क्या है शत्रु संपत्ति? जिसके तहत खत्म हो जाएगी मुशर्रफ की पुश्तैनी निशानी, जानिए पूरी कहानी
पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष और राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के परिवार के नाम दर्ज शत्रु संपत्ति की नीलामी जल्द होने वाली है. यूपी के बागपत के कोताना में मुशर्रफ के परिवार की कुल 13 बीघा जमीन है. जानकारी के मुताबिक नीलामी करने के लिए प्रशासन ने ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू कर दी है. 5 सितंबर तक संपत्ति को नीलाम कर इस जमीन के खरीदारों के नाम कर दिया जाएगा.
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का जल्द ही भारत की जमीन से पूरी तरह से नामोनिशान मिट जाएगा. परवेज के परिवार के नाम अभी भी यूपी के बागपत जिले के एक गांव में मौजूद है. इस जमीन को प्रशासन ने पहले ही शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया था. अब जल्द ही मुशर्रफ की जमीन की नीलामी की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. जानकारी के मुताबिक, फिलहाल नीलामी आधी जमीन की होगी और बाद में बाकी जमीन को भी नीलाम कर दिया जाएगा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीसीडा) ने इस नीलामी की तैयारी की है. प्रवक्ता के अनुसार, इसके तहत कुल 154 औद्योगिक भूखंडों, तीन ग्रुप हाउसिंग भूखंडों, एक नर्सिंग होम, एक वेइंग ब्रिज, आठ वेयरहाउस के लिए भूखंडों की नीलामी की जाएगी.
क्या है शत्रु संपत्ती
शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 में भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है. इसके अनुसार शत्रु संपत्ति पर भारत सरकार का अधिकार होगा. पाकिस्तान से 1965 में हुए युद्ध के बाद 1968 में शत्रु संपत्ति (संरक्षण एवं पंजीकरण) अधिनियम पारित हुआ था. इस अधिनियम के अनुसार जो लोग बंटवारे या 1965 में और 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान चले गए और वहां की नागरिकता ले ली थी, उनकी सारी अचल संपत्ति 'शत्रु संपत्ति' घोषित कर दी गई. उसके बाद पहली बार उन भारतीय नागरिकों को संपत्ति के आधार पर 'शत्रु' की श्रेणी में रखा गया, जिनके पूर्वज किसी ‘शत्रु’ राष्ट्र के नागरिक रहे हों.
बागपत जिले में हैं मुशर्रफ का पुश्तैनी गांव
बता दें कि, बागपत जिले के बड़ौता थाना क्षेत्र में कोताना गांव है जो परवेज मुशर्रफ का पुश्तैनी गांव है. इस गांव में उसके परिवार की जमीन आज भी मौजूद है. हालांकि, इस जमीन को काफी समय पहले प्रशासन ने शत्रु संपत्ती घोषित कर दिया था. परवेज मुशर्रफ के पिता मुशर्रफुद्दीन और उनकी मां बेगम जरीन इसी कोताना गांव के रहने वाले थे. दोनों की शादी भी यहीं हुई थी लेकिन बाद में वो दिल्ली जाकर रहने लग गए. यहां पर दोनों ने अचल संपत्ति खरीदी थी. यही पर परवेज मुशर्रफ और उनके छोटे भाई जावेद का जन्म हुआ था. वहीं जब 1947 में भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो परवेज मुशर्रफ का परिवार पाकिस्तान चल गया.
अब खत्म हो जाएगी मुशर्रफ की पुश्तैनी निशानी
पाकिस्तान जाने के बाद भी मुशर्रफ की दिल्ली वाली हवेली के साथ-साथ कोताना में भी उनकी जमीन मौजूद रही. हालांकि परवेज के नाम पर जो जमीन रजिस्ट्री थी उसे पहले ही बेच दी गई थी. हालांकि, परवेज के भाई जावेद मुशर्रफ और बाकी परिजनों की की सदस्यों 10 बीघा के आस-पास जमीन उनके नाम पर आज तक है. अब शत्रु संपत्ति के तहत मुशर्रफ के परिवार की जमीन का निलमी किया जाएगा.