स के लिए तैयार रहना पड़ता है.

वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी

इसका नतीजा यह है कि कर्मचारी वर्क-लाइफ बैलेंस खो रहे है. मातृत्व अवकाश से लौटने वाली अर्चना ने कहा, 'काम पर लौटने के बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है.' विक्रांत, जो हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में हैं, बताते हैं कि उन्हें अपनी शादी के दिन भी मीटिंग अटेंड करनी पड़ी.

जापान के अनुभव से सीख

जापान में 'करोशी' का एक शब्द प्रचलित है, जिसका मतलब है अधिक काम से मौत. यह स्थिति अब भारत में भी नजर आने लगी है, जहां युवा पेशेवर लगातार तनाव और काम के बोझ के चलते अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं. अन्ना की मौत पर अर्न्स्ट एंड यंग ने संवेदना जताई है और कहा है कि वे अपने कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन क्या यह केवल एक बयान है? क्या कंपनियां सच में अपने कर्मचारियों की भलाई के लिए काम कर रही हैं?

सोचने का विषय बना काम

आजकल की नौकरी करने वाली पीढ़ी को मशीनों की तरह काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. बिना किसी मानवता के वे केवल कार्य की एक इकाई बनकर रह गए हैं. यह स्थिति गंभीर है और अगर इसे समय पर नहीं रोका गया तो आने वाले समय में इससे और अधिक भयावह परिणाम हो सकते हैं. क्या युवा पेशेवर अपने स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन की कीमत पर काम करते रहेंगे? यह सोचने का विषय है. First Updated : Wednesday, 18 September 2024