पहली बार सुप्रीम कोर्ट के जज अपनी संपत्ति करेंगे सार्वजनिक, CJI संजीव खन्ना की बैठक में हुआ फैसला

सुप्रीम कोर्ट के सभी जज पहली बार अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने पर सहमत हुए हैं. यह फैसला 1 अप्रैल को सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया गया. न्यायपालिका की पारदर्शिता और लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया गया है. आपको बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने के बाद न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर नकदी मिलने के बाद न्यायपालिका की साख दांव पर लगी है. न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बढ़ाने और पारदर्शिता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जजों ने बड़ा कदम उठाया है. सुप्रीम कोर्ट के सभी जज अपनी संपत्ति का ब्यौरा पहली बार शीर्ष अदालत की आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक करेंगे. ऐसा पहली बार होगा, जब शीर्ष कोर्ट के जज अपनी संपत्ति की जानकारी देंगे. आपको बता दें कि बहुत पहले से यह मांग उठाई जा रही थी कि सुप्रीम कोर्ट के जज समेत देश के हाईकोर्ट और लोअर कोर्ट के जज अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करें.

जल्द उपलब्ध होगा ब्यौरा

सूत्रों ने बताया कि 1 अप्रैल को आयोजित पूर्ण अदालत की बैठक में जजों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष अपनी संपत्ति का खुलासा करने का निर्णय लिया, तथा यह घोषणा सर्वोच्च अदालत की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी. अभी तक सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर केवल इतना ही लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के 30 जजों ने अपनी संपत्ति घोषित की है. हालांकि, संपत्ति का विवरण सार्वजनिक डोमेन पर उपलब्ध नहीं है. लेकिन जल्द ही यह उपलब्ध हो जाएगा. यह निर्णय दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक परिसर में कथित तौर पर नकदी पाए जाने के विवाद के बाद आया है.

1 अप्रैल को प्रस्ताव पारित

सूत्र ने बताया कि जजों की संपत्ति घोषणाओं को प्रकाशित करने के विशिष्ट तौर-तरीकों को यथासमय अंतिम रूप दे दिया जाएगा. वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने अपनी संपत्ति की घोषणा प्रस्तुत कर दी है. हालांकि, इन घोषणाओं को सार्वजनिक नहीं किया गया है. इस संबंध में एक प्रस्ताव 1 अप्रैल को पारित किया गया और यह भावी जजों पर भी लागू होगा.

इससे पहले वेबसाइट पर परिसंपत्तियों का प्रकाशन अनिवार्य नहीं था, लेकिन यह विवेकाधीन था कि कोई व्यक्तिगत जज ऐसा करना चाहे या नहीं. वर्ष 2009 में भारत की सर्वोच्च अदालत की पूर्ण अदालत ने पहली बार महत्वपूर्ण निर्णय लिया था, जो जनता और न्यायपालिका के भीतर से भारी दबाव के बाद आया था.

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03 April 2025, 01:41 PM IST

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