Chandrayaan-3: चंद्रयान-2 से कितना अलग है चंद्रयान-3, इससे क्या हासिल कर सकता है भारत?
Chandrayaan-3: चंद्रयान-2 में आर्बिटर शामिल था जबकि चंद्रयान-3 में लैंडर और रोवर को ही शामिल किया गया है. जिनका उद्देश्य एक चंद्र दिवस (पृथ्वी पर लगभग 14 दिनों के लिए) चंद्रमा की सतह पर कार्य करना और डाटा एकत्र करना है
हाइलाइट
- चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है.
- चंद्रयान-2 में एक लैंडर और एक रोवर शामिल है.
- साल 2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 को लॉन्च किया था.
Chandrayaan-3: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 आज बुधवार, (23 अगस्त) को शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला है. इससे पहले साल 2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 को लॉन्च किया था, लेकिन वह चांद पर लैंड नहीं कर पाया था.
बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है, तो अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत के लिए एक और बड़ी उपलब्धि होगी. तो आइए जानते है कि चंद्रयान-3 पिछले चंद्रयान-2 कैसे अलग है?
क्या है चंद्रयान-3?
इसरो के अधिकारियों के अनुसार, चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चांद की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा. यह भी देखने में बिलकुल चंद्रयान-2 की तरह ही है, जिसमें एक लैंडर और एक रोवर शामिल है. चंद्रयान-3 की फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है. मिशन की सफलता को और करीब लाने के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं. एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है. जिन वजहों से चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर नहीं उतर पाया था, उन पर विशेष ध्यान दिया गया है.
चंद्रयान-2 में आर्बिटर शामिल था जबकि चंद्रयान-3 में लैंडर और रोवर को ही शामिल किया गया है. जिनका उद्देश्य एक चंद्र दिवस (पृथ्वी पर लगभग 14 दिनों के लिए) चंद्रमा की सतह पर कार्य करना और डाटा एकत्र करना है.
भारत की अंतरिक्ष इंडस्ट्री को मिलेगा लाभ
कामयाब होने की सूरत में चंद्रयान 3 मिशन भारत की अंतरिक्ष इंडस्ट्री को भी बड़ा उछाल दे सकता है. यह न केवल अंतरिक्ष शक्ति के रूप में भारत की साख को मज़बूत करेगा, बल्कि भविष्य के चंद्र मिशनों पर भी इसका असर पड़ेगा. चंद्रयान 3 मिशन अंतर-ग्रहीय मिशनों के लिए नई तकनीक का भी प्रदर्शन करेगा.
चंद्रयान 3 का लैंडर विक्रम अपने साथ 'प्रज्ञान' नामक रोवर ले गया है, जो चंद्रमा की सतह की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करेगा और पानी की खोज करेगा. 'प्रज्ञान' अपने लेजर बीम का इस्तेमाल चंद्रमा की सतह के एक टुकड़े को पिघलाने के लिए करेगा, जिसे 'रेगोलिथ' (regolith) कहा जाता है, और इस प्रक्रिया में उत्सर्जित गैसों का विश्लेषण करेगा.
इस मिशन के तहत भारत को मिलेगी कई जानकारियां
इस मिशन के माध्यम से भारत न केवल चंद्रमा की सतह के बारे में ढेरों जानकारी हासिल करेगा, बल्कि भविष्य में मानव निवास के लिए इसकी क्षमता का भी आकलन करेगा. एक अन्य पेलोड - रेडियो एनैटमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फियर एंड एटमॉस्फियर (RAMBHA) - चंद्रमा की सतह के पास आवेशित कणों के घनत्व को मापेगा और यह भी जांचेगा कि ये समय के साथ कैसे बदलते हैं.
एक अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) रासायनिक संरचना को मापेगा और चंद्रमा की सतह की खनिज संरचना का अनुमान लगाएगा, जबकि लेसर-प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS) चंद्रमा की मिट्टी की मौलिक संरचना निर्धारित करेगा.