Explainer: कामकाजी महिलाओं को पीरियड लीव मिलनी चाहिए या नहीं, इस पर नई बहस छिड़ गई है. संसद में इस बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि मासिक धर्म कोई बाधा नहीं बल्कि जीवन का स्वाभाविक हिस्सा है. ऐसे मुद्दों का प्रस्ताव नहीं किया जाना चाहिए जहां महिलाओं को समान अवसरों से वंचित किया जाता है.
राज्यसभा में राष्ट्रीय जनता दल के सदस्य मनोज कुमार झा ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी से 'पीरियड पेड लीव' पॉलिसी पर सवाल पूछा. इसके जवाब में जो स्मृति ईरानी ने कहा उसके बाद से वो काफी चर्चा में हैं. स्मृति ईरानी ने कहा कि महिलाओं को पीरियड्स आना सामान्य बात है. इसे बाधा या समस्या के रूप में न लिया जाए, यह जीवनशैली का हिस्सा है. वर्तमान समय में सभी कार्यस्थलों पर 'पीरियड पेड लीव' लागू करना आवश्यक नहीं है. पीरियड की छुट्टियों को बाधा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. मासिक धर्म कोई व्यवधान नहीं है इसके लिए इस पॉलिसी की आवश्यकता नहीं है.
माहवारी हर महिला की जिंदगी से जुड़ा मामला है. माहवारी के दौरान हर किसी की बॉडी अलग तरह से रिएक्ट करती है. स्मृति ईरानी ने कहा कि महिला की जिंदगी में इसको नेगेटिव तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, लेकिन क्या ये हर लड़की या स्त्री के लिए एक जैसा ही रहता है? आमतौर पर हर महिलाओं में महावारी होती है, जिसमें उनके शरीर में अनेकों तरह के बदलाव होते हैं. किसी के लिए ये बहुत सामान्य होता है तो किसी के लिए बहुत ही तकलीफ़देह होता है.
महावारी शुरू से पहेल महिलाओं में पीएमएस या प्री-मेंस्ट्रयूल सिंड्रोम नाम की परेशानी आती है. इस की वजह से महिलाओं के हार्मोन में काफी बदलाव होते हैं. जहां एक तरफ किसी महिला के लिए आम दिनों की तरह ही हो सकता है. उसमें दर्द ना होना, ब्लीडींग का फ्लो कम होना, इसकी वजह से ऐसी महिलाओं को इस महावारी में ज्यादा दिक्कतें सामने नहीं आती हैं. वहीं दूसरी तरफ महिलाओं का एक तब्का ऐसा भी है जिसके अंदर महावारी के दौरान अलग तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं. इन बदलावों की वजह से महिलाओं के लिए छुट्टी का मुद्दा उठाया जाता है.
मेडिकल साइंस कहता है कि ये बदलाव 200 तरह के हो सकते हैं. इसमें मन के उतार-चढ़ाव जबरदस्त होते हैं. लड़कियों का मूड बहुत जल्दी ऊपर-नीचे होता रहता है. तन और मन दोनों कष्ट देते हैं. चिड़चिड़ापन बढ़ता है और उदासी कम होती है. उनका बार-बार रोने का मन करता है. यहां तक की पीरियड्स आने से दो तीन दिन पहले से ही शरीर में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं. वहीं, पीरियड्स के आने के दौरान शरीर में इतना दर्द होता है कि कई बार वो महिलाओं के लिए असहनीय होता है.
भारत को एक पुरुषप्रधान समाज कहा जाता है, अब सवाल ये उठता है कि अगर पुरुषों को इस तरह की कोई समस्या होती तो अब तक इसका निवारण किया जाता कि नहीं, या फिर सभी लोग इस इसकी तकलीफ के साथ ही काम करते रहते?
एक तरफ महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जाती है, उसके लिए हर तरह से प्रयास भी किए जा रहे हैं. अपने आप को साबित करने के लिए महिलाएं भी बहुत सी तकलीफों को झेलकर बाहर काम करने के लिए निकल रही हैं. ये सब लोग जानते हैं कि बाहर दफ्तर में जाकर काम करने वाली महिला सिर्फ दफ्तर में ही काम नहीं करती है बल्कि उसके ऊपर घर की भी जिम्मेदारी होती है. ऐसे में अगर उसके मुश्किल दिनों में एक दिन की छुट्टी देना इतना मुश्किल क्यों हैं? अगर देखा जाए तो तो इससे उसके काम पर भी असर पड़ेगा.
एक तरफ जहां पर महावारी की छुट्टी को लेकर बवाल मच रहा है वहीं, दूसरी तरफ देश में एक राज्य ऐसा भी है जो बहुत पहले ही महावारी के दौरान महिलाओं को छुट्टी दे रहा है. कई मामलों में पिछड़े बिहार ने इस मामले में सबसे पहले कदम उठाया है. लगभग तीन दशक पहले ही बिहार की महिला राज्य कर्मचारियों को साल 1992 में यह हक दिया गया कि वो मासिक धर्म के दौरान हर महीने दो दिन की छुट्टी ले सकती हैं, जिसे महिलाएं 45 साल की उम्र तक ले सकती हैं.
इसके साथ ही भारत में कई ऐसी भी संस्थाएं हैं जो पहले से ही महिलाओं के लिए पीरियड लीव दे रही हैं. इस तरह की पहले के लिए ज़ोमैटो काफी चर्चा में रहा था. ज़ोमैटो ने जब महिलाओं को पीरियड लीव देनी शुरू की तब कंपनी के इस कदम की हर तरफ सराहना हुई थी. इसमें ज़ोमैटो, स्विगी, ओरियंट इलेक्ट्रिक जैसी कम्पनियां हैं जो माहवारी छुट्टी दे रही हैं.
जापान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, ताइवान और जाम्बिया जैसे देश महिलाओं को उनका हक मानकर छुट्टी दे रहे हैं. उनके लिए ये कोई नई बात नहीं है. कुछ साल पहले तक इस एक ही देश था, सोवियत संघ जो महावारी की छुट्टी देता था. सोवियत महिलाओं को महावारी के दौरान वेतन के साथ दो से तीन दिन की छुट्टी मिलती थी. First Updated : Wednesday, 20 December 2023