होली और जुमे की नमाज पर पूरे देश में क्यों मचा है घमासान? संभल CO अनुज चौधरी का इसमें कितना रोल?
होली और रमजान के महीने में जुमे की नमाज पर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. करीब 64 सालों के बाद यह दोनों अवसर एक साथ आए हैं. अगर सियासत की दखलअंदाजी न होती, तो यह एक अद्भुत स्थिति होती, जब हिंदू और मुसलमान अपने-अपने त्योहार एक साथ मना सकते थे. लेकिन सियासत के चलते यह खुशहाली विवाद का रूप ले चुकी है, जिसके कारण साम्प्रदायिक तनाव का डर बना हुआ है.

Holi and Juma Ki Namaz: होली और जुमे की नमाज विवाद में यूपी के संभल जिले के सीओ अनुज चौधरी का बयान सुर्खियों में है. उन्होंने कहा कि जिन मुसलमानों को होली के रंगों से परेशानी है, उन्हें घर पर रहकर जुमे की नमाज पढ़नी चाहिए. इस बयान के बाद पूरे देश में होली और रमजान के जुमे को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं. कुछ नेताओं ने इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बताया, जबकि कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इस पहल को स्वीकार किया और जुमे की नमाज का समय बदलने की बात कही.
उदाहरण के लिए, लखनऊ में ईदगाह मस्जिद के इमाम ने ऐलान किया कि 14 मार्च को जुमे की नमाज दोपहर 12:45 बजे की बजाय 2 बजे होगी. इस तरह की पहल से यह संदेश जाता है कि धार्मिक सौहार्द और भाईचारा कायम रखने के लिए दोनों समुदायों को एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान करना चाहिए. वहीं, ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष ने भी इमामों से अपील की कि वे जुमे की नमाज का समय थोड़ा बदलें ताकि होली के उत्सव में कोई विघ्न न हो.
सियासी दल मामले को दे रहे तूल
हालांकि, सियासत से जुड़ी पार्टियां इस विवाद को बढ़ावा दे रही हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार में सत्तारूढ़ नेताओं ने इसे राजनीतिक रंग दे दिया है. कुछ नेताओं का कहना है कि अगर मुसलमानों को होली के रंगों से समस्या है, तो उन्हें अलग अस्पताल वॉर्ड या बुरका पहनने का सुझाव दिया गया. इस प्रकार की बयानबाजी से साम्प्रदायिक माहौल में और तनाव बढ़ता है.
बिहार विधानसभा चुनाव पर नजर
यह सब कुछ विशेष रूप से बिहार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए हो रहा है. राजनीतिक दलों के लिए यह एक अवसर है अपने कोर वोटबैंक को एकजुट करने का, चाहे इसके लिए सामाजिक सौहार्द को नुकसान ही क्यों न हो.
भाईचारे के त्योहार पर मचा घमासान
असल में, होली और रमजान दोनों ही भाईचारे के त्योहार हैं. यदि दोनों समुदाय एक-दूसरे के त्योहारों में हिस्सा लें तो यह देश के लिए एक मजबूत उदाहरण हो सकता है. लेकिन हमारे देश में यह आदत नहीं बन पाई कि हिंदू और मुसलमान एक साथ मिलकर अपने त्योहार मनाएं. धार्मिक कट्टरता और सियासत इस सौहार्दपूर्ण स्थिति में बाधा डालती है.


