Ashok Gehlot: क्षत्रिय, जाट और ब्राह्मणों के बीच कैसे राजस्थान की राजनीति के 'जादूगर' बने अशोक गहलोत
Ashok Gehlot: राजस्थान जैसे प्रदेश की राजनीति लगातार क्षत्रियों, जाटों और ब्राह्मणों के प्रभाव में रही हो, वहां जाति से माली और ख़ानदानी पेशे से जादूगर के बेटे ने कैसे अपने आपको कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया?
Ashok Gehlot Magician Of Rajasthan Politics: राजस्थान में इन दिनों 25 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी माहौल बना हुआ है. 2018 विधानसभा चुनाव के बाद से ही राज्य की सत्ता से बेदखल भारतीय जनता पार्टी हर हाल में सत्ता में वापसी के लिए जमीन पर संघर्षरत है. वहीं वर्तमान समय में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनाने की दावा पेश कर रही है. भाजपा का शीर्ष आलाकमान इन दिनों सीएम गहलोत की सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश में जुटी है.
राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत को भाजपा एक बड़ी परेशानी के रूप में देख रही है. यहीं कारण है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपना कोई मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से कतराती रही. ऐसा कहा जा रहा है कि राज्य में भाजपा के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो गहलोत को कड़ी टक्कर दे सकें. इन सब के बीच एक सवाल उठता है कि राजस्थान जैसे प्रदेश की राजनीति लगातार क्षत्रियों, जाटों और ब्राह्मणों के प्रभाव में रही हो, वहां जाति से माली और ख़ानदानी पेशे से जादूगर के बेटे ने कैसे अपने आपको कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया?
साल 1998 में पहली बार बने मुख्यमंत्री
साल 1998 में पहली बार अशोक गहलोत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. गहलोत ऐसे समय में पहली बार मुख्यमंत्री बने, जब प्रदेश में ताक़तवर जाट और प्रभावशाली ब्राह्मण नेताओं का बोलबाला था. अशोक गहलोत प्रदेश की राजनीति में हमेशा ही ग्वालियर राजघराने की बेटी और झालावाड़ राजघराने की बहू वसुंधरा राजे सिंधिया के सामने अकेली चुनौती रहे हैं. अब तो ऐसा समय आ गया है कि वसुंधरा राजे राजनीति छोड़ने का भी संकेत दे दी हैं.
वर्तमान समय को छोड़कर पूर्व की बात करें तो जब राजस्थान में कांग्रेस की पीठ पर केंद्र और राज्य की सत्ता विरोधी लहर था, कई घोटालों का चर्चा था, कई विवाद भी थे. उस दौरान भी कांग्रेस के लिए बस अशोक गहलोत का ही सहारा था. कांग्रेस के विश्वास पर खरा उतरते हुए उन्होंने पिछले यानी की 2018 विधानसभा चुनाव में हराकर वसुंधरा राजे को सरकार से बाहर करते हुए कांग्रेस की वापसी कराई.
कुशल रणनीतिकार के रूप में बनाए पहचान
अशोक गहलोत एक अच्छे रणनीतिकार के रूप में जाने जाते हैं. ये बात उनके समर्थकों के साथ-साथ विरोधी भी बखूबी जानते हैं. 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान गहलोत अपनी चुनावी रणनीति का लोहा मनवा चुके है. जिसके बदौलत कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दे पाई थी. अशोक गहलोत की कुशल रणनीति का ही नतीजा है कि सचिन पायलट की खुली बगावत के बाद भी उनकी सीएम कुर्सी पर कोई आंच नहीं आ सकी.
महज 34 साल के उम्र में बने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष
अशोक गहलोत की बढ़ते राजनीतिक कद की बारे में बात करें तो महज 34 साल की उम्र में ही पार्टी ने उन्हें राजस्थान के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे दी. जिसके बाद से उनका राजनीतिक कद लगातार बढ़ता ही गया. कई राजनीति विशेषज्ञों का मानना है कि अशोक गहलतो तीन पीढ़ियों से गांधी परिवार के भरोसेमंद रहे हैं. गहलोत को इंदिरा गांधी ने चुना जबकि संजय गांधी ने उन्हें तराशा था. यही नहीं राजीव गांधी ने गहलोत को आगे बढ़ाया जबकि सोनिया गांधी ने उन्हें चमकाया.