लाल बहादुर शास्त्री की मौत लोगों के मन में क्यों छोड़ गया सवाल क्यों नहीं हुआ था पोस्टमार्टम

लाल बहादुर शास्त्री की मौत साल 1966 में हुई थी. उनकी मौत आज भी कई सवाल पैदा करता है. जिस समय उनकी मौत हुई वे ताशकंद में थे. बड़ा सवाल यह है न तो ताशकंद और न ही भारत में उनका पोस्टमार्टम हुआ, जिसने कई सवाल खड़े किए.

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11 जनवरी 1966 को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था. एक रहस्य बनकर आज भी लोगों के मन में सवाल छोड़ता है. उस दिन रात को ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्ति समझौते पर हस्ताक्षर करने के महज 12 घंटे बाद उनकी मृत्यु हो गई थी. ताशकंद अब उज़बेकिस्तान की राजधानी है, जहां यह समझौता हुआ था. लेकिन शास्त्री की असमय मृत्यु के कारण इस घटना पर आज तक कई सवाल उठते रहे हैं.

पत्रकार कुलदीप नैयर, लाल बहादुर शास्त्री के साथ ताशकंद गए थे. वह अपनी आत्मकथा 'बियांड द लाइंस' में लिखते हैं कि उस रात उन्हें बुरा सपना आया था, और फिर अचानक एक महिला ने उनके कमरे का दरवाजा खटखटाया और बताया कि शास्त्री जी की तबीयत खराब है. जब वे शास्त्री जी के कमरे में पहुंचे, तो उन्हें बताया गया कि शास्त्री जी का निधन हो चुका है. कुलदीप नैयर ने लिखा, "हमें यकीन ही नहीं हो रहा था कि शास्त्री जी अब हमारे बीच नहीं रहे. कुछ घंटे पहले ही तो वह समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे थे."

रात 1:25 बजे सीने में दर्द की हुई थी शिकायत

कुलदीप नैयर के अनुसार, शास्त्री जी को रात 1:25 बजे सीने में दर्द की शिकायत हुई और सात मिनट बाद उनकी मृत्यु हो गई. उस रात शास्त्री जी को उनके निजी सहायक रामनाथ ने दूध दिया था और फिर वह थोड़ी देर टहले थे. इसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और उन्होंने सीने में दर्द और सांस फूलने की शिकायत की. फिर उनकी मृत्यु हो गई.

नहीं हुआ था पोस्टमार्टम 

जब शास्त्री जी का पार्थिव शरीर भारत लाया गया, तो वह नीला पड़ा हुआ था. उनके शरीर पर कट के निशान थे, जिस पर उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने सवाल उठाए. अचरज की बात यह रही कि न तो ताशकंद और न ही दिल्ली में शास्त्री जी का पोस्टमार्टम किया गया, जिससे यह रहस्य और भी गहरा गया. इस घटना के बाद आज भी उनकी मृत्यु के कारणों को लेकर कई अनुत्तरित सवाल बने हुए हैं.

लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में भारत ने 1965 की भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजय प्राप्त की थी. उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था. उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सादगी, ईमानदारी और 'जय जवान, जय किसान' जैसे लोकप्रिय नारे से भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.  First Updated : Saturday, 11 January 2025