वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई, 73 याचिकाएं दायर
उच्चतम न्यायालय बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता पर 73 याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. इन याचिकाओं में धार्मिक भेदभाव, कार्यकारी अतिक्रमण और वक्फ सुरक्षा को कमजोर करने के आरोप लगाए गए हैं. अदालत इस कानून के विभिन्न पहलुओं पर विचार करेगी.

भारत का सुप्रीम कोर्ट बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई करेगा, जिसे लेकर पूरे देश में व्यापक विरोध और आपत्तियाँ उठ रही हैं. यह सुनवाई न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा की जाएगी, जो बुधवार दोपहर 2 बजे याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेंगे.
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2023, जिसे हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया था, ने धार्मिक समुदायों के बीच विवाद को जन्म दिया है. आलोचकों का कहना है कि यह कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की कोशिश है. उनका यह भी तर्क है कि इस संशोधन से मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और यह भेदभावपूर्ण है.
अधिनियम को लेकर विरोध और समर्थन
इसके विपरीत, सरकार का कहना है कि इस अधिनियम का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के कुशल प्रबंधन और पारदर्शिता को सुनिश्चित करना है. सरकार ने यह भी दावा किया है कि इस संशोधन से वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रशासन होगा और इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा. इस कानून को लेकर कई राजनीतिक दल और संगठनों ने अपना समर्थन व्यक्त किया है, जिसमें सात राज्य भी शामिल हैं, जिन्होंने शीर्ष अदालत में हस्तक्षेप की मांग की है. उनका कहना है कि यह अधिनियम संवैधानिक रूप से सही है और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार के लिए आवश्यक है.
याचिकाओं में क्या है मुद्दा?
वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ कुल 73 याचिकाएँ दायर की गई हैं. इनमें कुछ याचिकाएं 1995 के मूल वक्फ अधिनियम के खिलाफ भी हैं, जिनमें हिंदू पक्षकारों ने आपत्ति जताई है. याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करने से मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन होता है. कुछ याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की है, ताकि जब तक मामला अदालत में है, तब तक इस पर कोई निर्णय न लिया जाए.
राजनीतिक दलों और संगठनों की भूमिका
इस मामले में राजनीतिक दलों का भी सक्रिय भूमिका है. याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, आरजेडी, जेडीयू, एआईएमआईएम, आप और भारतीय यूनियन मुस्लिम लीग सहित कई प्रमुख राजनीतिक दलों के नेता शामिल हैं. इन दलों का कहना है कि यह संशोधन मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों के खिलाफ है और इससे समुदाय में असंतोष फैल सकता है.
संशोधन और संसद का समर्थन
वक्फ (संशोधन) अधिनियम को 5 अप्रैल को संसद के दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद पारित किया गया. राज्यसभा में 128 सदस्यों के समर्थन और 95 के विरोध में, जबकि लोकसभा में 288 मतों के समर्थन और 232 के विरोध में इसे मंजूरी मिली. इसके बाद, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे स्वीकृति दी, और यह कानून बन गया.
सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल
केंद्र सरकार ने इस मामले में कैविएट दाखिल किया है, ताकि किसी भी आदेश से पहले उसकी बात सुनी जा सके. यह कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि सरकार को निर्णय में भाग लेने का मौका मिले. इस पूरी प्रक्रिया से यह स्पष्ट है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम ने देशभर में एक व्यापक बहस और विवाद को जन्म दिया है, और अब इसका अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा किया जाएगा.