आज से 112 साल पहले, 12 दिसंबर, 1911 को इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी को कोलकाता से स्थानांतरित कर नई दिल्ली लाने की घोषणा की थी. इसके बाद भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल, लॉर्ड इरविन ने 13 फरवरी 1931 को ब्रिटिश भारत की राजधानी के रूप में दिल्ली का उद्घाटन किया. दिल्ली शहर को ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर ने डिजाइन किया था. दिल्ली से पहले कोलकाला 1911 तक भारत की राजधानी हुआ करता था. कोलकाता से दिल्ली को राजधानी बनाने के पीछे कई सारे कारण थे, लेकिन आज हम सिर्फ विद्रोह की कहानी पर बात करेंगे.
साल 1905 में बंगाल का बंटवारा हुआ. पूर्वी और पश्चिमी बंगाल नाम से दो सूबे बना दिए गए. पहला पूर्वी बंगाल जो आज का बांग्लादेश, असम और दूसरे पश्चिम बंगाल में ओडिशा, बिहार और झारखंड शामिल थे. तब के वायसराय लॉर्ड कर्जन ने यह बंटवारा धर्म के आधार पर किया था. पूर्वी बंगाल मुस्लिम और पश्चिम बंगाल हिंदू बहुल था. बंगाल विभाजन की घोषणा होते ही पूरे बंगाल में भारी विरोध शुरू हो गया. अंग्रेजी हुकूमत ने विद्रोह को दबाने की बड़ी कोशिश की, लेकिन मामला बढ़ता ही गया. उस समय अंग्रेज कलकत्ता को ही राजधानी मानते थे और यहीं से शासन करते थे.
पश्चिम बंगाल के विभाजन के खिलाफ विरोध के जवाब में अंग्रेजों का कहना था कि यह व्यवस्था विकास के लिए यह जरूरी है. लेकिन उनके इरादे हिंदू- मुसलमानों में फूट डालो-राज करो का था. 20 जुलाई 1905 को इस बंटवारे की घोषणा हुई और 16 अक्टूबर 1905 को इसे अमल में लाया गया. इसके विरोध में कलकत्ता में विशाल रैली हुई जिसमें हिन्दू-मुस्लिम सभी शामिल हुए. बंगाल के विभाज को लेकर देखते ही देखते विद्रोह हो गया. लोग सड़कों पर उतरने लगे और जगह-जगह हिंसा शुरू हो गई. असल में उस समय बंगाल में राष्ट्रवाद की बयार बह रही थी. देश के लिए एक अलग तरह का प्रेम था.
ऐसे में अंग्रेजी सरकार के हर उस फैसले का विरोध बंगाल करता था, जिसमें उन्हें किसी साजिश की बू आती थी. यह जब अति के लेवल पर होने लगा तब अंग्रेजी शासकों को लगा कि इसके लिए कुछ ठोस किए जाने की जरूरत है. और यहीं से देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट करने की भूमिका तैयार हुई. विरोध जारी रहा, और भारत से लेकर ब्रिटेन तक विद्रोह दर्ज किया जाता रहा. कई साल तक भारतीयों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था.
साल 1911 में ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम पहली बार भारत भ्रमण पर आए. विरोध तब भी चरम पर था. उनके लिए कलकत्ता की जगह दिल्ली में दरबार लगाया गया. जहां देश से बाहर के राजा, नवाब आमंत्रित किए गए. किताबों में मिलता है कि किंग जॉर्ज पंचम ने 80 हजार लोगों की भीड़ के सामने 12 दिसंबर 1911 को भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट करने की घोषणा की.
अंग्रेजों को आशंका थी कि इस फैसले का भी सबसे ज्यादा विरोध बंगाल में होगा. इसको लेकर बंगाल में गिरफ्तारियां करना शुरू कर दिया. राजधानी दिल्ली शिफ्ट करने और इसकी घोषणा की पटकथा पहले से ही तैयार थी. इसे औपचारिक तौर पर किंग जॉर्ज के मुंह से कहवाया गया था. माना जा रहा था कि शासक जब घोषणा करेंगे तो इसके विरोध की संभावना कम हो जाएगी. उस दिन दिल्ली को खूब सजाया गया था. दीवाली जैसी साज-सज्जा सड़कों पर दिखाई दे रही थी. सुरक्षा की तगड़ी व्यवस्था थी.
अंग्रेजों के बंगाल विभाजन का आधार कुछ भी रहा हो, लेकिन उन्होंने हिन्दू-मुस्लिमों के बीच नफरत का बीज उसी समय बोया और बाद के दिनों में वे कामयाब भी हुए. आज हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो पता चलता है कि उसी जहरीले बीज की उपज पाकिस्तान, बांग्लादेश नाम के दो देश बन गए हैं.
हिन्दू-मुस्लिम, जो एक साथ रहा करते थे, एक-दूसरे की जान लेने पर आमादा हो गए थे. तब से शुरू हुआ मारकाट का इतिहास बेहद भयावह रूप में दर्ज है. भारत की आजादी के समय पश्चिम बंगाल ही ऐसा राज्य था जहां हिंदू- मुस्लिमों के दंगे में सबसे ज्यादा लोगों की जानें गई थीं. महात्मा गांधी को दंगे रोकने के लिए पश्चिम बंगाल में पैदल यात्रा करनी पड़ी थी. हिंदू-मुस्लिमों के बीच नफरत का आज भी हमें देखने को मिलता है.
अंग्रेजों को आखिरकार दिल्ली को राजधानी बनाना भारी पड़ा. इसके बाद वो लंबे समय तक भारत पर राज नहीं कर सके. किंग जॉर्ज की घोषणा के बाद दिल्ली को राजधानी के रूप में विकसित करने की जिम्मेदारी मशहूर आर्किटेक्ट एडवर्ड लुटियन्स और हर्बर्ट बेकर को मिली. यह काम चार साल में पूरा होना था लेकिन दिल्ली को राजधानी के रूप में तैयार करने में करीब 20 साल लग गए.
13 फरवरी 1931 को दिल्ली को राजधानी के रूप में औपचारिक उद्घाटन किया गया और 16 साल बाद ही देश आजाद हो गया. अंग्रेजों को वापस जाना पड़ा. क्योंकि दिल्ली ने मुगल शासकों को भी बहुत दिन तक बर्दाश्त नहीं किया. First Updated : Tuesday, 12 December 2023