Canada: आज जब हम कनाडा की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि भारत के बाद दुनिया के सबसे ज्यादा सिख इसी देश में बसे हैं. यह सिख आबादी के लिहाज से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. क्या आप जानते हैं कि आज से करीब 126 साल पहले इस देश में एक भी सिख व्यक्ति नहीं रहता था फिर क्या हुआ जो ये देश सिखों का दूसरा घर बन गया और फिर धीरे-धीरे खालिस्तान का गढ़ भी.
खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की मौत को लेकर शुरू हुआ दो देशों के बीच का विवाद किस मुकाम तक पहुंचेगा इसका फिलहाल कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. लेकिन उम्मीद जताई जा सकती है कि रिश्ते एक बार फिर पहले जैसे बेहतर होंगे.
अगर आप अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की थोड़ी भी जानकारी रखते हैं तो आपको पता होगा कि कनाडा और भारत दोनों बहुत अच्छे रिश्तों के साथ मित्र देश हुआ करते थे. दोनों की प्रगाढ़ मित्रता के पीछे कई कारण थे जिनमें भारतीयों की बड़ी संख्या का कनाडा में होना भी एक बड़ा कारण है. लेकिन जब इसी बड़ी संख्या में से कुछ लोगों ने भारत की अखंडता और अक्षुणता को निशाना बनाना शुरू कर दिया तो भारत की सरकारों को भी इस पर कड़ा रुख अख्तियार करना पड़ा. जब कनाडा की सरकार ने भारत विरोधी तत्वों पर कड़ी कार्यवाई करने के स्थान पर उन्हें संरक्षण देते हुए अपने मंत्रिमंडल में स्थान देना शुरू कर दिया तो दोनों देशों के संबंधों के बीच दीवार खड़ी हो गई.
शुरुआत होती है 126 साल पहले यानी साल 1897 से, जब ब्रिटिश इंडियन आर्मी में रिसालदार मेजर केसर सिंह कनाडा जाकर बस गए. 1980 तक ये कुनबा बढ़कर 35 हजार तक पहुंचा और उसके बाद कई गुना रफ्तार से आज 7.70 लाख पार कर गया है.
ब्रिटिश इंडिया आर्मी के रिसालदार मेजर केसर सिंह को कनाडा में बसने वाला पहला सिख माना जाता है. केसर सिंह हॉन्गकॉन्ग रेजिमेंट के उस ग्रुप में शामिल थे जो 1897 में क्वीन विक्टोरिया की गोल्डेन जुबली मनाने वैंकूव पहुंचा था. इस इवेंट के बाद मेजर साहब जब वापस भारत लौटे तो उन्होंने लोगों को बताया कि कनाडा नाम की एक शानदार जगह है जहां पर कई तरह के अवसर मौजूद हैं.
इसी के बाद शुरू होता है सिलसिला अवसरों की तलाश में भारत से कनाडा का. मेजर साहब के बाद कुछ सिख ग्रामिणों का एक दस्ता कनाडा पहुंचता है जिसमें ज्यादातर तक लोग सेना से रिटायर्ड सैनिक और मजदूर थे जो काम की तलाश में वहां गए थे.
फिर क्या था, भारत से कनाडा जाने का रास्ता खुल चुका था और अगले 10 साल के अंदर वहां बसने वाले भारतीयों की संख्या 2 हजार पहुंच गई. कनाडा की मीडिया में इसे हिंदू इन्वेजन के नाम से जाना गया.
शुरुआती दिनों में कनाडा जाने वाले लोगों में अधिकतर पुरुष हुआ करते थे जो काम की तलाश में वहां जाते थे. शादी के लिए वह भारत वापस आते और फिर बीवी-बच्चों को छोड़कर उन्हें वापस कनाडा जाना पड़ता था.
धीरे-धीरे ये सिलसिला आगे बढ़ा और 28 अगस्त 1912 को कनाडा में पहले भारतीय बच्चे ने जन्म लिया जिनका नाम हरदयाल सिंह था. इसके बाद वर्ष 1919 में इंपीरियाल वॉर कॉन्फ्रेंस हुआ जिसके साथ ही 18 साल से कम उम्र के बच्चों और औरतों को कनाडा में बसने की अनुमती मिल गई.
ये सिलसिला यूंही चलता रहा और कनाडा में भारतीयों के अधिकार बढ़ते रहे. वर्ष 1947 में कनाडा में सिखों को वोटिंग का अधिकार मिल गया और 65 साल के ऊपर के माता-पिता को भी कनाडा लाने की छूट मिल गई. इस निर्णय के बाद कई सिख परिवार वहां शिफ्ट हो गए और ये सिलसिला आज भी जारी है.
कनाडा की सरकार में आज सिखों की बड़ी भूमिका है. कनाडा दूसरा सबसे बड़ा सिख देश है. भारत में कुल जनसंख्या का 1.7% सिख आबादी है, जबकि कनाडा में 2.1% सिख रहते हैं. इस वक्त भारत के 13 लोकसभा सांसद सिख हैं, जबकि कनाडा में सिख सांसदों की संख्या 15 है. अंग्रेजी और फ्रेंच के बाद पंजाबी कनाडा की तीसरी प्रमुख भाषा है. PM जस्टिन ट्रूडो ने तो 2016 में यहां तक कह दिया था कि मेरी कैबिनेट में PM मोदी की कैबनेट से ज्यादा मंत्री सिख हैं.
अगर बात करें खालिस्तानी आतंकियों कि तो भारत में सन 1984 में स्वर्ण मंदिर में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी के शासन में खालिस्तानी आतंक को कुचलने के डर से तमाम खालिस्तानी आतंकी देश छोड़ कर भाग गए. जिसमें ज्यादातर कनाडा शिफ्ट हुए जहां वहां कि सरकार द्वारा उन्हें संरक्षण भी दिया गया. उन्होंने वहां अपने एडेंडे को आगे बढ़ाया जिसके चलते कनाडा खालिस्तान का गढ़ बन गया. First Updated : Monday, 25 September 2023