Gandhi Jayanti: मोहन दास करमचंद गांधी, आधुनिक भारतीय इतिहास का वो नाम है जिसकी एक आवाज पर ये देश एकजुट होकर उसके पीछे चलने को तैयार हो जाता था. देश की जनता ने जिन्हें पहले गांधी जी कहा फिर बापू उसके बाद महात्मा गांधी और फिर राष्ट्रपिता. कहते हैं कोई भी इंसान अपने कर्मों से महान बनता है. गांधीजी की 153वीं जयंती के अवसर पर इस स्टोरी में बताएंगे उनके जीवन के ऐसे पहलुओं के बारे में जिसने उन्हें महानता के शिखर पर स्थापित कर दिया.
गांधी 79 वर्ष जीवित रहे और दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने मां भारती की सेवा की. गांधीजी ने जिस भारत के लिए संघर्ष किया था उनकी आंखों के सामने उसका विभाजन हुआ और गांधी कुछ न कर सके. अफसोस होता है ये जानकर की उन्होंने अपने आखिरी दिनों में ये कहा कि मैं अब जिंदा रहकर क्या करूंगा, अब मैं और नहीं जीना चाहता.
अहिंसा के पुजारी, बापू के देश में धर्म के नाम पर लोग मारे जा रहे थे और बूढ़े हो चुके बापू यथाशक्ति बिना किसी पावर के सामान्य इंसान की तरह उसे रोकने में अपना पूरा सामर्थ्य झोंकने में लगे थे.
आइए अब बात करते हैं गांधी के महात्मा बनने के सफर के बारे में. गांधी की महानता को मापने के लिए आइंस्टाइन का एक कथन ही काफी कारगर है जिसमें उन्होंने कहा था कि “आने वाली पीढ़ियाँ विश्वास नहीं करेंगी कि इस धरती पर गांधी जैसा कोई हाँड-माँस का शरीर रहा होगा.”
गांधी के महात्मा बनने का सफर उनके बचपन से उनके परिवार के साथ ही शुरू हो गया था. गांधी अपनी जीवनी My Experiment with Truth में बताते हैं कि उनके परिवार का माहौल बेहद सात्विक था. उनके माता पिता वैष्णव थे जिस वजह से आगे चलकर गांधी जी भी श्रीराम के उपासक बने और आगे चलकर श्रीमदभगवद्गीता उनकी पसंदीदा प्रेणादायक पुस्तक. गांधी स्वयं मानते हैं कि बाल्यकाल में वह गलत मित्र की संगत में पड़े जिसके चलते वह मांसाहार और संभवतः मदिरापान तक करने लगे. उस गलत मित्र की संगत उन्हें व्यभिचार की ओर ढकेलने ही वाली थी कि उनके संस्कारों ने उन्हें रोक लिया.
वे बताते हैं कि बाद में उन्होंने पिता जी को इसके बारे में बताया भी. हालांकि, पिता ने कोई दंड नहीं दिया लेकिन गांधी ने फिर भी इसका प्रयाश्चित किया. गांधी के संस्कारों का ही असर है कि जिस व्यक्ति ने बचपन में मांसाहार और मदिरापान तक किया.. आगे चलकर उसने डॉक्टर के कहने पर भी अपने बीमार और मरणासन स्थिति में पड़े बेटे को मांसाहार नहीं करने दिया. वह इतने अहिंसक हुए कि उन्होंने गाय के दूध तक को इंकार कर दिया.
इतिहासकार मानते हैं कि, संस्कारों के अलावा दक्षिण अफ्रीका में किए उनके संघर्षों ने उनके व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस मामले में रामचंद्र गुहा ठीक कहते हैं कि, “गांधी ने जो दो दशक दक्षिण अफ्रीका में बिताए वे गांधी को महात्मा बनने की राह पर ले गए.” दक्षिण अफ्रीका में गांधी का कई तरीके से कई बार घोर अपमान हुआ लेकिन गांधी उससे विचलित नहीं हुए बल्कि और अधिक मजबूत होकर उससे लड़ने के लिए उसके सामने डट कर खड़े हो गए. यहीं से उन्होंने सार्वजनिक जीविन में प्रवेश किया और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद उन्होंने किसी नेता की तरह भाषण देने शुरू कर दिए. वह देश की स्थिति को समझने के लिए जगह-जगह घूमते रहे. इसी दौरान भारतीयों से जुड़ने और अंग्रेजों का विरोध करने के लिए लंदन में पढ़े लिखे उस बैरिस्टर ने अपना विदेशी चोला उतार कर फेंक दिया और तन पर एक कपास की धोती धारण की जिसे वह अपने हाथों से बुनते थे.
गांधीजी का जन सामान्य के साथ जुड़ने का यह प्रयास शायद ही उनके अलावा आज के जमाने में किसी ने किया हो. सत्य और अहिंसा, सत्याग्रह, स्वराज, स्वदेशी और सर्वोदय जैसे विचारों के चलते गांधी पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा हैं.
इसी प्रकार गांधी के अहिंसक आंदोलन और सबको एक पिता की भांति साथ लेकर चलने के उनके प्रयास ने उन्हें महात्मा बना दिया. उनका उज्जवल व्यक्तित्व ही था जिसकी बदौलत मदभेद होने के बाद भी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि दी. First Updated : Sunday, 01 October 2023