Explainer:डीप फेक भारतीय चुनावों को कैसे प्रभावित कर सकता है? क्या लोकतंत्र को इससे खतरा है, यहां जानिए ऐसे हर सवाल का जवाब
Impact of Deep fakes in Indian elections: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artifical Intelligence) के माध्यम से किसी का डीप फेक व फेक ऑडियो व फोटो बनाया जा सकता है. फेक ही नहीं बल्कि एआई के जरिए काल्पनिक फेक ऑडियो, वीडियो और फोटो बनाया जा सकता है.
हाइलाइट
- डीप फेक महत्त्वपूर्ण संस्थानों के प्रति लोगों में अविश्वास फैलाने के साथ लोकतंत्र को कमज़ोर कर सकता है
- डीप फेक का प्रयोग चुनावों में जातिगत द्वेष, चुनाव परिणामों की अस्वीकार्यता व गलत सूचनाओं के लिये किया जा सकता है.
- डीप फेक के द्वारा किसी उम्मीदवार को गलत वीडियो जारी कर उसकी छवि खराब की जा सकती है.
How deep fakes influence Indian elections : आज का युग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग है. आज हमारी आखों के सामने जो चीजें दिखाई देती हैं और कानों में सुनाई देती हैं, उन पर विश्वास करना आसान नहीं रहा. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीप फेक ने हमारी वास्तविकता का आकार बदल दिया है. क्योंकि एआई के माध्यम के किसी को फेक वीडियो, फेक ऑडियो, फेक फोटो बनाया जा सकता है. फेक ही नहीं बल्कि एआई के जरिए काल्पनिक फेक ऑडियो, वीडियो और फोटो बनाया जा सकता है. अमेरिका में, डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल पहले से ही नकली फिल्में बनाने, किसी उम्मीदवार की आवाज को क्लोन करने या विपक्ष के संदेश को कमजोर करने के लिए फर्जी कहानी गढ़ने के लिए किया जा रहा है. कुछ दिनों पहले पीएम मोदी का एक डीप फेक वीडियो सामने आया था, जिसमें पीएम मोदी गरबा डांस करते नजर आ रहे हैं. इस पर पीएम मोदी चिंता भी जता चुके हैं. डीप फेक का गलत इस्तेमाल हर क्षेत्र में होने लगा है, लेकिन आज हम राजनीति में डीप फेक के खतरों के बारे में बात करेंगे.
लोकतंत्र के लिये खतरा है डीप फेक
मतदाता के मन को बदल सकता है डीप फेक
अगर आपने चुनाव के दो दिन पहले तक किसी दल या उम्मीदवार के लिए पक्ष या विपक्ष में वोट करने के मन बना रखा है और इसी बीच उस दल के बड़े नेता या किसी उम्मीदवार का कोई आपत्तिजनक फोटो, वीडियो, या ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है तो ऐसे में मतदाता उस दल या पार्टी को अपने वोट देने के फैसले को बदल सकता है. बता दें कि ब्रिटेन के पिछले प्रधानमंत्री पद के चुनाव में लेबर पार्टी और कंज़रवेटिव पार्टी के उम्मीदवारों का एक डीप फेक वीडियो सामने आया जिसमें वे एक-दूसरे का समर्थन करते दिखाई दिये, इसी प्रकार भारत में भी 2019 के लोकसभा चुनावों में कुछ राजनेताओं के डीप फेक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे जिसे बाद में हटा दिया गया.
व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और पहचान को क्षति
डीप फेक का इस्तेमाल किसी व्यक्ति या संस्थान की पहचान और प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने के लिये किया जा सकता है.
ऐसे मामलों में यदि पीड़ित व्यक्ति फेक मीडिया को हटाने या स्थिति को स्पष्ट करने में सफल रहता है तो इसके कारण हुई शुरुआती क्षति को कम नहीं किया जा सकेगा. डीप फेक का प्रयोग कई तरह के अपराधों जैसे- धन उगाही, निजी अथवा संवेदनशील जानकारी एकत्र करने या किसी अन्य हित को अनधिकृत तरीके से पूरा करने के लिये किया जा सकता है.
