Monsoon Session: हाईकोर्टों में ऊंची जाति के कितने जज? लोकसभा में सरकार ने बताया आंकड़ा
Monsoon Session: साल 2018 के बाद हाईकोर्टों में जितने जज नियुक्त हुए उनमें से 75 फीसदी से ज्यादा ऊंची जातियों के थे. यह जानकारी कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने दी है.
हाइलाइट
- 2018 के बाद HC में नियुक्त जजों में 75% ऊंची जाति के
- कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने दी लोकसभा को जानकारी
- असदुद्दीन ओवैसी ने इस बारे में किया था संसद में सवाल
नई दिल्ली: साल 2018 के बाद से हाईकोर्टों में नियुक्त 75 फीसदी से ज्यादा जज ऊंची जातियों से हैं. अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) के जजों की संख्या 12 फीसदी से कम है. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शुक्रवार को लोकसभा में यह जानकारी दी. इस बारे में एआईएमआईएम प्रमुख और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल किया था. उन्होंने पूछा था कि क्या यह सच है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान सभी हाईकोर्टों में नियुक्त 79 फीसदी न्यायाधीश ऊंची जातियों से हैं.
सवाल के जवाब में मेघवाल ने दी जानकारी
शुक्रवार को ओवैसी के सवाल के जवाब में कानून मंत्री ने कहा, 'जानकारी के अनुसार, 2018 से इस साल 17 जुलाई तक नियुक्त किए गए 604 हाईकोर्ट जजों में से 458 जज सामान्य श्रेणी के हैं. 18 एससी हैं. नौ एसटी समुदाय से हैं. 72 ओबीसी श्रेणी के हैं. 34 अल्पसंख्यक समुदाय से हैं. अलग-अलग हाईकोर्टों में नियुक्त 13 जजों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी.
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 224 के तहत की जाती है. ये किसी भी जाति या वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण प्रदान नहीं करते हैं.
सरकार ने अदालतों से की है क्या अपील?
मेघवाल ने कहा, 'हालांकि, सरकार हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध कर रही है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने के लिए एससी/एसटी/ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों पर उचित विचार किया जाए.'
अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की स्थापना पर एक अन्य प्रश्न के उत्तर में मेघवाल ने बताया कि जिला न्यायाधीशों के स्तर पर नियुक्ति के लिए एक भर्ती तंत्र एआईजेएस स्थापित करने के प्रस्ताव पर फिलहाल कोई सहमति नहीं है. मेघवाल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अब तक करीब 26,000 मामलों का निस्तारण किया है. वहीं 25 हाईकोर्टों ने 5.23 लाख से अधिक मामलों में निर्णय सुनाया है। देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पांच करोड़ के पार चली गई है.