अमेरिका में डीप फेक से फिल्में बन रही हैं
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीप फेक तकनीक का इस्तेमाल पहले से ही नकली फिल्में बनाने, किसी उम्मीदवार की आवाज को क्लोन करने या विपक्ष के संदेश को कमजोर करने के लिए फर्जी कहानी गढ़ने के लिए किया जा रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अर्जेंटीना में चल रहे चुनावों में AI हर जगह मौजूद है. देश का सोशल मीडिया एआई-जनित छवियों और वीडियो से हुआ है. इसमें डीपफेक और महत्वपूर्ण सड़कों को सजाने वाले एआई चित्रण शामिल हैं. क्लाउड एसईके की सतनालिका ने कहा, "भारत अलग नहीं होगा... सोशल मीडिया पर मीडिया की खपत राय बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है और जनरेटिव एआई का आगामी भारतीय चुनावों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा."
भारत के चुनाव में AI कब बना खतरा
भारत को पहली बार 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान एआई के हस्तक्षेप का खतरा देखने को मिला. जब उपयोगकर्ताओं को तत्कालीन राज्य भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी के विभिन्न भाषाओं में सीएम अरविंद केजरीवाल की नीतियों की आलोचना करने वाले वीडियो का सामना करना पड़ा. इस पर मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) ने पता लगाया कि वीडियो एआई का उपयोग करके बनाए गए थे. जेनेरेटिव एआई और डीपफेक की तकनीक तब शुरुआती थी, लेकिन आज यह किसी भी इंटरनेट उपयोगकर्ता के लिए आसानी से उपलब्ध है.
डीपफेक से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती इसकी पहचान है
डीपफेक के खतरों ने चुनाव निगरानीकर्ताओं को चिंतित कर दिया है. यूके के राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा केंद्र ने एक वार्षिक रिपोर्ट में एआई के उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य को "यूके की चुनावी प्रक्रियाओं के लिए जोखिम के महत्वपूर्ण क्षेत्रों" के रूप में सूचीबद्ध किया है. साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ जितेन जैन कहते हैं, ''डीपफेक की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि फोरेंसिक लैब को भी किसी माध्यम की सत्यता स्थापित करने में कई दिन लग सकते हैं.''
राजनीतिक लड़ाई में नया हथियार बन सकता है डाप फेक
प्रतिद्वंद्वी दलों के बीच चुनावी लड़ाई में डीपफेक ने एक नया मोर्चा खोल दिया है. मध्य प्रदेश में कौन बनेगा करोड़पति और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर दो डीप फेक वीडियो आए थे. इस पर बीजेपी ने चुनाव आयोग और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने आरोप लगाया है कि केबीसी और मध्य प्रदेश में सीएम चौहान के डीपफेक वीडियो फैलाने वाले सोशल मीडिया हैंडल कांग्रेस से संबंधित थे.
चुनाव की सुरक्षा के लिए इंटरनेट कंपनियां क्या कर रही हैं?
माइक्रोसॉफ्ट ने मीडिया सामग्री के लिए डिजिटल वॉटरमार्क निर्दिष्ट करने के उपायों की घोषणा की है, जो उपयोगकर्ताओं को यह बताता है कि सामग्री कैसे, कब और किसके द्वारा बनाई या संपादित की गई थी और क्या यह एआई द्वारा उत्पन्न की गई थी. यह साइबर सुरक्षा खतरों से निपटने और चुनाव निगरानी के उपायों में भी सहायता करेगा. फेसबुक और इंस्टाग्राम का स्वामित्व रखने वाली कंपनी मेटा ने कहा है कि उसे यह बताने के लिए राजनीतिक विज्ञापनों की आवश्यकता होगी कि उन्होंने एआई का उपयोग किया है या नहीं.
चुनावों में AI के हस्तक्षेप को रोकने के लिए विश्व स्तर पर क्या कानून हैं?
कई देशों में चुनावों में डीपफेक के खतरे से निपटने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित कानून नहीं हैं. अमेरिका में, कई राज्यों ने विशिष्ट कानून बनाए हैं. संघीय स्तर पर, चुनावों को भ्रामक एआई से बचाने का अधिनियम इस साल सितंबर में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित किया गया है.